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1. | काश तू मेरा सगा भाई होता, तब अगर बाहर तुझ से मुलाक़ात होती तो मैं तुझे बोसा देती और कोई न होता जो यह देख कर मुझे हक़ीर जानता। |
2. | मैं तेरी राहनुमाई करके तुझे अपनी माँ के घर में ले जाती, उस के घर में जिस ने मुझे तालीम दी। वहाँ मैं तुझे मसालेदार मै और अपने अनारों का रस पिलाती। |
3. | उस का बायाँ बाज़ू मेरे सर के नीचे होता और दायाँ बाज़ू मुझे गले लगाता है। |
4. | ऐ यरूशलम की बेटियो, क़सम खाओ कि जब तक मुहब्बत ख़ुद न चाहे तुम उसे न जगाओगी, न बेदार करोगी। |
5. | यह कौन है जो अपने मह्बूब का सहारा ले कर रेगिस्तान से चढ़ी आ रही है? सेब के दरख़्त तले मैं ने तुझे जगा दिया, वहाँ जहाँ तेरी माँ ने तुझे जन्म दिया, जहाँ उस ने दर्द-ए-ज़ह में मुब्तला हो कर तुझे पैदा किया। |
6. | मुझे मुहर की तरह अपने दिल पर, अपने बाज़ू पर लगाए रख! क्यूँकि मुहब्बत मौत जैसी ताक़तवर, और उस की सरगर्मी पाताल जैसी बेलचक है। वह दहकती आग, रब्ब का भड़कता शोला है। |
7. | पानी का बड़ा सैलाब भी मुहब्बत को बुझा नहीं सकता, बड़े दरया भी उसे बहा कर ले जा नहीं सकते। और अगर कोई मुहब्बत को पाने के लिए अपने घर की तमाम दौलत पेश भी करे तो भी उसे जवाब में हक़ीर ही जाना जाएगा। |
8. | हमारी छोटी बहन की छातियाँ नहीं हैं। हम अपनी बहन के लिए क्या करें अगर कोई उस से रिश्ता बाँधने आए? |
9. | अगर वह दीवार हो तो हम उस पर चाँदी का क़िलआबन्द इन्तिज़ाम बनाएँगे। अगर वह दरवाज़ा हो तो हम उसे देओदार के तख़्ते से मह्फ़ूज़ रखेंगे। |
10. | मैं दीवार हूँ, और मेरी छातियाँ मज़्बूत मीनार हैं। अब मैं उस की नज़र में ऐसी ख़ातून बन गई हूँ जिसे सलामती हासिल हुई है। |
11. | बाल-हामून में सुलेमान का अंगूर का बाग़ था। इस बाग़ को उस ने पहरेदारों के हवाले कर दिया। हर एक को उस की फ़सल के लिए चाँदी के हज़ार सिक्के देने थे। |
12. | लेकिन मेरा अपना अंगूर का बाग़ मेरे सामने ही मौजूद है। ऐ सुलेमान, चाँदी के हज़ार सिक्के तेरे लिए हैं, और 200 सिक्के उन के लिए जो उस की फ़सल की पहरादारी करते हैं। |
13. | ऐ बाग़ में बसने वाली, मेरे साथी तेरी आवाज़ पर तवज्जुह दे रहे हैं। मुझे ही अपनी आवाज़ सुनने दे। |
14. | ऐ मेरे मह्बूब, ग़ज़ाल या जवान हिरन की तरह बल्सान के पहाड़ों की जानिब भाग जा!। |
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