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1. | फिर वह दिन आया जब रब्ब ने इल्यास को आँधी में आस्मान पर उठा लिया। उस दिन इल्यास और इलीशा जिल्जाल शहर से रवाना हो कर सफ़र कर रहे थे। |
2. | रास्ते में इल्यास इलीशा से कहने लगा, “यहीं ठहर जाएँ, क्यूँकि रब्ब ने मुझे बैत-एल भेजा है।” लेकिन इलीशा ने इन्कार किया, “रब्ब और आप की हयात की क़सम, मैं आप को नहीं छोड़ूँगा।” चुनाँचे दोनों चलते चलते बैत-एल पहुँच गए। |
3. | नबियों का जो गुरोह वहाँ रहता था वह शहर से निकल कर उन से मिलने आया। इलीशा से मुख़ातिब हो कर उन्हों ने पूछा, “क्या आप को मालूम है कि आज रब्ब आप के आक़ा को आप के पास से उठा ले जाएगा?” इलीशा ने जवाब दिया, “जी, मुझे पता है। ख़ामोश!” |
4. | दुबारा इल्यास अपने साथी से कहने लगा, “इलीशा, यहीं ठहर जाएँ, क्यूँकि रब्ब ने मुझे यरीहू भेजा है।” इलीशा ने जवाब दिया, “रब्ब और आप की हयात की क़सम, मैं आप को नहीं छोड़ूँगा।” चुनाँचे दोनों चलते चलते यरीहू पहुँच गए। |
5. | नबियों का जो गुरोह वहाँ रहता था उस ने भी इलीशा के पास आ कर उस से पूछा, “क्या आप को मालूम है कि आज रब्ब आप के आक़ा को आप के पास से उठा ले जाएगा?” इलीशा ने जवाब दिया, “जी, मुझे पता है। ख़ामोश!” |
6. | इल्यास तीसरी बार इलीशा से कहने लगा, “यहीं ठहर जाएँ, क्यूँकि रब्ब ने मुझे दरया-ए-यर्दन के पास भेजा है।” इलीशा ने जवाब दिया, “रब्ब और आप की हयात की क़सम, मैं आप को नहीं छोड़ूँगा।” चुनाँचे दोनों आगे बढ़े। |
7. | पचास नबी भी उन के साथ चल पड़े। जब इल्यास और इलीशा दरया-ए-यर्दन के किनारे पर पहुँचे तो दूसरे उन से कुछ दूर खड़े हो गए। |
8. | इल्यास ने अपनी चादर उतार कर उसे लपेट लिया और उस के साथ पानी पर मारा। पानी तक़्सीम हुआ, और दोनों आदमी ख़ुश्क ज़मीन पर चलते हुए दरया में से गुज़र गए। |
9. | दूसरे किनारे पर पहुँच कर इल्यास ने इलीशा से कहा, “मेरे आप के पास से उठा लिए जाने से पहले मुझे बताएँ कि आप के लिए क्या करूँ?” इलीशा ने जवाब दिया, “मुझे आप की रूह का दुगना हिस्सा मीरास में मिले ।” |
10. | इल्यास बोला, “जो दरख़्वास्त आप ने की है उसे पूरा करना मुश्किल है। अगर आप मुझे उस वक़्त देख सकेंगे जब मुझे आप के पास से उठा लिया जाएगा तो मतलब होगा कि आप की दरख़्वास्त पूरी हो गई है, वर्ना नहीं।” |
11. | दोनों आपस में बातें करते हुए चल रहे थे कि अचानक एक आतिशीं रथ नज़र आया जिसे आतिशीं घोड़े खैंच रहे थे। रथ ने दोनों को अलग कर दिया, और इल्यास को आँधी में आस्मान पर उठा लिया गया। |
12. | यह देख कर इलीशा चिल्ला उठा, “हाय मेरे बाप, मेरे बाप! इस्राईल के रथ और उस के घोड़े!” इल्यास इलीशा की नज़रों से ओझल हुआ तो इलीशा ने ग़म के मारे अपने कपड़ों को फाड़ डाला। |
13. | इल्यास की चादर ज़मीन पर गिर गई थी। इलीशा उसे उठा कर दरया-ए-यर्दन के पास वापस चला। |
14. | चादर को पानी पर मार कर वह बोला, “रब्ब और इल्यास का ख़ुदा कहाँ है?” पानी तक़्सीम हुआ और वह बीच में से गुज़र गया। |
15. | यरीहू से आए नबी अब तक दरया के मग़रिबी किनारे पर खड़े थे। जब उन्हों ने इलीशा को अपने पास आते हुए देखा तो पुकार उठे, “इल्यास की रूह इलीशा पर ठहरी हुई है!” वह उस से मिलने गए और औंधे मुँह उस के सामने झुक कर |
16. | बोले, “हमारे 50 ताक़तवर आदमी ख़िदमत के लिए हाज़िर हैं। अगर इजाज़त हो तो हम उन्हें भेज देंगे ताकि वह आप के आक़ा को तलाश करें। हो सकता है रब्ब के रूह ने उसे उठा कर किसी पहाड़ या वादी में रख छोड़ा हो।” इलीशा ने मना करने की कोशिश की, “नहीं, उन्हें मत भेजना।” |
17. | लेकिन उन्हों ने यहाँ तक इस्रार किया कि आख़िरकार वह मान गया और कहा, “चलो, उन्हें भेज दें।” उन्हों ने 50 आदमियों को भेज दिया जो तीन दिन तक इल्यास का खोज लगाते रहे। लेकिन वह कहीं नज़र न आया। |
18. | हिम्मत हार कर वह यरीहू वापस आए जहाँ इलीशा ठहरा हुआ था। उस ने कहा, “क्या मैं ने नहीं कहा था कि न जाएँ?” |
19. | एक दिन यरीहू के आदमी इलीशा के पास आ कर शिकायत करने लगे, “हमारे आक़ा, आप ख़ुद देख सकते हैं कि इस शहर में अच्छा गुज़ारा होता है। लेकिन पानी ख़राब है, और नतीजे में बहुत दफ़ा बच्चे माँ के पेट में ही मर जाते हैं।” |
20. | इलीशा ने हुक्म दिया, “एक ग़ैरइस्तेमालशुदा बर्तन में नमक डाल कर उसे मेरे पास ले आएँ।” जब बर्तन उस के पास लाया गया |
21. | तो वह उसे ले कर शहर से निकला और चश्मे के पास गया। वहाँ उस ने नमक को पानी में डाल दिया और साथ साथ कहा, “रब्ब फ़रमाता है कि मैं ने इस पानी को बहाल कर दिया है। अब से यह कभी मौत या बच्चों के ज़ाए होने का बाइस नहीं बनेगा।” |
22. | उसी लम्हे पानी बहाल हो गया। इलीशा के कहने के मुताबिक़ यह आज तक ठीक रहा है। |
23. | यरीहू से इलीशा बैत-एल को वापस चला गया। जब वह रास्ते पर चलते हुए शहर से गुज़र रहा था तो कुछ लड़के शहर से निकल आए और उस का मज़ाक़ उड़ा कर चिल्लाने लगे, “ओए गंजे, इधर आ! ओए गंजे, इधर आ!” |
24. | इलीशा मुड़ गया और उन पर नज़र डाल कर रब्ब के नाम में उन पर लानत भेजी। तब दो रीछनयाँ जंगल से निकल कर लड़कों पर टूट पड़िं और कुल 42 लड़कों को फाड़ डाला। |
25. | इल्यास आगे निकला और चलते चलते कर्मिल पहाड़ के पास आया। वहाँ से वापस आ कर सामरिया पहुँच गया। |
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