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1. | ईमान क्या है? यह कि हम उस में क़ाइम रहें जिस पर हम उम्मीद रखते हैं और कि हम उस का यक़ीन रखें जो हम नहीं देख सकते। |
2. | ईमान ही से पुराने ज़मानों के लोगों को अल्लाह की क़बूलियत हासिल हुई। |
3. | ईमान के ज़रीए हम जान लेते हैं कि काइनात को अल्लाह के कलाम से ख़लक़ किया गया, कि जो कुछ हम देख सकते हैं नज़र आने वाली चीज़ों से नहीं बना। |
4. | यह ईमान का काम था कि हाबील ने अल्लाह को एक ऐसी क़ुर्बानी पेश की जो क़ाबील की क़ुर्बानी से बेहतर थी। इस ईमान की बिना पर अल्लाह ने उसे रास्तबाज़ ठहरा कर उस की अच्छी गवाही दी, जब उस ने उस की क़ुर्बानियों को क़बूल किया। और ईमान के ज़रीए वह अब तक बोलता रहता है हालाँकि वह मुर्दा है। |
5. | यह ईमान का काम था कि हनूक न मरा बल्कि ज़िन्दा हालत में आस्मान पर उठाया गया। कोई भी उसे ढूँड कर पा न सका क्यूँकि अल्लाह उसे आस्मान पर उठा ले गया था। वजह यह थी कि उठाए जाने से पहले उसे यह गवाही मिली कि वह अल्लाह को पसन्द आया। |
6. | और ईमान रखे बग़ैर हम अल्लाह को पसन्द नहीं आ सकते। क्यूँकि लाज़िम है कि अल्लाह के हुज़ूर आने वाला ईमान रखे कि वह है और कि वह उन्हें अज्र देता है जो उस के तालिब हैं। |
7. | यह ईमान का काम था कि नूह ने अल्लाह की सुनी जब उस ने उसे आने वाली बातों के बारे में आगाह किया, ऐसी बातों के बारे में जो अभी देखने में नहीं आई थीं। नूह ने ख़ुदा का ख़ौफ़ मान कर एक कश्ती बनाई ताकि उस का ख़ान्दान बच जाए। यूँ उस ने अपने ईमान के ज़रीए दुनिया को मुज्रिम क़रार दिया और उस रास्तबाज़ी का वारिस बन गया जो ईमान से हासिल होती है। |
8. | यह ईमान का काम था कि इब्राहीम ने अल्लाह की सुनी जब उस ने उसे बुला कर कहा कि वह एक ऐसे मुल्क में जाए जो उसे बाद में मीरास में मिलेगा। हाँ, वह अपने मुल्क को छोड़ कर रवाना हुआ, हालाँकि उसे मालूम न था कि वह कहाँ जा रहा है। |
9. | ईमान के ज़रीए वह वादा किए हुए मुल्क में अजनबी की हैसियत से रहने लगा। वह ख़ैमों में रहता था और इसी तरह इस्हाक़ और याक़ूब भी जो उस के साथ उसी वादे के वारिस थे। |
10. | क्यूँकि इब्राहीम उस शहर के इन्तिज़ार में था जिस की मज़्बूत बुन्याद है और जिस का नक़्श बनाने और तामीर करने वाला ख़ुद अल्लाह है। |
11. | यह ईमान का काम था कि इब्राहीम बाप बनने के क़ाबिल हो गया, हालाँकि वह बुढ़ापे की वजह से बाप नहीं बन सकता था। इसी तरह सारा भी बच्चे जन्म नहीं दे सकती थी। लेकिन इब्राहीम समझता था कि अल्लाह जिस ने वादा किया है वफ़ादार है। |
12. | गो इब्राहीम तक़्रीबन मर चुका था तो भी उसी एक शख़्स से बेशुमार औलाद निकली, तादाद में आस्मान पर के सितारों और साहिल पर की रेत के ज़र्रों के बराबर। |
13. | यह तमाम लोग ईमान रखते रखते मर गए। उन्हें वह कुछ न मिला जिस का वादा किया गया था। उन्हों ने उसे सिर्फ़ दूर ही से देख कर ख़ुशआमदीद कहा। और उन्हों ने तस्लीम किया कि हम ज़मीन पर सिर्फ़ मेहमान और आरिज़ी तौर पर रहने वाले अजनबी हैं। |
14. | जो इस क़िस्म की बातें करते हैं वह ज़ाहिर करते हैं कि हम अब तक अपने वतन की तलाश में हैं। |
15. | अगर उन के ज़हन में वह मुल्क होता जिस से वह निकल आए थे तो वह अब भी वापस जा सकते थे। |
16. | इस के बजाय वह एक बेहतर मुल्क यानी एक आस्मानी मुल्क की आर्ज़ू कर रहे थे। इस लिए अल्लाह उन का ख़ुदा कहलाने से नहीं शर्माता, क्यूँकि उस ने उन के लिए एक शहर तय्यार किया है। |
17. | यह ईमान का काम था कि इब्राहीम ने उस वक़्त इस्हाक़ को क़ुर्बानी के तौर पर पेश किया जब अल्लाह ने उसे आज़्माया। हाँ, वह अपने इक्लौते बेटे को क़ुर्बान करने के लिए तय्यार था अगरचि उसे अल्लाह के वादे मिल गए थे |
18. | कि “तेरी नसल इस्हाक़ ही से क़ाइम रहेगी।” |
19. | इब्राहीम ने सोचा, “अल्लाह मुर्दों को भी ज़िन्दा कर सकता है,” और मजाज़न उसे वाक़ई इस्हाक़ मुर्दों में से वापस मिल गया। |
20. | यह ईमान का काम था कि इस्हाक़ ने आने वाली चीज़ों के लिहाज़ से याक़ूब और एसौ को बर्कत दी। |
21. | यह ईमान का काम था कि याक़ूब ने मरते वक़्त यूसुफ़ के दोनों बेटों को बर्कत दी और अपनी लाठी के सिरे पर टेक लगा कर अल्लाह को सिज्दा किया। |
22. | यह ईमान का काम था कि यूसुफ़ ने मरते वक़्त यह पेशगोई की कि इस्राईली मिस्र से निकलेंगे बल्कि यह भी कहा कि निकलते वक़्त मेरी हड्डियाँ भी अपने साथ ले जाओ। |
23. | यह ईमान का काम था कि मूसा के माँ-बाप ने उसे पैदाइश के बाद तीन माह तक छुपाए रखा, क्यूँकि उन्हों ने देखा कि वह ख़ूबसूरत है। वह बादशाह के हुक्म की ख़िलाफ़वरज़ी करने से न डरे। |
24. | यह ईमान का काम था कि मूसा ने पर्वान चढ़ कर इन्कार किया कि उसे फ़िरऔन की बेटी का बेटा ठहराया जाए। |
25. | आरिज़ी तौर पर गुनाह से लुत्फ़अन्दोज़ होने के बजाय उस ने अल्लाह की क़ौम के साथ बदसुलूकी का निशाना बनने को तर्जीह दी। |
26. | वह समझा कि जब मेरी मसीह की ख़ातिर रुस्वाई की जाती है तो यह मिस्र के तमाम ख़ज़ानों से ज़ियादा क़ीमती है, क्यूँकि उस की आँखें आने वाले अज्र पर लगी रहीं। |
27. | यह ईमान का काम था कि मूसा ने बादशाह के ग़ुस्से से डरे बग़ैर मिस्र को छोड़ दिया, क्यूँकि वह गोया अनदेखे ख़ुदा को मुसल्सल अपनी आँखों के सामने रखता रहा। |
28. | यह ईमान का काम था कि उस ने फ़सह की ईद मना कर हुक्म दिया कि ख़ून को चौखटों पर लगाया जाए ताकि हलाक करने वाला फ़रिश्ता उन के पहलौठे बेटों को न छुए। |
29. | यह ईमान का काम था कि इस्राईली बहर-ए-क़ुल्ज़ुम में से यूँ गुज़र सके जैसे कि यह ख़ुश्क ज़मीन थी। जब मिस्रियों ने यह करने की कोशिश की तो वह डूब गए। |
30. | यह ईमान का काम था कि सात दिन तक यरीहू शहर की फ़सील के गिर्द चक्कर लगाने के बाद पूरी दीवार गिर गई। |
31. | यह भी ईमान का काम था कि राहब फ़ाहिशा अपने शहर के बाक़ी नाफ़रमान बाशिन्दों के साथ हलाक न हुई, क्यूँकि उस ने इस्राईली जासूसों को सलामती के साथ ख़ुशआमदीद कहा था। |
32. | मैं मज़ीद क्या कुछ कहूँ? मेरे पास इतना वक़्त नहीं कि मैं जिदाऊन, बरक़, सम्सून, इफ़्ताह, दाऊद, समूएल और नबियों के बारे में सुनाता रहूँ। |
33. | यह सब ईमान के सबब से ही काम्याब रहे। वह बादशाहियों पर ग़ालिब आए और इन्साफ़ करते रहे। उन्हें अल्लाह के वादे हासिल हुए। उन्हों ने शेरबबरों के मुँह बन्द कर दिए |
34. | और आग के भड़कते शोलों को बुझा दिया। वह तल्वार की ज़द से बच निकले। वह कमज़ोर थे लेकिन उन्हें क़ुव्वत हासिल हुई। जब जंग छिड़ गई तो वह इतने ताक़तवर साबित हुए कि उन्हों ने ग़ैरमुल्की लश्करों को शिकस्त दी। |
35. | ईमान रखने के बाइस ख़वातीन को उन के मुर्दा अज़ीज़ ज़िन्दा हालत में वापस मिले। लेकिन ऐसे भी थे जिन्हें तशद्दुद बर्दाश्त करना पड़ा और जिन्हों ने आज़ाद हो जाने से इन्कार किया ताकि उन्हें एक बेहतर चीज़ यानी जी उठने का तजरिबा हासिल हो जाए। |
36. | बाज़ को लान-तान और कोड़ों बल्कि ज़न्जीरों और क़ैद का भी सामना करना पड़ा। |
37. | उन्हें संगसार किया गया, उन्हें आरे से चीरा गया, उन्हें तल्वार से मार डाला गया। बाज़ को भेड़-बक्रियों की खालों में घूमना फिरना पड़ा। ज़रूरतमन्द हालत में उन्हें दबाया और उन पर ज़ुल्म किया जाता रहा। |
38. | दुनिया उन के लाइक़ नहीं थी! वह वीरान जगहों में, पहाड़ों पर, ग़ारों और गढ़ों में आवारा फिरते रहे। |
39. | इन सब को ईमान की वजह से अच्छी गवाही मिली। तो भी इन्हें वह कुछ हासिल न हुआ जिस का वादा अल्लाह ने किया था। |
40. | क्यूँकि उस ने हमारे लिए एक ऐसा मन्सूबा बनाया था जो कहीं बेहतर है। वह चाहता था कि यह लोग हमारे बग़ैर कामिलियत तक न पहुँचें। |
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