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1. | ऐ इस्राईल, अब वह तमाम अह्काम ध्यान से सुन ले जो मैं तुमहें सिखाता हूँ। उन पर अमल करो ताकि तुम ज़िन्दा रहो और जा कर उस मुल्क पर क़ब्ज़ा करो जो रब्ब तुम्हारे बापदादा का ख़ुदा तुम्हें देने वाला है। |
2. | जो अह्काम मैं तुमहें सिखाता हूँ उन में न किसी बात का इज़ाफ़ा करो और न उन से कोई बात निकालो। रब्ब अपने ख़ुदा के तमाम अह्काम पर अमल करो जो मैं ने तुम्हें दिए हैं। |
3. | तुम ने ख़ुद देखा है कि रब्ब ने बाल-फ़ग़ूर से क्या कुछ किया। वहाँ रब्ब तेरे ख़ुदा ने हर एक को हलाक कर डाला जिस ने फ़ग़ूर के बाल देवता की पूजा की। |
4. | लेकिन तुम में से जितने रब्ब अपने ख़ुदा के साथ लिपटे रहे वह सब आज तक ज़िन्दा हैं। |
5. | मैं ने तुम्हें तमाम अह्काम यूँ सिखा दिए हैं जिस तरह रब्ब मेरे ख़ुदा ने मुझे बताया। क्यूँकि लाज़िम है कि तुम उस मुल्क में इन के ताबे रहो जिस पर तुम क़ब्ज़ा करने वाले हो। |
6. | इन्हें मानो और इन पर अमल करो तो दूसरी क़ौमों को तुम्हारी दानिशमन्दी और समझ नज़र आएगी। फिर वह इन तमाम अह्काम के बारे में सुन कर कहेंगी, “वाह, यह अज़ीम क़ौम कैसी दानिशमन्द और समझदार है!” |
7. | कौन सी अज़ीम क़ौम के माबूद इतने क़रीब हैं जितना हमारा ख़ुदा हमारे क़रीब है? जब भी हम मदद के लिए पुकारते हैं तो रब्ब हमारा ख़ुदा मौजूद होता है। |
8. | कौन सी अज़ीम क़ौम के पास ऐसे मुन्सिफ़ाना अह्काम और हिदायात हैं जैसे मैं आज तुम्हें पूरी शरीअत सुना कर पेश कर रहा हूँ? |
9. | लेकिन ख़बरदार, एहतियात करना और वह तमाम बातें न भूलना जो तेरी आँखों ने देखी हैं। वह उम्र भर तेरे दिल में से मिट न जाएँ बल्कि उन्हें अपने बच्चों और पोते-पोतियों को भी बताते रहना। |
10. | वह दिन याद कर जब तू होरिब यानी सीना पहाड़ पर रब्ब अपने ख़ुदा के सामने हाज़िर था और उस ने मुझे बताया, “क़ौम को यहाँ मेरे पास जमा कर ताकि मैं उन से बात करूँ और वह उम्र भर मेरा ख़ौफ़ मानें और अपने बच्चों को मेरी बातें सिखाते रहें।” |
11. | उस वक़्त तुम क़रीब आ कर पहाड़ के दामन में खड़े हुए। वह जल रहा था, और उस की आग आस्मान तक भड़क रही थी जबकि काले बादलों और गहरे अंधेरे ने उसे नज़रों से छुपा दिया। |
12. | फिर रब्ब आग में से तुम से हमकलाम हुआ। तुम ने उस की बातें सुनीं लेकिन उस की कोई शक्ल न देखी। सिर्फ़ उस की आवाज़ सुनाई दी। |
13. | उस ने तुम्हारे लिए अपने अह्द यानी उन 10 अह्काम का एलान किया और हुक्म दिया कि इन पर अमल करो। फिर उस ने उन्हें पत्थर की दो तख़्तियों पर लिख दिया। |
14. | रब्ब ने मुझे हिदायत की, “उन्हें वह तमाम अह्काम सिखा जिन के मुताबिक़ उन्हें चलना होगा जब वह दरया-ए-यर्दन को पार करके कनआन पर क़ब्ज़ा करेंगे।” |
15. | जब रब्ब होरिब यानी सीना पहाड़ पर तुम से हमकलाम हुआ तो तुम ने उस की कोई शक्ल न देखी। चुनाँचे ख़बरदार रहो |
16. | कि तुम ग़लत काम करके अपने लिए किसी भी शक्ल का बुत न बनाओ। न मर्द, औरत, |
17. | ज़मीन पर चलने वाले जानवर, परिन्दे, |
18. | रेंगने वाले जानवर या मछली का बुत बनाओ। |
19. | जब तू आस्मान की तरफ़ नज़र उठा कर आस्मान का पूरा लश्कर देखे तो सूरज, चाँद और सितारों की परस्तिश और ख़िदमत करने की आज़्माइश में न पड़ना। रब्ब तेरे ख़ुदा ने इन चीज़ों को बाक़ी तमाम क़ौमों को अता किया है, |
20. | लेकिन तुम्हें उस ने मिस्र के भड़कते भट्टे से निकाला है ताकि तुम उस की अपनी क़ौम और उस की मीरास बन जाओ। और आज ऐसा ही हुआ है। |
21. | तुम्हारे सबब से रब्ब ने मुझ से नाराज़ हो कर क़सम खाई कि तू दरया-ए-यर्दन को पार करके उस अच्छे मुल्क में दाख़िल नहीं होगा जो रब्ब तेरा ख़ुदा तुझे मीरास में देने वाला है। |
22. | मैं यहीं इसी मुल्क में मर जाऊँगा और दरया-ए-यर्दन को पार नहीं करूँगा। लेकिन तुम दरया को पार करके उस बेहतरीन मुल्क पर क़ब्ज़ा करोगे। |
23. | हर सूरत में वह अह्द याद रखना जो रब्ब तुम्हारे ख़ुदा ने तुम्हारे साथ बाँधा है। अपने लिए किसी भी चीज़ की मूरत न बनाना। यह रब्ब का हुक्म है, |
24. | क्यूँकि रब्ब तेरा ख़ुदा भस्म कर देने वाली आग है, वह ग़यूर ख़ुदा है। |
25. | तुम मुल्क में जा कर वहाँ रहोगे। तुम्हारे बच्चे और पोते-नवासे उस में पैदा हो जाएँगे। जब इस तरह बहुत वक़्त गुज़र जाएगा तो ख़त्रा है कि तुम ग़लत काम करके किसी चीज़ की मूरत बनाओ। ऐसा कभी न करना। यह रब्ब तुम्हारे ख़ुदा की नज़र में बुरा है और उसे ग़ुस्सा दिलाएगा। |
26. | आज आस्मान और ज़मीन मेरे गवाह हैं कि अगर तुम ऐसा करो तो जल्दी से उस मुल्क में से मिट जाओगे जिस पर तुम दरया-ए-यर्दन को पार करके क़ब्ज़ा करोगे। तुम देर तक वहाँ जीते नहीं रहोगे बल्कि पूरे तौर पर हलाक हो जाओगे। |
27. | रब्ब तुम्हें मुल्क से निकाल कर मुख़्तलिफ़ क़ौमों में मुन्तशिर कर देगा, और वहाँ सिर्फ़ थोड़े ही अफ़राद बचे रहेंगे। |
28. | वहाँ तुम इन्सान के हाथों से बने हुए लकड़ी और पत्थर के बुतों की ख़िदमत करोगे, जो न देख सकते, न सुन सकते, न खा सकते और न सूँघ सकते हैं। |
29. | वहीं तू रब्ब अपने ख़ुदा को तलाश करेगा, और अगर उसे पूरे दिल-ओ-जान से ढूँडे तो वह तुझे मिल भी जाएगा। |
30. | जब तू इस तक्लीफ़ में मुब्तला होगा और यह सारा कुछ तुझ पर से गुज़रेगा फिर आख़िरकार रब्ब अपने ख़ुदा की तरफ़ रुजू करके उस की सुनेगा। |
31. | क्यूँकि रब्ब तेरा ख़ुदा रहीम ख़ुदा है। वह तुझे न तर्क करेगा और न बर्बाद करेगा। वह उस अह्द को नहीं भूलेगा जो उस ने क़सम खा कर तेरे बापदादा से बाँधा था। |
32. | दुनिया में इन्सान की तख़्लीक़ से ले कर आज तक माज़ी की तफ़्तीश कर। आस्मान के एक सिरे से दूसरे सिरे तक खोज लगा। क्या इस से पहले कभी इस तरह का मोजिज़ाना काम हुआ है? क्या किसी ने इस से पहले इस क़िस्म के अज़ीम काम की ख़बर सुनी है? |
33. | तू ने आग में से बोलती हुई अल्लाह की आवाज़ सुनी तो भी जीता बचा! क्या किसी और क़ौम के साथ ऐसा हुआ है? |
34. | क्या किसी और माबूद ने कभी जुरअत की है कि रब्ब की तरह पूरी क़ौम को एक मुल्क से निकाल कर अपनी मिल्कियत बनाया हो? उस ने ऐसा ही तुम्हारे साथ किया। उस ने तुम्हारे देखते देखते मिस्रियों को आज़्माया, उन्हें बड़े मोजिज़े दिखाए, उन के साथ जंग की, अपनी बड़ी क़ुद्रत और इख़तियार का इज़्हार किया और हौलनाक कामों से उन पर ग़ालिब आ गया। |
35. | तुझे यह सब कुछ दिखाया गया ताकि तू जान ले कि रब्ब ख़ुदा है। उस के सिवा कोई और नहीं है। |
36. | उस ने तुझे नसीहत देने के लिए आस्मान से अपनी आवाज़ सुनाई। ज़मीन पर उस ने तुझे अपनी अज़ीम आग दिखाई जिस में से तू ने उस की बातें सुनीं। |
37. | उसे तेरे बापदादा से पियार था, और उस ने तुझे जो उन की औलाद हैं चुन लिया। इस लिए वह ख़ुद हाज़िर हो कर अपनी अज़ीम क़ुद्रत से तुझे मिस्र से निकाल लाया। |
38. | उस ने तेरे आगे से तुझ से ज़ियादा बड़ी और ताक़तवर क़ौमें निकाल दीं ताकि तुझे उन का मुल्क मीरास में मिल जाए। आज ऐसा ही हो रहा है। |
39. | चुनाँचे आज जान ले और ज़हन में रख कि रब्ब आस्मान और ज़मीन का ख़ुदा है। कोई और माबूद नहीं है। |
40. | उस के अह्काम पर अमल कर जो मैं तुझे आज सुना रहा हूँ। फिर तू और तेरी औलाद काम्याब होंगे, और तू देर तक उस मुल्क में जीता रहेगा जो रब्ब तुझे हमेशा के लिए दे रहा है। |
41. | यह कह कर मूसा ने दरया-ए-यर्दन के मशरिक़ में पनाह के तीन शहर चुन लिए। |
42. | उन में वह शख़्स पनाह ले सकता था जिस ने दुश्मनी की बिना पर नहीं बल्कि ग़ैरइरादी तौर पर किसी को जान से मार दिया था। ऐसे शहर में पनाह लेने के सबब से उसे बदले में क़त्ल नहीं किया जा सकता था। |
43. | इस के लिए रूबिन के क़बीले के लिए मैदान-ए-मुर्तफ़ा का शहर बसर, जद के क़बीले के लिए जिलिआद का शहर रामात और मनस्सी के क़बीले के लिए बसन का शहर जौलान चुना गया। |
44. | दर्ज-ए-ज़ैल वह शरीअत है जो मूसा ने इस्राईलियों को पेश की। |
45. | मूसा ने यह अह्काम और हिदायात उस वक़्त पेश कीं जब वह मिस्र से निकल कर |
46. | दरया-ए-यर्दन के मशरिक़ी किनारे पर थे। बैत-फ़ग़ूर उन के मुक़ाबिल था, और वह अमोरी बादशाह सीहोन के मुल्क में ख़ैमाज़न थे। सीहोन की रिहाइश हस्बोन में थी और उसे इस्राईलियों से शिकस्त हुई थी जब वह मूसा की राहनुमाई में मिस्र से निकल आए थे। |
47. | उस के मुल्क पर क़ब्ज़ा करके उन्हों ने बसन के मुल्क पर भी फ़त्ह पाई थी जिस का बादशाह ओज था। इन दोनों अमोरी बादशाहों का यह पूरा इलाक़ा उन के हाथ में आ गया था। यह इलाक़ा दरया-ए-यर्दन के मशरिक़ में था। |
48. | उस की जुनूबी सरहद्द दरया-ए-अर्नोन के किनारे पर वाक़े शहर अरोईर थी जबकि उस की शिमाली सरहद्द सिर्यून यानी हर्मून पहाड़ थी। |
49. | दरया-ए-यर्दन का पूरा मशरिक़ी किनारा पिसगा के पहाड़ी सिलसिले के दामन में वाक़े बहीरा-ए-मुर्दार तक उस में शामिल था। |
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