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1. | फिर मैं ने आस्मान पर एक और इलाही निशान देखा, जो अज़ीम और हैरतअंगेज़ था। सात फ़रिश्ते सात आख़िरी बलाएँ अपने पास रख कर खड़े थे। इन से अल्लाह का ग़ज़ब तक्मील तक पहुँच गया। |
2. | मैं ने शीशे का सा एक समुन्दर भी देखा जिस में आग मिलाई गई थी। इस समुन्दर के पास वह खड़े थे जो हैवान, उस के मुजस्समे और उस के नाम के नम्बर पर ग़ालिब आ गए थे। वह अल्लाह के दिए हुए सरोद पकड़े |
3. | अल्लाह के ख़ादिम मूसा और लेले का गीत गा रहे थे, “ऐ रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ ख़ुदा, तेरे काम कितने अज़ीम और हैरतअंगेज़ हैं। ए ज़मानों के बादशाह, तेरी राहें कितनी रास्त और सच्ची हैं। |
4. | ऐ रब्ब, कौन तेरा ख़ौफ़ नहीं मानेगा? कौन तेरे नाम को जलाल नहीं देगा? क्यूँकि तू ही क़ुद्दूस है। तमाम क़ौमें आ कर तेरे हुज़ूर सिज्दा करेंगी, क्यूँकि तेरे रास्त काम ज़ाहिर हो गए हैं।” |
5. | इस के बाद मैं ने देखा कि अल्लाह के घर यानी आस्मान पर के शरीअत के ख़ैमे को खोल दिया गया। |
6. | अल्लाह के घर से वह सात फ़रिश्ते निकल आए जिन के पास सात बलाएँ थीं। उन के कतान के कपड़े साफ़-सुथरे और चमक रहे थे। यह कपड़े सीनों पर सोने के कमरबन्द से बंधे हुए थे। |
7. | फिर चार जानदारों में से एक ने इन सात फ़रिश्तों को सोने के सात पियाले दिए। यह पियाले उस ख़ुदा के ग़ज़ब से भरे हुए थे जो अज़ल से अबद तक ज़िन्दा है। |
8. | उस वक़्त अल्लाह का घर उस के जलाल और क़ुद्रत से पैदा होने वाले धुएँ से भर गया। और जब तक सात फ़रिश्तों की सात बलाएँ तक्मील तक न पहुँचीं उस वक़्त तक कोई भी अल्लाह के घर में दाख़िल न हो सका। |
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