← Job (4/42) → |
1. | यह कुछ सुन कर इलीफ़ज़ तेमानी ने जवाब दिया, |
2. | “क्या तुझ से बात करने का कोई फ़ाइदा है? तू तो यह बर्दाश्त नहीं कर सकता। लेकिन दूसरी तरफ़ कौन अपने अल्फ़ाज़ रोक सकता है? |
3. | ज़रा सोच ले, तू ने ख़ुद बहुतों को तर्बियत दी, कई लोगों के थकेमान्दे हाथों को तक़वियत दी है। |
4. | तेरे अल्फ़ाज़ ने ठोकर खाने वाले को दुबारा खड़ा किया, डगमगाते हुए घुटने तू ने मज़्बूत किए। |
5. | लेकिन अब जब मुसीबत तुझ पर आ गई तो तू उसे बर्दाश्त नहीं कर सकता, अब जब ख़ुद उस की ज़द में आ गया तो तेरे रोंगटे खड़े हो गए हैं। |
6. | क्या तेरा एतिमाद इस पर मुन्हसिर नहीं है कि तू अल्लाह का ख़ौफ़ माने, तेरी उम्मीद इस पर नहीं कि तू बेइल्ज़ाम राहों पर चले? |
7. | सोच ले, क्या कभी कोई बेगुनाह हलाक हुआ है? हरगिज़ नहीं! जो सीधी राह पर चलते हैं वह कभी रू-ए-ज़मीन पर से मिट नहीं गए। |
8. | जहाँ तक मैं ने देखा, जो नाइन्साफ़ी का हल चलाए और नुक़्सान का बीज बोए वह इस की फ़सल काटता है। |
9. | ऐसे लोग अल्लाह की एक फूँक से तबाह, उस के क़हर के एक झोंके से हलाक हो जाते हैं। |
10. | शेरबबर की दहाड़ें ख़ामोश हो गईं, जवान शेर के दाँत झड़ गए हैं। |
11. | शिकार न मिलने की वजह से शेर हलाक हो जाता और शेरनी के बच्चे परागन्दा हो जाते हैं। |
12. | एक बार एक बात चोरी-छुपे मेरे पास पहुँची, उस के चन्द अल्फ़ाज़ मेरे कान तक पहुँच गए। |
13. | रात को ऐसी रोयाएँ पेश आईं जो उस वक़्त देखी जाती हैं जब इन्सान गहरी नींद सोया होता है। इन से मैं परेशानकुन ख़यालात में मुब्तला हुआ। |
14. | मुझ पर दह्शत और थरथराहट ग़ालिब आई, मेरी तमाम हड्डियाँ लरज़ उठीं। |
15. | फिर मेरे चिहरे के सामने से हवा का झोंका गुज़र गया और मेरे तमाम रोंगटे खड़े हो गए। |
16. | एक हस्ती मेरे सामने खड़ी हुई जिसे मैं पहचान न सका, एक शक्ल मेरी आँखों के सामने दिखाई दी। वह ख़ामोशी थी, फिर एक आवाज़ ने फ़रमाया, |
17. | ‘क्या इन्सान अल्लाह के हुज़ूर रास्तबाज़ ठहर सकता है, क्या इन्सान अपने ख़ालिक़ के सामने पाक-साफ़ ठहर सकता है?’ |
18. | देख, अल्लाह अपने ख़ादिमों पर भरोसा नहीं करता, अपने फ़रिश्तों को वह अहमक़ ठहराता है। |
19. | तो फिर वह इन्सान पर क्यूँ भरोसा रखे जो मिट्टी के घर में रहता, ऐसे मकान में जिस की बुन्याद ख़ाक पर ही रखी गई है। उसे पतंगे की तरह कुचला जाता है। |
20. | सुब्ह को वह ज़िन्दा है लेकिन शाम तक पाश पाश हो जाता, अबद तक हलाक हो जाता है, और कोई भी ध्यान नहीं देता। |
21. | उस के ख़ैमे के रस्से ढीले करो तो वह हिक्मत हासिल किए बग़ैर इन्तिक़ाल कर जाता है। |
← Job (4/42) → |