← Judges (13/21) → |
1. | फिर इस्राईली दुबारा ऐसी हर्कतें करने लगे जो रब्ब को बुरी लगीं। इस लिए उस ने उन्हें फ़िलिस्तियों के हवाले कर दिया जो उन्हें 40 साल दबाते रहे। |
2. | उस वक़्त एक आदमी सुरआ शहर में रहता था जिस का नाम मनोहा था। दान के क़बीले का यह आदमी बेऔलाद था, क्यूँकि उस की बीवी बाँझ थी। |
3. | एक दिन रब्ब का फ़रिश्ता मनोहा की बीवी पर ज़ाहिर हुआ और कहा, “गो तुझ से बच्चे पैदा नहीं हो सकते, अब तू हामिला होगी, और तेरे बेटा पैदा होगा। |
4. | मै या कोई और नशाआवर चीज़ मत पीना, न कोई नापाक चीज़ खाना। |
5. | क्यूँकि जो बेटा पैदा होगा वह पैदाइश से ही अल्लाह के लिए मख़्सूस होगा। लाज़िम है कि उस के बाल कभी न काटे जाएँ। यही बच्चा इस्राईल को फ़िलिस्तियों से बचाने लगेगा।” |
6. | बीवी अपने शौहर मनोहा के पास गई और उसे सब कुछ बताया, “अल्लाह का एक बन्दा मेरे पास आया। वह अल्लाह का फ़रिश्ता लग रहा था, यहाँ तक कि मैं सख़्त घबरा गई। मैं ने उस से न पूछा कि वह कहाँ से है, और ख़ुद उस ने मुझे अपना नाम न बताया। |
7. | लेकिन उस ने मुझे बताया, ‘तू हामिला होगी, और तेरे बेटा पैदा होगा। अब मै या कोई और नशाआवर चीज़ मत पीना, न कोई नापाक चीज़ खाना। क्यूँकि बेटा पैदाइश से ही मौत तक अल्लाह के लिए मख़्सूस होगा’।” |
8. | यह सुन कर मनोहा ने रब्ब से दुआ की, “ऐ रब्ब, बराह-ए-करम मर्द-ए-ख़ुदा को दुबारा हमारे पास भेज ताकि वह हमें सिखाए कि हम उस बेटे के साथ क्या करें जो पैदा होने वाला है।” |
9. | अल्लाह ने उस की सुनी और अपने फ़रिश्ते को दुबारा उस की बीवी के पास भेज दिया। उस वक़्त वह शौहर के बग़ैर खेत में थी। |
10. | फ़रिश्ते को देख कर वह जल्दी से मनोहा के पास आई और उसे इत्तिला दी, “जो आदमी पिछले दिनों में मेरे पास आया वह दुबारा मुझ पर ज़ाहिर हुआ है!” |
11. | मनोहा उठ कर अपनी बीवी के पीछे पीछे फ़रिश्ते के पास आया। उस ने पूछा, “क्या आप वही आदमी हैं जिस ने पिछले दिनों में मेरी बीवी से बात की थी?” फ़रिश्ते ने जवाब दिया, “जी, मैं ही था।” |
12. | फिर मनोहा ने सवाल किया, “जब आप की पेशगोई पूरी हो जाएगी तो हमें बेटे के तर्ज़-ए-ज़िन्दगी और सुलूक के सिलसिले में किन किन बातों का ख़याल करना है?” |
13. | रब्ब के फ़रिश्ते ने जवाब दिया, “लाज़िम है कि तेरी बीवी उन तमाम चीज़ों से पर्हेज़ करे जिन का ज़िक्र मैं ने किया। |
14. | वह अंगूर की कोई भी पैदावार न खाए। न वह मै, न कोई और नशाआवर चीज़ पिए। नापाक चीज़ें खाना भी मना है। वह मेरी हर हिदायत पर अमल करे।” |
15. | मनोहा ने रब्ब के फ़रिश्ते से गुज़ारिश की, “मेहरबानी करके थोड़ी देर हमारे पास ठहरें ताकि हम बक्री का बच्चा ज़बह करके आप के लिए खाना तय्यार कर सकें।” |
16. | अब तक मनोहा ने यह बात नहीं पहचानी थी कि मेहमान असल में रब्ब का फ़रिश्ता है। फ़रिश्ते ने जवाब दिया, “ख़्वाह तू मुझे रोके भी मैं कुछ नहीं खाऊँगा। लेकिन अगर तू कुछ करना चाहे तो बक्री का बच्चा रब्ब को भस्म होने वाली क़ुर्बानी के तौर पर पेश कर।” |
17. | मनोहा ने उस से पूछा, “आप का क्या नाम है? क्यूँकि जब आप की यह बातें पूरी हो जाएँगी तो हम आप की इज़्ज़त करना चाहेंगे।” |
18. | फ़रिश्ते ने सवाल किया, “तू मेरा नाम क्यूँ जानना चाहता है? वह तो तेरी समझ से बाहर है।” |
19. | फिर मनोहा ने एक बड़े पत्थर पर रब्ब को बक्री का बच्चा और ग़ल्ला की नज़र पेश की। तब रब्ब ने मनोहा और उस की बीवी के देखते देखते एक हैरतअंगेज़ काम किया। |
20. | जब आग के शोले आस्मान की तरफ़ बुलन्द हुए तो रब्ब का फ़रिश्ता शोले में से ऊपर चढ़ कर ओझल हो गया। मनोहा और उस की बीवी मुँह के बल गिर गए। |
21. | जब रब्ब का फ़रिश्ता दुबारा मनोहा और उस की बीवी पर ज़ाहिर न हुआ तो मनोहा को समझ आई कि रब्ब का फ़रिश्ता ही था। |
22. | वह पुकार उठा, “हाय, हम मर जाएँगे, क्यूँकि हम ने अल्लाह को देखा है!” |
23. | लेकिन उस की बीवी ने एतिराज़ किया, “अगर रब्ब हमें मार डालना चाहता तो वह हमारी क़ुर्बानी क़बूल न करता। फिर न वह हम पर यह सब कुछ ज़ाहिर करता, न हमें ऐसी बातें बताता।” |
24. | कुछ देर के बाद मनोहा के हाँ बेटा पैदा हुआ। बीवी ने उस का नाम सम्सून रखा। बच्चा बड़ा होता गया, और रब्ब ने उसे बर्कत दी। |
25. | अल्लाह का रूह पहली बार महने-दान में जो सुरआ और इस्ताल के दर्मियान है उस पर नाज़िल हुआ। |
← Judges (13/21) → |