← Mark (13/16) → |
1. | उस दिन जब ईसा बैत-उल-मुक़द्दस से निकल रहा था तो उस के शागिर्दों ने कहा, “उस्ताद, देखें कितने शानदार पत्थर और इमारतें हैं!” |
2. | ईसा ने जवाब दिया, “क्या तुम को यह बड़ी बड़ी इमारतें नज़र आती हैं? पत्थर पर पत्थर नहीं रहेगा। सब कुछ ढा दिया जाएगा।” |
3. | बाद में ईसा ज़ैतून के पहाड़ पर बैत-उल-मुक़द्दस के मुक़ाबिल बैठ गया। पत्रस, याक़ूब, यूहन्ना और अन्द्रियास अकेले उस के पास आए। उन्हों ने कहा, |
4. | “हमें ज़रा बताएँ, यह कब होगा? क्या क्या नज़र आएगा जिस से मालूम होगा कि यह अब पूरा होने को है?” |
5. | ईसा ने जवाब दिया, “ख़बरदार रहो कि कोई तुम्हें गुमराह न कर दे। |
6. | बहुत से लोग मेरा नाम ले कर आएँगे और कहेंगे, ‘मैं ही मसीह हूँ।’ यूँ वह बहुतों को गुमराह कर देंगे। |
7. | जब जंगों की ख़बरें और अफ़्वाहें तुम तक पहुँचेंगी तो मत घबराना। क्यूँकि लाज़िम है कि यह सब कुछ पेश आए। तो भी अभी आख़िरत नहीं होगी। |
8. | एक क़ौम दूसरी के ख़िलाफ़ उठ खड़ी होगी और एक बादशाही दूसरी के ख़िलाफ़। जगह जगह ज़ल्ज़ले आएँगे, काल पड़ेंगे। लेकिन यह सिर्फ़ दर्द-ए-ज़ह की इबतिदा ही होगी। |
9. | तुम ख़ुद ख़बरदार रहो। तुम को मक़ामी अदालतों के हवाले कर दिया जाएगा और लोग यहूदी इबादतख़ानों में तुम्हें कोड़े लगवाएँगे। मेरी ख़ातिर तुम्हें हुक्मरानों और बादशाहों के सामने पेश किया जाएगा। यूँ तुम उन्हें मेरी गवाही दोगे। |
10. | लाज़िम है कि आख़िरत से पहले अल्लाह की ख़ुशख़बरी तमाम अक़्वाम को सुनाई जाए। |
11. | लेकिन जब लोग तुम को गिरिफ़्तार करके अदालत में पेश करेंगे तो यह सोचते सोचते परेशान न हो जाना कि मैं क्या कहूँ। बस वही कुछ कहना जो अल्लाह तुम्हें उस वक़्त बताएगा। क्यूँकि उस वक़्त तुम नहीं बल्कि रूह-उल-क़ुद्स बोलने वाला होगा। |
12. | भाई अपने भाई को और बाप अपने बच्चे को मौत के हवाले कर देगा। बच्चे अपने वालिदैन के ख़िलाफ़ खड़े हो कर उन्हें क़त्ल करवाएँगे। |
13. | सब तुम से नफ़रत करेंगे, इस लिए कि तुम मेरे पैरोकार हो। लेकिन जो आख़िर तक क़ाइम रहेगा उसे नजात मिलेगी। |
14. | एक दिन आएगा जब तुम वहाँ जहाँ उसे नहीं होना चाहिए वह कुछ खड़ा देखोगे जो बेहुरमती और तबाही का बाइस है।” (क़ारी इस पर ध्यान दे!) “उस वक़्त यहूदिया के रहने वाले भाग कर पहाड़ी इलाक़े में पनाह लें। |
15. | जो अपने घर की छत पर हो वह न उतरे, न कुछ साथ ले जाने के लिए घर में दाख़िल हो जाए। |
16. | जो खेत में हो वह अपनी चादर साथ ले जाने के लिए वापस न जाए। |
17. | उन ख़वातीन पर अफ़्सोस जो उन दिनों में हामिला हों या अपने बच्चों को दूध पिलाती हों। |
18. | दुआ करो कि यह वाक़िआ सर्दियों के मौसम में पेश न आए। |
19. | क्यूँकि उन दिनों में ऐसी मुसीबत होगी कि दुनिया की तख़्लीक़ से आज तक देखने में न आई होगी। इस क़िस्म की मुसीबत बाद में भी कभी नहीं आएगी। |
20. | और अगर ख़ुदावन्द इस मुसीबत का दौरानिया मुख़्तसर न करता तो कोई न बचता। लेकिन उस ने अपने चुने हुओं की ख़ातिर उस का दौरानिया मुख़्तसर कर दिया है। |
21. | उस वक़्त अगर कोई तुम को बताए, ‘देखो, मसीह यहाँ है,’ या ‘वह वहाँ है’ तो उस की बात न मानना। |
22. | क्यूँकि झूटे मसीह और झूटे नबी उठ खड़े होंगे जो अजीब-ओ-ग़रीब निशान और मोजिज़े दिखाएँगे ताकि अल्लाह के चुने हुए लोगों को ग़लत रास्ते पर डाल दें - अगर यह मुम्किन होता। |
23. | इस लिए ख़बरदार! मैं ने तुम को पहले ही इन सब बातों से आगाह कर दिया है। |
24. | मुसीबत के उन दिनों के बाद सूरज तारीक हो जाएगा और चाँद की रौशनी ख़त्म हो जाएगी। |
25. | सितारे आस्मान पर से गिर पड़ेंगे और आस्मान की क़ुव्वतें हिलाई जाएँगी। |
26. | उस वक़्त लोग इब्न-ए-आदम को बड़ी क़ुद्रत और जलाल के साथ बादलों में आते हुए देखेंगे। |
27. | और वह अपने फ़रिश्तों को भेज देगा ताकि उस के चुने हुओं को चारों तरफ़ से जमा करें, दुनिया के कोने कोने से आस्मान की इन्तिहा तक इकट्ठा करें। |
28. | अन्जीर के दरख़्त से सबक़ सीखो। जूँ ही उस की शाख़ें नर्म और लचकदार हो जाती हैं और उन से कोंपलें फूट निकलती हैं तो तुम को मालूम हो जाता है कि गर्मियों का मौसम क़रीब आ गया है। |
29. | इसी तरह जब तुम यह वाक़िआत देखोगे तो जान लोगे कि इब्न-ए-आदम की आमद क़रीब बल्कि दरवाज़े पर है। |
30. | मैं तुम को सच्च बताता हूँ, इस नसल के ख़त्म होने से पहले पहले यह सब कुछ वाक़े होगा। |
31. | आस्मान-ओ-ज़मीन तो जाते रहेंगे, लेकिन मेरी बातें हमेशा तक क़ाइम रहेंगी। |
32. | लेकिन किसी को भी इल्म नहीं कि यह किस दिन या कौन सी घड़ी रूनुमा होगा। आस्मान के फ़रिश्तों और फ़र्ज़न्द को भी इल्म नहीं बल्कि सिर्फ़ बाप को। |
33. | चुनाँचे ख़बरदार और चौकन्ने रहो! क्यूँकि तुम को नहीं मालूम कि यह वक़्त कब आएगा। |
34. | इब्न-ए-आदम की आमद उस आदमी से मुताबिक़त रखती है जिसे किसी सफ़र पर जाना था। घर छोड़ते वक़्त उस ने अपने नौकरों को इन्तिज़ाम चलाने का इख़तियार दे कर हर एक को उस की अपनी ज़िम्मादारी सौंप दी। दरबान को उस ने हुक्म दिया कि वह चौकस रहे। |
35. | तुम भी इसी तरह चौकस रहो, क्यूँकि तुम नहीं जानते कि घर का मालिक कब वापस आएगा, शाम को, आधी रात को, मुर्ग़ के बाँग देते या पौ फटते वक़्त। |
36. | ऐसा न हो कि वह अचानक आ कर तुम को सोते पाए। |
37. | यह बात मैं न सिर्फ़ तुम को बल्कि सब को बताता हूँ, चौकस रहो!” |
← Mark (13/16) → |