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1. | दाऊद का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए। ऐ रब्ब, कब तक? क्या तू मुझे अबद तक भूला रहेगा? तू कब तक अपना चिहरा मुझ से छुपाए रखेगा? |
2. | मेरी जान कब तक परेशानियों में मुब्तला रहे, मेरा दिल कब तक रोज़-ब-रोज़ दुख उठाता रहे? मेरा दुश्मन कब तक मुझ पर ग़ालिब रहेगा? |
3. | ऐ रब्ब मेरे ख़ुदा, मुझ पर नज़र डाल कर मेरी सुन! मेरी आँखों को रौशन कर, वर्ना मैं मौत की नींद सो जाऊँगा। |
4. | तब मेरा दुश्मन कहेगा, “मैं उस पर ग़ालिब आ गया हूँ!” और मेरे मुख़ालिफ़ शादियाना बजाएँगे कि मैं हिल गया हूँ। |
5. | लेकिन मैं तेरी शफ़्क़त पर भरोसा रखता हूँ, मेरा दिल तेरी नजात देख कर ख़ुशी मनाएगा। |
6. | मैं रब्ब की तम्जीद में गीत गाऊँगा, क्यूँकि उस ने मुझ पर एह्सान किया है। |
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