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1. | मैं ने अपनी नज़र दुबारा उठाई तो एक आदमी को देखा जिस के हाथ में फ़ीता था। |
2. | मैं ने पूछा, “आप कहाँ जा रहे हैं?” उस ने जवाब दिया, “यरूशलम की पैमाइश करने जा रहा हूँ। मैं मालूम करना चाहता हूँ कि शहर की लम्बाई और चौड़ाई कितनी होनी चाहिए।” |
3. | तब वह फ़रिश्ता रवाना हुआ जो अब तक मुझ से बात कर रहा था। लेकिन रास्ते में एक और फ़रिश्ता उस से मिलने आया। |
4. | इस दूसरे फ़रिश्ते ने कहा, “भाग कर पैमाइश करने वाले नौजवान को बता दे, ‘इन्सान-ओ-हैवान की इतनी बड़ी तादाद होगी कि आइन्दा यरूशलम की फ़सील नहीं होगी। |
5. | रब्ब फ़रमाता है कि उस वक़्त मैं आग की चारदीवारी बन कर उस की हिफ़ाज़त करूँगा, मैं उस के दर्मियान रह कर उस की इज़्ज़त-ओ-जलाल का बाइस हूँगा’।” |
6. | रब्ब फ़रमाता है, “उठो, उठो! शिमाली मुल्क से भाग आओ। क्यूँकि मैं ने ख़ुद तुम्हें चारों तरफ़ मुन्तशिर कर दिया था। |
7. | लेकिन अब मैं फ़रमाता हूँ कि वहाँ से निकल आओ। सिय्यून के जितने लोग बाबल में रहते हैं वहाँ से बच निकलें!” |
8. | क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़्वाज जिस ने मुझे भेजा वह उन क़ौमों के बारे में जिन्हों ने तुम्हें लूट लिया फ़रमाता है, “जो तुम्हें छेड़े वह मेरी आँख की पुतली को छेड़ेगा। |
9. | इस लिए यक़ीन करो कि मैं अपना हाथ उन के ख़िलाफ़ उठाऊँगा। उन के अपने ग़ुलाम उन्हें लूट लेंगे।” तब तुम जान लोगे कि रब्ब-उल-अफ़्वाज ने मुझे भेजा है। |
10. | रब्ब फ़रमाता है, “ऐ सिय्यून बेटी, ख़ुशी के नारे लगा! क्यूँकि मैं आ रहा हूँ, मैं तेरे दर्मियान सुकूनत करूँगा। |
11. | उस दिन बहुत सी अक़्वाम मेरे साथ पैवस्त हो कर मेरी क़ौम का हिस्सा बन जाएँगी। मैं ख़ुद तेरे दर्मियान सुकूनत करूँगा।” तब तू जान लेगी कि रब्ब-उल-अफ़्वाज ने मुझे तेरे पास भेजा है। |
12. | मुक़द्दस मुल्क में यहूदाह रब्ब की मौरूसी ज़मीन बनेगा, और वह यरूशलम को दुबारा चुन लेगा। |
13. | तमाम इन्सान रब्ब के सामने ख़ामोश हो जाएँ, क्यूँकि वह उठ कर अपनी मुक़द्दस सुकूनतगाह से निकल आया है। |
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