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1. | बेशक आवाज़ दे, लेकिन कौन जवाब देगा? कोई नहीं! मुक़द्दसीन में से तू किस की तरफ़ रुजू कर सकता है? |
2. | क्यूँकि अहमक़ की रंजीदगी उसे मार डालती, सादालौह की सरगर्मी उसे मौत के घाट उतार देती है। |
3. | मैं ने ख़ुद एक अहमक़ को जड़ पकड़ते देखा, लेकिन मैं ने फ़ौरन ही उस के घर पर लानत भेजी। |
4. | उस के फ़र्ज़न्द नजात से दूर रहते। उन्हें शहर के दरवाज़े में रौंदा जाता है, और बचाने वाला कोई नहीं। |
5. | भूके उस की फ़सल खा जाते, काँटेदार बाड़ों में मह्फ़ूज़ माल भी छीन लेते हैं। पियासे अफ़राद हाँपते हुए उस की दौलत के पीछे पड़ जाते हैं। |
6. | क्यूँकि बुराई ख़ाक से नहीं निकलती और दुख-दर्द मिट्टी से नहीं फूटता |
7. | बल्कि इन्सान ख़ुद इस का बाइस है, दुख-दर्द उस की विरासत में ही पाया जाता है। यह इतना यक़ीनी है जितना यह कि आग की चिंगारियाँ ऊपर की तरफ़ उड़ती हैं। |
8. | लेकिन अगर मैं तेरी जगह होता तो अल्लाह से दरयाफ़्त करता, उसे ही अपना मुआमला पेश करता। |
9. | वही इतने अज़ीम काम करता है कि कोई उन की तह तक नहीं पहुँच सकता, इतने मोजिज़े कि कोई उन्हें गिन नहीं सकता। |
10. | वही रू-ए-ज़मीन को बारिश अता करता, खुले मैदान पर पानी बरसा देता है। |
11. | पस्तहालों को वह सरफ़राज़ करता और मातम करने वालों को उठा कर मह्फ़ूज़ मक़ाम पर रख देता है। |
12. | वह चालाकों के मन्सूबे तोड़ देता है ताकि उन के हाथ नाकाम रहें। |
13. | वह दानिशमन्दों को उन की अपनी चालाकी के फंदे में फंसा देता है तो होश्यारों की साज़िशें अचानक ही ख़त्म हो जाती हैं। |
14. | दिन के वक़्त उन पर अंधेरा छा जाता, और दोपहर के वक़्त भी वह टटोल टटोल कर फिरते हैं। |
15. | अल्लाह ज़रूरतमन्दों को उन के मुँह की तल्वार और ज़बरदस्त के क़ब्ज़े से बचा लेता है। |
16. | यूँ पस्तहालों को उम्मीद दी जाती और नाइन्साफ़ी का मुँह बन्द किया जाता है। |
17. | मुबारक है वह इन्सान जिस की मलामत अल्लाह करता है! चुनाँचे क़ादिर-ए-मुतलक़ की तादीब को हक़ीर न जान। |
18. | क्यूँकि वह ज़ख़्मी करता लेकिन मर्हम-पट्टी भी लगा देता है, वह ज़र्ब लगाता लेकिन अपने हाथों से शिफ़ा भी बख़्शता है। |
19. | वह तुझे छः मुसीबतों से छुड़ाएगा, और अगर इस के बाद भी कोई आए तो तुझे नुक़्सान नहीं पहुँचेगा। |
20. | अगर काल पड़े तो वह फ़िद्या दे कर तुझे मौत से बचाएगा, जंग में तुझे तल्वार की ज़द में आने नहीं देगा। |
21. | तू ज़बान के कोड़ों से मह्फ़ूज़ रहेगा, और जब तबाही आए तो डरने की ज़रूरत नहीं होगी। |
22. | तू तबाही और काल की हंसी उड़ाएगा, ज़मीन के वहशी जानवरों से ख़ौफ़ नहीं खाएगा। |
23. | क्यूँकि तेरा खुले मैदान के पत्थरों के साथ अह्द होगा, इस लिए उस के जंगली जानवर तेरे साथ सलामती से ज़िन्दगी गुज़ारेंगे। |
24. | तू जान लेगा कि तेरा ख़ैमा मह्फ़ूज़ है। जब तू अपने घर का मुआइना करे तो मालूम होगा कि कुछ गुम नहीं हुआ। |
25. | तू देखेगा कि तेरी औलाद बढ़ती जाएगी, तेरे फ़र्ज़न्द ज़मीन पर घास की तरह फैलते जाएँगे। |
26. | तू वक़्त पर जमाशुदा पूलों की तरह उम्ररसीदा हो कर क़ब्र में उतरेगा। |
27. | हम ने तह्क़ीक़ करके मालूम किया है कि ऐसा ही है। चुनाँचे हमारी बात सुन कर उसे अपना ले!” |
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