← 2Corinthians (5/13) → |
1. | हम तो जानते हैं कि जब हमारी दुनियावी झोंपड़ी जिस में हम रहते हैं गिराई जाएगी तो अल्लाह हमें आस्मान पर एक मकान देगा, एक ऐसा अबदी घर जिसे इन्सानी हाथों ने नहीं बनाया होगा। |
2. | इस लिए हम इस झोंपड़ी में कराहते हैं और आस्मानी घर पहन लेने की शदीद आर्ज़ू रखते हैं, |
3. | क्यूँकि जब हम उसे पहन लेंगे तो हम नंगे नहीं पाए जाएँगे। |
4. | इस झोंपड़ी में रहते हुए हम बोझ तले कराहते हैं। क्यूँकि हम अपना फ़ानी लिबास उतारना नहीं चाहते बल्कि उस पर आस्मानी घर का लिबास पहन लेना चाहते हैं ताकि ज़िन्दगी वह कुछ निगल जाए जो फ़ानी है। |
5. | अल्लाह ने ख़ुद हमें इस मक़्सद के लिए तय्यार किया है और उसी ने हमें रूह-उल-क़ुद्स को आने वाले जलाल के बैआने के तौर पर दे दिया है। |
6. | चुनाँचे हम हमेशा हौसला रखते हैं। हम जानते हैं कि जब तक अपने बदन में रिहाइशपज़ीर हैं उस वक़्त तक ख़ुदावन्द के घर से दूर हैं। |
7. | हम ज़ाहिरी चीज़ों पर भरोसा नहीं करते बल्कि ईमान पर चलते हैं। |
8. | हाँ, हमारा हौसला बुलन्द है बल्कि हम ज़ियादा यह चाहते हैं कि अपने जिस्मानी घर से रवाना हो कर ख़ुदावन्द के घर में रहें। |
9. | लेकिन ख़्वाह हम अपने बदन में हों या न, हम इसी कोशिश में रहते हैं कि ख़ुदावन्द को पसन्द आएँ। |
10. | क्यूँकि लाज़िम है कि हम सब मसीह के तख़्त-ए-अदालत के सामने हाज़िर हो जाएँ। वहाँ हर एक को उस काम का अज्र मिलेगा जो उस ने अपने बदन में रहते हुए किया है, ख़्वाह वह अच्छा था या बुरा। |
11. | अब हम ख़ुदावन्द के ख़ौफ़ को जान कर लोगों को समझाने की कोशिश करते हैं। हम तो अल्लाह के सामने पूरे तौर पर ज़ाहिर हैं। और मैं उम्मीद रखता हूँ कि हम आप के ज़मीर के सामने भी ज़ाहिर हैं। |
12. | क्या हम यह बात करके दुबारा अपनी सिफ़ारिश कर रहे हैं? नहीं, आप को हम पर फ़ख़र करने का मौक़ा दे रहे हैं ताकि आप उन के जवाब में कुछ कह सकें जो ज़ाहिरी बातों पर शेख़ी मारते और दिली बातें नज़रअन्दाज़ करते हैं। |
13. | क्यूँकि अगर हम बेख़ुद हुए तो अल्लाह की ख़ातिर, और अगर होश में हैं तो आप की ख़ातिर। |
14. | बात यह है कि मसीह की मुहब्बत हमें मज्बूर कर देती है, क्यूँकि हम इस नतीजे पर पहुँच गए हैं कि एक सब के लिए मुआ। इस का मतलब है कि सब ही मर गए हैं। |
15. | और वह सब के लिए इस लिए मुआ ताकि जो ज़िन्दा हैं वह अपने लिए न जिएँ बल्कि उस के लिए जो उन की ख़ातिर मुआ और फिर जी उठा। |
16. | इस वजह से हम अब से किसी को भी दुनियावी निगाह से नहीं देखते। पहले तो हम मसीह को भी इस ज़ावीए से देखते थे, लेकिन यह वक़्त गुज़र गया है। |
17. | चुनाँचे जो मसीह में है वह नया मख़्लूक़ है। पुरानी ज़िन्दगी जाती रही और नई ज़िन्दगी शुरू हो गई है। |
18. | यह सब कुछ अल्लाह की तरफ़ से है जिस ने मसीह के वसीले से अपने साथ हमारा मेल-मिलाप कर लिया है। और उसी ने हमें मेल-मिलाप कराने की ख़िदमत की ज़िम्मादारी दी है। |
19. | इस ख़िदमत के तहत हम यह पैग़ाम सुनाते हैं कि अल्लाह ने मसीह के वसीले से अपने साथ दुनिया की सुलह कराई और लोगों के गुनाहों को उन के ज़िम्मे न लगाया। सुलह कराने का यह पैग़ाम उस ने हमारे सपुर्द कर दिया। |
20. | पस हम मसीह के एलची हैं और अल्लाह हमारे वसीले से लोगों को समझाता है। हम मसीह के वास्ते आप से मिन्नत करते हैं कि अल्लाह की सुलह की पेशकश को क़बूल करें ताकि उस की आप के साथ सुलह हो जाए। |
21. | मसीह बेगुनाह था, लेकिन अल्लाह ने उसे हमारी ख़ातिर गुनाह ठहराया ताकि हमें उस में रास्तबाज़ क़रार दिया जाए। |
← 2Corinthians (5/13) → |