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1. | फिर रूह-उल-क़ुद्स ईसा को रेगिस्तान में ले गया ताकि उसे इब्लीस से आज़्माया जाए। |
2. | चालीस दिन और चालीस रात रोज़ा रखने के बाद उसे आख़िरकार भूक लगी। |
3. | फिर आज़्माने वाला उस के पास आ कर कहने लगा, “अगर तू अल्लाह का फ़र्ज़न्द है तो इन पत्थरों को हुक्म दे कि रोटी बन जाएँ।” |
4. | लेकिन ईसा ने इन्कार करके कहा, “हरगिज़ नहीं, क्यूँकि कलाम-ए-मुक़द्दस में लिखा है कि इन्सान की ज़िन्दगी सिर्फ़ रोटी पर मुन्हसिर नहीं होती बल्कि हर उस बात पर जो रब्ब के मुँह से निकलती है।” |
5. | इस पर इब्लीस ने उसे मुक़द्दस शहर यरूशलम ले जा कर बैत-उल-मुक़द्दस की सब से ऊँची जगह पर खड़ा किया और कहा, |
6. | “अगर तू अल्लाह का फ़र्ज़न्द है तो यहाँ से छलाँग लगा दे। क्यूँकि कलाम-ए-मुक़द्दस में लिखा है, ‘वह तेरी ख़ातिर अपने फ़रिश्तों को हुक्म देगा, और वह तुझे अपने हाथों पर उठा लेंगे ताकि तेरे पाँओ को पत्थर से ठेस न लगे’।” |
7. | लेकिन ईसा ने जवाब दिया, “कलाम-ए-मुक़द्दस यह भी फ़रमाता है, ‘रब्ब अपने ख़ुदा को न आज़्माना’।” |
8. | फिर इब्लीस ने उसे एक निहायत ऊँचे पहाड़ पर ले जा कर उसे दुनिया के तमाम ममालिक और उन की शान-ओ-शौकत दिखाई। |
9. | वह बोला, “यह सब कुछ मैं तुझे दे दूँगा, शर्त यह है कि तू गिर कर मुझे सिज्दा करे।” |
10. | लेकिन ईसा ने तीसरी बार इन्कार किया और कहा, “इब्लीस, दफ़ा हो जा! क्यूँकि कलाम-ए-मुक़द्दस में यूँ लिखा है, ‘रब्ब अपने ख़ुदा को सिज्दा कर और सिर्फ़ उसी की इबादत कर’।” |
11. | इस पर इब्लीस उसे छोड़ कर चला गया और फ़रिश्ते आ कर उस की ख़िदमत करने लगे। |
12. | जब ईसा को ख़बर मिली कि यहया को जेल में डाल दिया गया है तो वह वहाँ से चला गया और गलील में आया। |
13. | नासरत को छोड़ कर वह झील के किनारे पर वाक़े शहर कफ़र्नहूम में रहने लगा, यानी ज़बूलून और नफ़्ताली के इलाक़े में। |
14. | यूँ यसायाह नबी की पेशगोई पूरी हुई, |
15. | “ज़बूलून का इलाक़ा, नफ़्ताली का इलाक़ा, झील के साथ का रास्ता, दरया-ए-यर्दन के पार, ग़ैरयहूदियों का गलील : |
16. | अंधेरे में बैठी क़ौम ने एक तेज़ रौशनी देखी, मौत के साय में डूबे हुए मुल्क के बाशिन्दों पर रौशनी चमकी।” |
17. | उस वक़्त से ईसा इस पैग़ाम की मुनादी करने लगा, “तौबा करो, क्यूँकि आस्मान की बादशाही क़रीब आ गई है।” |
18. | एक दिन जब ईसा गलील की झील के किनारे किनारे चल रहा था तो उस ने दो भाइयों को देखा - शमाऊन जो पत्रस भी कहलाता था और अन्द्रियास को। वह पानी में जाल डाल रहे थे, क्यूँकि वह माहीगीर थे। |
19. | उस ने कहा, “आओ, मेरे पीछे हो लो, मैं तुम को आदमगीर बनाऊँगा।” |
20. | यह सुनते ही वह अपने जालों को छोड़ कर उस के पीछे हो लिए। |
21. | आगे जा कर ईसा ने दो और भाइयों को देखा, याक़ूब बिन ज़ब्दी और उस के भाई यूहन्ना को। वह कश्ती में बैठे अपने बाप ज़ब्दी के साथ अपने जालों की मरम्मत कर रहे थे। ईसा ने उन्हें बुलाया |
22. | तो वह फ़ौरन कश्ती और अपने बाप को छोड़ कर उस के पीछे हो लिए। |
23. | और ईसा गलील के पूरे इलाक़े में फिरता रहा। जहाँ भी वह जाता वह यहूदी इबादतख़ानों में तालीम देता, बादशाही की ख़ुशख़बरी सुनाता और हर क़िस्म की बीमारी और अलालत से शिफ़ा देता था। |
24. | उस की ख़बर मुल्क-ए-शाम के कोने कोने तक पहुँच गई, और लोग अपने तमाम मरीज़ों को उस के पास लाने लगे। क़िस्म क़िस्म की बीमारियों तले दबे लोग, ऐसे जो शदीद दर्द का शिकार थे, बदरूहों की गिरिफ़्त में मुब्तला, मिर्गी वाले और फ़ालिजज़दा, ग़रज़ जो भी आया ईसा ने उसे शिफ़ा बख़्शी। |
25. | गलील, दिकपुलिस, यरूशलम, यहूदिया और दरया-ए-यर्दन के पार के इलाक़े से बड़े बड़े हुजूम उस के पीछे चलते रहे। |
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