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1. | एक दिन फ़रिश्ते दुबारा अपने आप को रब्ब के हुज़ूर पेश करने आए। इब्लीस भी उन के दर्मियान मौजूद था। |
2. | रब्ब ने इब्लीस से पूछा, “तू कहाँ से आया है?” इब्लीस ने जवाब दिया, “मैं दुनिया में इधर उधर घूमता फिरता रहा।” |
3. | रब्ब बोला, “क्या तू ने मेरे बन्दे अय्यूब पर तवज्जुह दी? ज़मीन पर उस जैसा कोई और नहीं। वह बेइल्ज़ाम है, वह सीधी राह पर चलता, अल्लाह का ख़ौफ़ मानता और हर बुराई से दूर रहता है। अभी तक वह अपने बेइल्ज़ाम किरदार पर क़ाइम है हालाँकि तू ने मुझे उसे बिलावजह तबाह करने पर उकसाया।” |
4. | इब्लीस ने जवाब दिया, “खाल का बदला खाल ही होता है! इन्सान अपनी जान को बचाने के लिए अपना सब कुछ दे देता है। |
5. | लेकिन वह क्या करेगा अगर तू अपना हाथ ज़रा बढ़ा कर उस का जिस्म छू दे? तब वह तेरे मुँह पर ही तुझ पर लानत करेगा।” |
6. | रब्ब ने इब्लीस से कहा, “ठीक है, वह तेरे हाथ में है। लेकिन उस की जान को मत छेड़ना।” |
7. | इब्लीस रब्ब के हुज़ूर से चला गया और अय्यूब को सताने लगा। चाँद से ले कर तल्वे तक अय्यूब के पूरे जिस्म पर बदतरीन क़िस्म के फोड़े निकल आए। |
8. | तब अय्यूब राख में बैठ गया और ठीकरे से अपनी जिल्द को खुरचने लगा। |
9. | उस की बीवी बोली, “क्या तू अब तक अपने बेइल्ज़ाम किरदार पर क़ाइम है? अल्लाह पर लानत करके दम छोड़ दे!” |
10. | लेकिन उस ने जवाब दिया, “तू अहमक़ औरत की सी बातें कर रही है। अल्लाह की तरफ़ से भलाई तो हम क़बूल करते हैं, तो क्या मुनासिब नहीं कि उस के हाथ से मुसीबत भी क़बूल करें?” इस सारे मुआमले में अय्यूब ने अपने मुँह से गुनाह न किया। |
11. | अय्यूब के तीन दोस्त थे। उन के नाम इलीफ़ज़ तेमानी, बिल्दद सूख़ी और ज़ूफ़र नामाती थे। जब उन्हें इत्तिला मिली कि अय्यूब पर यह तमाम आफ़त आ गई है तो हर एक अपने घर से रवाना हुआ। उन्हों ने मिल कर फ़ैसला किया कि इकट्ठे अफ़्सोस करने और अय्यूब को तसल्ली देने जाएँगे। |
12. | जब उन्हों ने दूर से अपनी नज़र उठा कर अय्यूब को देखा तो उस की इतनी बुरी हालत थी कि वह पहचाना नहीं जाता था। तब वह ज़ार-ओ-क़तार रोने लगे। अपने कपड़े फाड़ कर उन्हों ने अपने सरों पर ख़ाक डाली। |
13. | फिर वह उस के साथ ज़मीन पर बैठ गए। सात दिन और सात रात वह इसी हालत में रहे। इस पूरे अर्से में उन्हों ने अय्यूब से एक भी बात न की, क्यूँकि उन्हों ने देखा कि वह शदीद दर्द का शिकार है। |
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