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1. | रब्ब के ख़ादिम मूसा की मौत के बाद रब्ब मूसा के मददगार यशूअ बिन नून से हमकलाम हुआ। उस ने कहा, |
2. | “मेरा ख़ादिम मूसा फ़ौत हो गया है। अब उठ, इस पूरी क़ौम के साथ दरया-ए-यर्दन को पार करके उस मुल्क में दाख़िल हो जा जो मैं इस्राईलियों को देने को हूँ। |
3. | जिस ज़मीन पर भी तू अपना पाँओ रखेगा उसे मैं मूसा के साथ किए गए वादे के मुताबिक़ तुझे दूँगा। |
4. | तुम्हारे मुल्क की सरहद्दें यह होंगी : जुनूब में नजब का रेगिस्तान, शिमाल में लुब्नान, मशरिक़ में दरया-ए-फ़ुरात और मग़रिब में बहीरा-ए-रूम। हित्ती क़ौम का पूरा इलाक़ा इस में शामिल होगा। |
5. | तेरे जीते जी कोई तेरा सामना नहीं कर सकेगा। जिस तरह मैं मूसा के साथ था, उसी तरह तेरे साथ भी हूँगा। मैं तुझे कभी नहीं छोड़ूँगा, न तुझे तर्क करूँगा। |
6. | मज़्बूत और दिलेर हो, क्यूँकि तू ही इस क़ौम को मीरास में वह मुल्क देगा जिस का मैं ने उन के बापदादा से क़सम खा कर वादा किया था। |
7. | लेकिन ख़बरदार, मज़्बूत और बहुत दिलेर हो। एहतियात से उस पूरी शरीअत पर अमल कर जो मेरे ख़ादिम मूसा ने तुझे दी है। उस से न दाईं और न बाईं तरफ़ हटना। फिर जहाँ कहीं भी तू जाए काम्याब होगा। |
8. | जो बातें इस शरीअत की किताब में लिखी हैं वह तेरे मुँह से न हटें। दिन रात उन पर ग़ौर करता रह ताकि तू एहतियात से इस की हर बात पर अमल कर सके। फिर तू हर काम में काम्याब और ख़ुशहाल होगा। |
9. | मैं फिर कहता हूँ कि मज़्बूत और दिलेर हो। न घबरा और न हौसला हार, क्यूँकि जहाँ भी तू जाएगा वहाँ रब्ब तेरा ख़ुदा तेरे साथ रहेगा।” |
10. | फिर यशूअ क़ौम के निगहबानों से मुख़ातिब हुआ, |
11. | “ख़ैमागाह में हर जगह जा कर लोगों को इत्तिला दें कि सफ़र के लिए खाने का बन्द-ओ-बस्त कर लें। क्यूँकि तीन दिन के बाद आप दरया-ए-यर्दन को पार करके उस मुल्क पर क़ब्ज़ा करेंगे जो रब्ब आप का ख़ुदा आप को विरसे में दे रहा है।” |
12. | फिर यशूअ रूबिन, जद और मनस्सी के आधे क़बीले से मुख़ातिब हुआ, |
13. | “यह बात याद रखें जो रब्ब के ख़ादिम मूसा ने आप से कही थी, ‘रब्ब तुम्हारा ख़ुदा तुम को दरया-ए-यर्दन के मशरिक़ी किनारे पर का यह इलाक़ा देता है ताकि तुम यहाँ अम्न-ओ-अमान के साथ रह सको।’ |
14. | अब जब हम दरया-ए-यर्दन को पार कर रहे हैं तो आप के बाल-बच्चे और मवेशी यहीं रह सकते हैं। लेकिन लाज़िम है कि आप के तमाम जंग करने के क़ाबिल मर्द मुसल्लह हो कर अपने भाइयों के आगे आगे दरया को पार करें। आप को उस वक़्त तक अपने भाइयों की मदद करना है |
15. | जब तक रब्ब उन्हें वह आराम न दे जो आप को हासिल है और वह उस मुल्क पर क़ब्ज़ा न कर लें जो रब्ब आप का ख़ुदा उन्हें दे रहा है। इस के बाद ही आप को अपने उस इलाक़े में वापस जा कर आबाद होने की इजाज़त होगी जो रब्ब के ख़ादिम मूसा ने आप को दरया-ए-यर्दन के मशरिक़ी किनारे पर दिया था।” |
16. | उन्हों ने जवाब में यशूअ से कहा, “जो भी हुक्म आप ने हमें दिया है वह हम मानेंगे और जहाँ भी हमें भेजेंगे वहाँ जाएँगे। |
17. | जिस तरह हम मूसा की हर बात मानते थे उसी तरह आप की भी हर बात मानेंगे। लेकिन रब्ब आप का ख़ुदा उसी तरह आप के साथ हो जिस तरह वह मूसा के साथ था। |
18. | जो भी आप के हुक्म की ख़िलाफ़वरज़ी करके आप की वह तमाम बातें न माने जो आप फ़रमाएँगे उसे सज़ा-ए-मौत दी जाए। लेकिन मज़्बूत और दिलेर हों!” |
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