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1. | बिल्दद सूख़ी ने जवाब दे कर कहा, |
2. | “तू कब तक ऐसी बातें करेगा? इन से बाज़ आ कर होश में आ! तब ही हम सहीह बात कर सकेंगे। |
3. | तू हमें डंगर जैसे अहमक़ क्यूँ समझता है? |
4. | गो तू आग-बगूला हो कर अपने आप को फाड़ रहा है, लेकिन क्या तेरे बाइस ज़मीन को वीरान होना चाहिए और चटानों को अपनी जगह से खिसक्ना चाहिए? हरगिज़ नहीं! |
5. | यक़ीनन बेदीन का चराग़ बुझ जाएगा, उस की आग का शोला आइन्दा नहीं चमकेगा। |
6. | उस के ख़ैमे में रौशनी अंधेरा हो जाएगी, उस के ऊपर की शमा बुझ जाएगी। |
7. | उस के लम्बे क़दम रुक रुक कर आगे बढ़ेंगे, और उस का अपना मन्सूबा उसे पटख़ देगा। |
8. | उस के अपने पाँओ उसे जाल में फंसा देते हैं, वह दाम पर ही चलता फिरता है। |
9. | फंदा उस की एड़ी पकड़ लेता, कमन्द उसे जकड़ लेती है। |
10. | उसे फंसाने का रस्सा ज़मीन में छुपा हुआ है, रास्ते में फंदा बिछा है। |
11. | वह ऐसी चीज़ों से घिरा रहता है जो उसे क़दम-ब-क़दम दह्शत खिलाती और उस की नाक में दम करती हैं। |
12. | आफ़त उसे हड़प कर लेना चाहती है, तबाही तय्यार खड़ी है ताकि उसे गिरते वक़्त ही पकड़ ले। |
13. | बीमारी उस की जिल्द को खा जाती, मौत का पहलौठा उस के आज़ा को निगल लेता है। |
14. | उसे उस के ख़ैमे की हिफ़ाज़त से छीन लिया जाता और घसीट कर दह्शतों के बादशाह के सामने लाया जाता है। |
15. | उस के ख़ैमे में आग बसती, उस के घर पर गंधक बिखर जाती है। |
16. | नीचे उस की जड़ें सूख जाती, ऊपर उस की शाख़ें मुरझा जाती हैं। |
17. | ज़मीन पर से उस की याद मिट जाती है, कहीं भी उस का नाम-ओ-निशान नहीं रहता। |
18. | उसे रौशनी से तारीकी में धकेला जाता, दुनिया से भगा कर ख़ारिज किया जाता है। |
19. | क़ौम में उस की न औलाद न नसल रहेगी, जहाँ पहले रहता था वहाँ कोई नहीं बचेगा। |
20. | उस का अन्जाम देख कर मग़रिब के बाशिन्दों के रोंगटे खड़े हो जाते और मशरिक़ के बाशिन्दे दह्शतज़दा हो जाते हैं। |
21. | यही है बेदीन के घर का अन्जाम, उसी के मक़ाम का जो अल्लाह को नहीं जानता।” |
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