← Psalms (4/150) → |
1. | दाऊद का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए। तारदार साज़ों के साथ गाना है। ऐ मेरी रास्ती के ख़ुदा, मेरी सुन जब मैं तुझे पुकारता हूँ। ऐ तू जो मुसीबत में मेरी मख़्लसी रहा है मुझ पर मेहरबानी करके मेरी इल्तिजा सुन! |
2. | ऐ आदमज़ादो, मेरी इज़्ज़त कब तक ख़ाक में मिलाई जाती रहेगी? तुम कब तक बातिल चीज़ों से लिपटे रहोगे, कब तक झूट की तलाश में रहोगे? (सिलाह) |
3. | जान लो कि रब्ब ने ईमानदार को अपने लिए अलग कर रखा है। रब्ब मेरी सुनेगा जब मैं उसे पुकारूँगा। |
4. | ग़ुस्से में आते वक़्त गुनाह मत करना। अपने बिस्तर पर लेट कर मुआमले पर सोच-बिचार करो, लेकिन दिल में, ख़ामोशी से। (सिलाह) |
5. | रास्ती की क़ुर्बानियाँ पेश करो, और रब्ब पर भरोसा रखो। |
6. | बहुतेरे शक कर रहे हैं, “कौन हमारे हालात ठीक करेगा?” ऐ रब्ब, अपने चिहरे का नूर हम पर चमका! |
7. | तू ने मेरे दिल को ख़ुशी से भर दिया है, ऐसी ख़ुशी से जो उन के पास भी नहीं होती जिन के पास कस्रत का अनाज और अंगूर है। |
8. | मैं आराम से लेट कर सो जाता हूँ, क्यूँकि तू ही ऐ रब्ब मुझे हिफ़ाज़त से बसने देता है। |
← Psalms (4/150) → |