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1. | ज़ैल में अजूर बिन याक़ा की कहावतें हैं। वह मस्सा का रहने वाला था। उस ने फ़रमाया, ऐ अल्लाह, मैं थक गया हूँ, ऐ अल्लाह, मैं थक गया हूँ, यह मेरे बस की बात नहीं रही। |
2. | यक़ीनन मैं इन्सानों में सब से ज़ियादा नादान हूँ, मुझे इन्सान की समझ हासिल नहीं। |
3. | न मैं ने हिक्मत सीखी, न क़ुद्दूस ख़ुदा के बारे में इल्म रखता हूँ। |
4. | कौन आस्मान पर चढ़ कर वापस उतर आया? किस ने हवा को अपने हाथों में जमा किया? किस ने गहरे पानी को चादर में लपेट लिया? किस ने ज़मीन की हुदूद को अपनी अपनी जगह पर क़ाइम किया है? उस का नाम क्या है, उस के बेटे का क्या नाम है? अगर तुझे मालूम हो तो मुझे बता! |
5. | अल्लाह की हर बात आज़्मूदा है, जो उस में पनाह ले उस के लिए वह ढाल है। |
6. | उस की बातों में इज़ाफ़ा मत कर, वर्ना वह तुझे डाँटेगा और तू झूटा ठहरेगा। |
7. | ऐ रब्ब, मैं तुझ से दो चीज़ें माँगता हूँ, मेरे मरने से पहले इन से इन्कार न कर। |
8. | पहले, दरोग़गोई और झूट मुझ से दूर रख। दूसरे, न ग़ुर्बत न दौलत मुझे दे बल्कि उतनी ही रोटी जितनी मेरा हक़ है, |
9. | ऐसा न हो कि मैं दौलत के बाइस सेर हो कर तेरा इन्कार करूँ और कहूँ, “रब्ब कौन है?” ऐसा भी न हो कि मैं ग़ुर्बत के बाइस चोरी करके अपने ख़ुदा के नाम की बेहुरमती करूँ। |
10. | मालिक के सामने मुलाज़िम पर तुहमत न लगा, ऐसा न हो कि वह तुझ पर लानत भेजे और तुझे इस का बुरा नतीजा भुगतना पड़े। |
11. | ऐसी नसल भी है जो अपने बाप पर लानत करती और अपनी माँ को बर्कत नहीं देती। |
12. | ऐसी नसल भी है जो अपनी नज़र में पाक-साफ़ है, गो उस की ग़िलाज़त दूर नहीं हुई। |
13. | ऐसी नसल भी है जिस की आँखें बड़े तकब्बुर से देखती हैं, जो अपनी पलकें बड़े घमंड से मारती है। |
14. | ऐसी नसल भी है जिस के दाँत तल्वारें और जबड़े छुरियाँ हैं ताकि दुनिया के मुसीबतज़दों को खा जाएँ, मुआशरे के ज़रूरतमन्दों को हड़प कर लें। |
15. | जोंक की दो बेटियाँ हैं, चूसने के दो आज़ा जो चीख़ते रहते हैं, “और दो, और दो” तीन चीज़ें हैं जो कभी सेर नहीं होतीं बल्कि चार हैं जो कभी नहीं कहतीं, “अब बस करो, अब काफ़ी है,” |
16. | पाताल, बाँझ का रहम, ज़मीन जिस की पियास कभी नहीं बुझती और आग जो कभी नहीं कहती, “अब बस करो, अब काफ़ी है।” |
17. | जो आँख बाप का मज़ाक़ उड़ाए और माँ की हिदायत को हक़ीर जाने उसे वादी के कव्वे अपनी चोंचों से निकालेंगे और गिद्ध के बच्चे खा जाएँगे। |
18. | तीन बातें मुझे हैरतज़दा करती हैं बल्कि चार हैं जिन की मुझे समझ नहीं आती, |
19. | आस्मान की बुलन्दियों पर उक़ाब की राह, चटान पर साँप की राह, समुन्दर के बीच में जहाज़ की राह और वह राह जो मर्द कुंवारी के साथ चलता है। |
20. | ज़िनाकार औरत की यह राह है, वह खा लेती और फिर अपना मुँह पोंछ कर कहती है, “मुझ से कोई ग़लती नहीं हुई।” |
21. | ज़मीन तीन चीज़ों से लरज़ उठती है बल्कि चार चीज़ें बर्दाश्त नहीं कर सकती, |
22. | वह ग़ुलाम जो बादशाह बन जाए, वह अहमक़ जो जी भर कर खाना खा सके, |
23. | वह नफ़रतअंगेज़ औरत जिस की शादी हो जाए और वह नौकरानी जो अपनी मालिकन की मिल्कियत पर क़ब्ज़ा करे। |
24. | ज़मीन की चार मख़्लूक़ात निहायत ही दानिशमन्द हैं हालाँकि छोटी हैं। |
25. | च्यूँटियाँ कमज़ोर नसल हैं लेकिन गर्मियों के मौसम में सर्दियों के लिए ख़ुराक जमा करती हैं, |
26. | बिज्जू कमज़ोर नसल हैं लेकिन चटानों में ही अपने घर बना लेते हैं, |
27. | टिड्डियों का बादशाह नहीं होता ताहम सब परे बाँध कर निकलती हैं, |
28. | छिपकलियाँ गो हाथ से पकड़ी जाती हैं, ताहम शाही महलों में पाई जाती हैं। |
29. | तीन बल्कि चार जानदार पुरवक़ार अन्दाज़ में चलते हैं। |
30. | पहले, शेरबबर जो जानवरों में ज़ोरावर है और किसी से भी पीछे नहीं हटता, |
31. | दूसरे, मुर्ग़ा जो अकड़ कर चलता है, तीसरे, बक्रा और चौथे अपनी फ़ौज के साथ चलने वाला बादशाह। |
32. | अगर तू ने मग़रूर हो कर हमाक़त की या बुरे मन्सूबे बाँधे तो अपने मुँह पर हाथ रख कर ख़ामोश हो जा, |
33. | क्यूँकि दूध बिलोने से मक्खन, नाक को मरोड़ने से ख़ून और किसी को ग़ुस्सा दिलाने से लड़ाई-झगड़ा पैदा होता है। |
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