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1. | ऐ आस्मान, मेरी बात पर ग़ौर कर! ऐ ज़मीन, मेरा गीत सुन! |
2. | मेरी तालीम बूँदा-बाँदी जैसी हो, मेरी बात शबनम की तरह ज़मीन पर पड़ जाए। वह बारिश की मानिन्द हो जो हरियाली पर बरसती है। |
3. | मैं रब्ब का नाम पुकारूँगा। हमारे ख़ुदा की अज़्मत की तम्जीद करो! |
4. | वह चटान है, और उस का काम कामिल है। उस की तमाम राहें रास्त हैं। वह वफ़ादार ख़ुदा है जिस में फ़रेब नहीं है बल्कि जो आदिल और दियानतदार है। |
5. | एक टेढ़ी और कजरौ नसल ने उस का गुनाह किया। वह उस के फ़र्ज़न्द नहीं बल्कि दाग़ साबित हुए हैं। |
6. | ऐ मेरी अहमक़ और बेसमझ क़ौम, क्या तुम्हारा रब्ब से ऐसा रवय्या ठीक है? वह तो तुम्हारा बाप और ख़ालिक़ है, जिस ने तुम्हें बनाया और क़ाइम किया। |
7. | क़दीम ज़माने को याद करना, माज़ी की नसलों पर तवज्जुह देना। अपने बाप से पूछना तो वह तुझे बता देगा, अपने बुज़ुर्गों से पता करना तो वह तुझे इत्तिला देंगे। |
8. | जब अल्लाह तआला ने हर क़ौम को उस का अपना अपना मौरूसी इलाक़ा दे कर तमाम इन्सानों को मुख़्तलिफ़ गुरोहों में अलग कर दिया तो उस ने क़ौमों की सरहद्दें इस्राईलियों की तादाद के मुताबिक़ मुक़र्रर कीं। |
9. | क्यूँकि रब्ब का हिस्सा उस की क़ौम है, याक़ूब को उस ने मीरास में पाया है। |
10. | यह क़ौम उसे रेगिस्तान में मिल गई, वीरान-ओ-सुन्सान बियाबान में जहाँ चारों तरफ़ हौलनाक आवाज़ें गूँजती थीं। उस ने उसे घेर कर उस की देख-भाल की, उसे अपनी आँख की पुतली की तरह बचाए रखा। |
11. | जब उक़ाब अपने बच्चों को उड़ना सिखाता है तो वह उन्हें घोंसले से निकाल कर उन के साथ उड़ता है। अगर वह गिर भी जाएँ तो वह हाज़िर है और उन के नीचे अपने परों को फैला कर उन्हें ज़मीन से टकरा जाने से बचाता है। रब्ब का इस्राईल के साथ यही सुलूक था। |
12. | रब्ब ने अकेले ही उस की राहनुमाई की। किसी अजनबी माबूद ने शिर्कत न की। |
13. | उस ने उसे रथ पर सवार करके मुल्क की बुलन्दियों पर से गुज़रने दिया और उसे खेत का फल खिला कर उसे चटान से शहद और सख़्त पत्थर से ज़ैतून का तेल मुहय्या किया। |
14. | उस ने उसे गाय की लस्सी और भेड़-बक्री का दूध चीदा भेड़ के बच्चों समेत खिलाया और उसे बसन के मोटे-ताज़े मेंढे, बक्रे और बेहतरीन अनाज अता किया। उस वक़्त तू आला अंगूर की उम्दा मै से लुत्फ़अन्दोज़ हुआ। |
15. | लेकिन जब यसूरून मोटा हो गया तो वह दोलत्तियाँ झाड़ने लगा। जब वह हलक़ तक भर कर तनोमन्द और फ़र्बा हुआ तो उस ने अपने ख़ुदा और ख़ालिक़ को रद्द किया, उस ने अपनी नजात की चटान को हक़ीर जाना। |
16. | अपने अजनबी माबूदों से उन्हों ने उस की ग़ैरत को जोश दिलाया, अपने घिनौने बुतों से उसे ग़ुस्सा दिलाया। |
17. | उन्हों ने बदरूहों को क़ुर्बानियाँ पेश कीं जो ख़ुदा नहीं हैं, ऐसे माबूदों को जिन से न वह और न उन के बापदादा वाक़िफ़ थे, क्यूँकि वह थोड़ी देर पहले वुजूद में आए थे। |
18. | तू वह चटान भूल गया जिस ने तुझे पैदा किया, वही ख़ुदा जिस ने तुझे जन्म दिया। |
19. | रब्ब ने यह देख कर उन्हें रद्द किया, क्यूँकि वह अपने बेटे-बेटियों से नाराज़ था। |
20. | उस ने कहा, “मैं अपना चिहरा उन से छुपा लूँगा। फिर पता लगेगा कि मेरे बग़ैर उन का क्या अन्जाम होता है। क्यूँकि वह सरासर बिगड़ गए हैं, उन में वफ़ादारी पाई नहीं जाती। |
21. | उन्हों ने उस की परस्तिश से जो ख़ुदा नहीं है मेरी ग़ैरत को जोश दिलाया, अपने बेकार बुतों से मुझे ग़ुस्सा दिलाया है। चुनाँचे मैं ख़ुद ही उन्हें ग़ैरत दिलाऊँगा, एक ऐसी क़ौम के ज़रीए जो हक़ीक़त में क़ौम नहीं है। एक नादान क़ौम के ज़रीए मैं उन्हें ग़ुस्सा दिलाऊँगा। |
22. | क्यूँकि मेरे ग़ुस्से से आग भड़क उठी है जो पाताल की तह तक पहुँचेगी और ज़मीन और उस की पैदावार हड़प करके पहाड़ों की बुन्यादों को जला देगी। |
23. | मैं उन पर मुसीबत पर मुसीबत आने दूँगा और अपने तमाम तीर उन पर चलाऊँगा। |
24. | भूक के मारे उन की ताक़त जाती रहेगी, और वह बुख़ार और वबाई अमराज़ का लुक़्मा बनेंगे। मैं उन के ख़िलाफ़ फाड़ने वाले जानवर और ज़हरीले साँप भेज दूँगा। |
25. | बाहर तल्वार उन्हें बेऔलाद कर देगी, और घर में दह्शत फैल जाएगी। शीरख़्वार बच्चे, नौजवान लड़के-लड़कियाँ और बुज़ुर्ग सब उस की गिरिफ़्त में आ जाएँगे। |
26. | मुझे कहना चाहिए था कि मैं उन्हें चिकना-चूर करके इन्सानों में से उन का नाम-ओ-निशान मिटा दूँगा। |
27. | लेकिन अन्देशा था कि दुश्मन ग़लत मतलब निकाल कर कहे, ‘हम ख़ुद उन पर ग़ालिब आए, इस में रब्ब का हाथ नहीं है’।” |
28. | क्यूँकि यह क़ौम बेसमझ और हिक्मत से ख़ाली है। |
29. | काश वह दानिशमन्द हो कर यह बात समझें! काश वह जान लें कि उन का क्या अन्जाम है। |
30. | क्यूँकि दुश्मन का एक आदमी किस तरह हज़ार इस्राईलियों का ताक़्क़ुब कर सकता है? उस के दो मर्द किस तरह दस हज़ार इस्राईलियों को भगा सकते हैं? वजह सिर्फ़ यह है कि उन की चटान ने उन्हें दुश्मन के हाथ बेच दिया। रब्ब ने ख़ुद उन्हें दुश्मन के क़ब्ज़े में कर दिया। |
31. | हमारे दुश्मन ख़ुद मानते हैं कि इस्राईल की चटान हमारी चटान जैसी नहीं है। |
32. | उन की बेल तो सदूम की बेल और अमूरा के बाग़ से है, उन के अंगूर ज़हरीले और उन के गुच्छे कड़वे हैं। |
33. | उन की मै साँपों का मुहलक ज़हर है। |
34. | रब्ब फ़रमाता है, “क्या मैं ने इन बातों पर मुहर लगा कर उन्हें अपने ख़ज़ाने में मह्फ़ूज़ नहीं रखा? |
35. | इन्तिक़ाम लेना मेरा ही काम है, मैं ही बदला लूँगा। एक वक़्त आएगा कि उन का पाँओ फिसलेगा। क्यूँकि उन की तबाही का दिन क़रीब है, उन का अन्जाम जल्द ही आने वाला है।” |
36. | यक़ीनन रब्ब अपनी क़ौम का इन्साफ़ करेगा। वह अपने ख़ादिमों पर तरस खाएगा जब देखेगा कि उन की ताक़त जाती रही है और कोई नहीं बचा। |
37. | उस वक़्त वह पूछेगा, “अब उन के देवता कहाँ हैं, वह चटान जिस की पनाह उन्हों ने ली? |
38. | वह देवता कहाँ हैं जिन्हों ने उन के बेहतरीन जानवर खाए और उन की मै की नज़रें पी लीं। वह तुम्हारी मदद के लिए उठें और तुम्हें पनाह दें। |
39. | अब जान लो कि मैं और सिर्फ़ मैं ख़ुदा हूँ। मेरे सिवा कोई और ख़ुदा नहीं है। मैं ही हलाक करता और मैं ही ज़िन्दा कर देता हूँ। मैं ही ज़ख़्मी करता और मैं ही शिफ़ा देता हूँ। कोई मेरे हाथ से नहीं बचा सकता। |
40. | मैं अपना हाथ आस्मान की तरफ़ उठा कर एलान करता हूँ कि मेरी अबदी हयात की क़सम, |
41. | जब मैं अपनी चमकती हुई तल्वार को तेज़ करके अदालत के लिए पकड़ लूँगा तो अपने मुख़ालिफ़ों से इन्तिक़ाम और अपने नफ़रत करने वालों से बदला लूँगा। |
42. | मेरे तीर ख़ून पी पी कर नशे में धुत हो जाएँगे, मेरी तल्वार मक़्तूलों और क़ैदियों के ख़ून और दुश्मन के सरदारों के सरों से सेर हो जाएगी।” |
43. | ऐ दीगर क़ौमो, उस की उम्मत के साथ ख़ुशी मनाओ! क्यूँकि वह अपने ख़ादिमों के ख़ून का इन्तिक़ाम लेगा। वह अपने मुख़ालिफ़ों से बदला ले कर अपने मुल्क और क़ौम का कफ़्फ़ारा देगा। |
44. | मूसा और यशूअ बिन नून ने आ कर इस्राईलियों को यह पूरा गीत सुनाया। |
45. | फिर मूसा ने उन से कहा, “आज मैं ने तुम्हें इन तमाम बातों से आगाह किया है। लाज़िम है कि वह तुम्हारे दिलों में बैठ जाएँ। अपनी औलाद को भी हुक्म दो कि एहतियात से इस शरीअत की तमाम बातों पर अमल करे। |
46. | फिर मूसा ने उन से कहा, “आज मैं ने तुम्हें इन तमाम बातों से आगाह किया है। लाज़िम है कि वह तुम्हारे दिलों में बैठ जाएँ। अपनी औलाद को भी हुक्म दो कि एहतियात से इस शरीअत की तमाम बातों पर अमल करे। |
47. | यह ख़ाली बातें नहीं बल्कि तुम्हारी ज़िन्दगी का सरचश्मा हैं। इन के मुताबिक़ चलने के बाइस तुम देर तक उस मुल्क में जीते रहोगे जिस पर तुम दरया-ए-यर्दन को पार करके क़ब्ज़ा करने वाले हो।” |
48. | उसी दिन रब्ब ने मूसा से कहा, |
49. | “पहाड़ी सिलसिले अबारीम के पहाड़ नबू पर चढ़ जा जो यरीहू के सामने लेकिन यर्दन के मशरिक़ी किनारे पर यानी मोआब के मुल्क में है। वहाँ से कनआन पर नज़र डाल, उस मुल्क पर जो मैं इस्राईलियों को दे रहा हूँ। |
50. | इस के बाद तू वहाँ मर कर अपने बापदादा से जा मिलेगा, बिलकुल उसी तरह जिस तरह तेरा भाई हारून होर पहाड़ पर मर कर अपने बापदादा से जा मिला है। |
51. | क्यूँकि तुम दोनों इस्राईलियों के रू-ब-रू बेवफ़ा हुए। जब तुम दश्त-ए-सीन में क़ादिस के क़रीब थे और मरीबा के चश्मे पर इस्राईलियों के सामने खड़े थे तो तुम ने मेरी क़ुद्दूसियत क़ाइम न रखी। |
52. | इस सबब से तू वह मुल्क सिर्फ़ दूर से देखेगा जो मैं इस्राईलियों को दे रहा हूँ। तू ख़ुद उस में दाख़िल नहीं होगा।” |
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