← 2Kings (17/25) → |
1. | होसेअ बिन ऐला यहूदाह के बादशाह आख़ज़ की हुकूमत के 12वें साल में इस्राईल का बादशाह बना। सामरिया उस का दार-उल-हकूमत रहा, और उस की हुकूमत का दौरानिया 9 साल था। |
2. | होसेअ का चाल-चलन रब्ब को नापसन्द था, लेकिन इस्राईल के उन बादशाहों की निस्बत जो उस से पहले थे वह कुछ बेहतर था। |
3. | एक दिन असूर के बादशाह सल्मनसर ने इस्राईल पर हम्ला किया। तब होसेअ शिकस्त मान कर उस के ताबे हो गया। उसे असूर को ख़राज अदा करना पड़ा। |
4. | लेकिन चन्द साल के बाद वह सरकश हो गया। उस ने ख़राज का सालाना सिलसिला बन्द करके अपने सफ़ीरों को मिस्र के बादशाह सो के पास भेजा ताकि उस से मदद हासिल करे। जब असूर के बादशाह को पता चला तो उस ने उसे पकड़ कर जेल में डाल दिया। |
5. | सल्मनसर पूरे मुल्क में से गुज़र कर सामरिया तक पहुँच गया। तीन साल तक उसे शहर का मुहासरा करना पड़ा, |
6. | लेकिन आख़िरकार वह होसेअ की हुकूमत के नव्वें साल में काम्याब हुआ और शहर पर क़ब्ज़ा करके इस्राईलियों को जिलावतन कर दिया। उन्हें असूर ला कर उस ने कुछ ख़लह के इलाक़े में, कुछ जौज़ान के दरया-ए-ख़ाबूर के किनारे पर और कुछ मादियों के शहरों में बसाए। |
7. | यह सब कुछ इस लिए हुआ कि इस्राईलियों ने रब्ब अपने ख़ुदा का गुनाह किया था, हालाँकि वह उन्हें मिस्री बादशाह फ़िरऔन के क़ब्ज़े से रिहा करके मिस्र से निकाल लाया था। वह दीगर माबूदों की पूजा करते |
8. | और उन क़ौमों के रस्म-ओ-रिवाज की पैरवी करते जिन को रब्ब ने उन के आगे से निकाल दिया था। साथ साथ वह उन रस्मों से भी लिपटे रहे जो इस्राईल के बादशाहों ने शुरू की थीं। |
9. | इस्राईलियों को रब्ब अपने ख़ुदा के ख़िलाफ़ बहुत तरकीबें सूझीं जो ठीक नहीं थीं। सब से छोटी चौकी से ले कर बड़े से बड़े क़िलआबन्द शहर तक उन्हों ने अपने तमाम शहरों की ऊँची जगहों पर मन्दिर बनाए। |
10. | हर पहाड़ी की चोटी पर और हर घने दरख़्त के साय में उन्हों ने पत्थर के अपने देवताओं के सतून और यसीरत देवी के खम्बे खड़े किए। |
11. | हर ऊँची जगह पर वह बख़ूर जला देते थे, बिलकुल उन अक़्वाम की तरह जिन्हें रब्ब ने उन के आगे से निकाल दिया था। ग़रज़ इस्राईलियों से बहुत सी ऐसी शरीर हर्कतें सरज़द हुईं जिन को देख कर रब्ब को ग़ुस्सा आया। |
12. | वह बुतों की परस्तिश करते रहे अगरचि रब्ब ने इस से मना किया था। |
13. | बार बार रब्ब ने अपने नबियों और ग़ैबबीनों को इस्राईल और यहूदाह के पास भेजा था ताकि उन्हें आगाह करें, “अपनी शरीर राहों से बाज़ आओ। मेरे अह्काम और क़वाइद के ताबे रहो। उस पूरी शरीअत की पैरवी करो जो मैं ने तुम्हारे बापदादा को अपने ख़ादिमों यानी नबियों के वसीले से दे दी थी।” |
14. | लेकिन वह सुनने के लिए तय्यार नहीं थे बल्कि अपने बापदादा की तरह अड़ गए, क्यूँकि वह भी रब्ब अपने ख़ुदा पर भरोसा नहीं करते थे। |
15. | उन्हों ने उस के अह्काम और उस अह्द को रद्द किया जो उस ने उन के बापदादा से बाँधा था। जब भी उस ने उन्हें किसी बात से आगाह किया तो उन्हों ने उसे हक़ीर जाना। बेकार बुतों की पैरवी करते करते वह ख़ुद बेकार हो गए। वह गिर्द-ओ-नवाह की क़ौमों के नमूने पर चल पड़े हालाँकि रब्ब ने इस से मना किया था। |
16. | रब्ब अपने ख़ुदा के तमाम अह्काम को मुस्तरद करके उन्हों ने अपने लिए बछड़ों के दो मुजस्समे ढाल लिए और यसीरत देवी का खम्बा खड़ा कर दिया। वह सूरज, चाँद बल्कि आस्मान के पूरे लश्कर के सामने झुक गए और बाल देवता की परस्तिश करने लगे। |
17. | अपने बेटे-बेटियों को उन्हों ने अपने बुतों के लिए क़ुर्बान करके जला दिया। नुजूमियों से मश्वरा लेना और जादूगरी करना आम हो गया। ग़रज़ उन्हों ने अपने आप को बदी के हाथ में बेच कर ऐसा काम किया जो रब्ब को नापसन्द था और जो उसे ग़ुस्सा दिलाता रहा। |
18. | तब रब्ब का ग़ज़ब इस्राईल पर नाज़िल हुआ, और उस ने उन्हें अपने हुज़ूर से ख़ारिज कर दिया। सिर्फ़ यहूदाह का क़बीला मुल्क में बाक़ी रह गया। |
19. | लेकिन यहूदाह के अफ़राद भी रब्ब अपने ख़ुदा के अह्काम के ताबे रहने के लिए तय्यार नहीं थे। वह भी उन बुरे रस्म-ओ-रिवाज की पैरवी करते रहे जो इस्राईल ने शुरू किए थे। |
20. | फिर रब्ब ने पूरी की पूरी क़ौम को रद्द कर दिया। उन्हें तंग करके वह उन्हें लुटेरों के हवाले करता रहा, और एक दिन उस ने उन्हें भी अपने हुज़ूर से ख़ारिज कर दिया। |
21. | रब्ब ने ख़ुद इस्राईल के शिमाली क़बीलों को दाऊद के घराने से अलग कर दिया था, और उन्हों ने यरुबिआम बिन नबात को अपना बादशाह बना लिया था। लेकिन यरुबिआम ने इस्राईल को एक संगीन गुनाह करने पर उकसा कर रब्ब की पैरवी करने से दूर किए रखा। |
22. | इस्राईली यरुबिआम के बुरे नमूने पर चलते रहे और कभी इस से बाज़ न आए। |
23. | यही वजह है कि जो कुछ रब्ब ने अपने ख़ादिमों यानी नबियों की मारिफ़त फ़रमाया था वह पूरा हुआ। उस ने उन्हें अपने हुज़ूर से ख़ारिज कर दिया, और दुश्मन उन्हें क़ैदी बना कर असूर ले गया जहाँ वह आज तक ज़िन्दगी गुज़ारते हैं। |
24. | असूर के बादशाह ने बाबल, कूता, अव्वा, हमात और सिफ़र्वाइम से लोगों को इस्राईल में ला कर सामरिया के इस्राईलियों से ख़ाली किए गए शहरों में आबाद किया। यह लोग सामरिया पर क़ब्ज़ा करके उस के शहरों में बसने लगे। |
25. | लेकिन आते वक़्त वह रब्ब की परस्तिश नहीं करते थे, इस लिए रब्ब ने उन के दर्मियान शेरबबर भेज दिए जिन्हों ने कई एक को फाड़ डाला। |
26. | असूर के बादशाह को इत्तिला दी गई, “जिन लोगों को आप ने जिलावतन करके सामरिया के शहरों में आबाद किया है वह नहीं जानते कि उस मुल्क का देवता किन किन बातों का तक़ाज़ा करता है। नतीजे में उस ने उन के दर्मियान शेरबबर भेज दिए हैं जो उन्हें फाड़ रहे हैं। और वजह यही है कि वह उस की सहीह पूजा करने से वाक़िफ़ नहीं हैं।” |
27. | यह सुन कर असूर के बादशाह ने हुक्म दिया, “सामरिया से यहाँ लाए गए इमामों में से एक को चुन लो जो अपने वतन लौट कर वहाँ दुबारा आबाद हो जाए और लोगों को सिखाए कि उस मुल्क का देवता अपनी पूजा के लिए किन किन बातों का तक़ाज़ा करता है।” |
28. | तब एक इमाम जिलावतनी से वापस आया। बैत-एल में आबाद हो कर उस ने नए बाशिन्दों को सिखाया कि रब्ब की मुनासिब इबादत किस तरह की जाती है। |
29. | लेकिन साथ साथ वह अपने ज़ाती देवताओं की पूजा भी करते रहे। शहर-ब-शहर हर क़ौम ने अपने अपने बुत बना कर उन तमाम ऊँची जगहों के मन्दिरों में खड़े किए जो सामरिया के लोगों ने बना छोड़े थे। |
30. | बाबल के बाशिन्दों ने सुक्कात-बनात के बुत, कूता के लोगों ने नैर्गल के मुजस्समे, हमात वालों ने असीमा के बुत |
31. | और अव्वा के लोगों ने निब्हाज़ और तर्ताक़ के मुजस्समे खड़े किए। सिफ़र्वाइम के बाशिन्दे अपने बच्चों को अपने देवताओं अद्रम्मलिक और अनम्मलिक के लिए क़ुर्बान करके जला देते थे। |
32. | ग़रज़ सब रब्ब की परस्तिश के साथ साथ अपने देवताओं की पूजा भी करते और अपने लोगों में से मुख़्तलिफ़ क़िस्म के अफ़राद को चुन कर पुजारी मुक़र्रर करते थे ताकि वह ऊँची जगहों के मन्दिरों को सँभालें। |
33. | वह रब्ब की इबादत भी करते और साथ साथ अपने देवताओं की उन क़ौमों के रिवाजों के मुताबिक़ इबादत भी करते थे जिन में से उन्हें यहाँ लाया गया था। |
34. | यह सिलसिला आज तक जारी है। सामरिया के बाशिन्दे अपने उन पुराने रिवाजों के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारते हैं और सिर्फ़ रब्ब की परस्तिश करने के लिए तय्यार नहीं होते। वह उस की हिदायात और अह्काम की पर्वा नहीं करते और उस शरीअत की पैरवी नहीं करते जो रब्ब ने याक़ूब की औलाद को दी थी। (रब्ब ने याक़ूब का नाम इस्राईल में बदल दिया था।) |
35. | क्यूँकि रब्ब ने इस्राईल की क़ौम के साथ अह्द बाँध कर उसे हुक्म दिया था, “दूसरे किसी भी माबूद की इबादत मत करना! उन के सामने झुक कर उन की ख़िदमत मत करना, न उन्हें क़ुर्बानियाँ पेश करना। |
36. | सिर्फ़ रब्ब की परस्तिश करो जो बड़ी क़ुद्रत और अज़ीम काम दिखा कर तुम्हें मिस्र से निकाल लाया। सिर्फ़ उसी के सामने झुक जाओ, सिर्फ़ उसी को अपनी क़ुर्बानियाँ पेश करो। |
37. | लाज़िम है कि तुम ध्यान से उन तमाम हिदायात, अह्काम और क़वाइद की पैरवी करो जो मैं ने तुम्हारे लिए क़लमबन्द कर दिए हैं। किसी और देवता की पूजा मत करना। |
38. | वह अह्द मत भूलना जो मैं ने तुम्हारे साथ बाँध लिया है, और दीगर माबूदों की परस्तिश न करो। |
39. | सिर्फ़ और सिर्फ़ रब्ब अपने ख़ुदा की इबादत करो। वही तुम्हें तुम्हारे तमाम दुश्मनों के हाथ से बचा लेगा।” |
40. | लेकिन लोग यह सुनने के लिए तय्यार नहीं थे बल्कि अपने पुराने रस्म-ओ-रिवाज के साथ लिपटे रहे। |
41. | चुनाँचे रब्ब की इबादत के साथ ही सामरिया के नए बाशिन्दे अपने बुतों की पूजा करते रहे। आज तक उन की औलाद यही कुछ करती आई है। |
← 2Kings (17/25) → |