Romans (9/16)  

1. मैं मसीह में सच्च कहता हूँ, झूट नहीं बोलता, और मेरा ज़मीर भी रूह-उल-क़ुद्स में इस की गवाही देता है
2. कि मैं दिल में अपने यहूदी हमवतनों के लिए शदीद ग़म और मुसल्सल दर्द मह्सूस करता हूँ।
3. काश मेरे भाई और ख़ूनी रिश्तेदार नजात पाएँ! इस के लिए मैं ख़ुद मलऊन और मसीह से जुदा होने के लिए भी तय्यार हूँ।
4. अल्लाह ने उन ही को जो इस्राईली हैं अपने फ़र्ज़न्द बनने के लिए मुक़र्रर किया था। उन ही पर उस ने अपना जलाल ज़ाहिर किया, उन ही के साथ अपने अह्द बाँधे और उन ही को शरीअत अता की। वही हक़ीक़ी इबादत और अल्लाह के वादों के हक़दार हैं,
5. वही इब्राहीम और याक़ूब की औलाद हैं और उन ही में से जिस्मानी लिहाज़ से मसीह आया। अल्लाह की तम्जीद-ओ-तारीफ़ अबद तक हो जो सब पर हुकूमत करता है! आमीन।
6. कहने का मतलब यह नहीं कि अल्लाह अपना वादा पूरा न कर सका। बात यह नहीं है बल्कि यह कि वह सब हक़ीक़ी इस्राईली नहीं हैं जो इस्राईली क़ौम से हैं।
7. और सब इब्राहीम की हक़ीक़ी औलाद नहीं हैं जो उस की नसल से हैं। क्यूँकि अल्लाह ने कलाम-ए-मुक़द्दस में इब्राहीम से फ़रमाया, “तेरी नसल इस्हाक़ ही से क़ाइम रहेगी।”
8. चुनाँचे लाज़िम नहीं कि इब्राहीम की तमाम फ़ित्रती औलाद अल्लाह के फ़र्ज़न्द हों बल्कि सिर्फ़ वही इब्राहीम की हक़ीक़ी औलाद समझे जाते हैं जो अल्लाह के वादे के मुताबिक़ उस के फ़र्ज़न्द बन गए हैं।
9. और वादा यह था, “मुक़र्ररा वक़्त पर मैं वापस आऊँगा तो सारा के बेटा होगा।”
10. लेकिन न सिर्फ़ सारा के साथ ऐसा हुआ बल्कि इस्हाक़ की बीवी रिब्क़ा के साथ भी। एक ही मर्द यानी हमारे बाप इस्हाक़ से उस के जुड़वाँ बच्चे पैदा हुए।
11. लेकिन बच्चे अभी पैदा नहीं हुए थे न उन्हों ने कोई नेक या बुरा काम किया था कि माँ को अल्लाह से एक पैग़ाम मिला। इस पैग़ाम से ज़ाहिर होता है कि अल्लाह लोगों को अपने इरादे के मुताबिक़ चुन लेता है।
12. और उस का यह चुनाओ उन के नेक आमाल पर मब्नी नहीं होता बल्कि उस के बुलावे पर। पैग़ाम यह था, “बड़ा छोटे की ख़िदमत करेगा।”
13. यह भी कलाम-ए-मुक़द्दस में लिखा है, “याक़ूब मुझे पियारा था, जबकि एसौ से मैं मुतनफ़्फ़िर रहा।”
14. क्या इस का मतलब यह है कि अल्लाह बेइन्साफ़ है? हरगिज़ नहीं!
15. क्यूँकि उस ने मूसा से कहा, “मैं जिस पर मेहरबान होना चाहूँ उस पर मेहरबान होता हूँ और जिस पर रहम करना चाहूँ उस पर रहम करता हूँ।”
16. चुनाँचे सब कुछ अल्लाह के रहम पर ही मब्नी है। इस में इन्सान की मर्ज़ी या कोशिश का कोई दख़ल नहीं।
17. यूँ अल्लाह अपने कलाम में मिस्र के बादशाह फ़िरऔन से मुख़ातिब हो कर फ़रमाता है, “मैं ने तुझे इस लिए बरपा किया है कि तुझ में अपनी क़ुद्रत का इज़्हार करूँ और यूँ तमाम दुनिया में मेरे नाम का परचार किया जाए।”
18. ग़रज़, यह अल्लाह ही की मर्ज़ी है कि वह किस पर रहम करे और किस को सख़्त कर दे।
19. शायद कोई कहे, “अगर यह बात है तो फिर अल्लाह किस तरह हम पर इल्ज़ाम लगा सकता है जब हम से ग़लतियाँ होती हैं? हम तो उस की मर्ज़ी का मुक़ाबला नहीं कर सकते।”
20. यह न कहें। आप इन्सान होते हुए कौन हैं कि अल्लाह के साथ बह्स-मुबाहसा करें? क्या जिस को तश्कील दिया गया है वह तश्कील देने वाले से कहता है, “तू ने मुझे इस तरह क्यूँ बना दिया?”
21. क्या कुम्हार का हक़ नहीं है कि गारे के एक ही लौंदे से मुख़्तलिफ़ क़िस्म के बर्तन बनाए, कुछ बाइज़्ज़त इस्तेमाल के लिए और कुछ ज़िल्लतआमेज़ इस्तेमाल के लिए?
22. यह बात अल्लाह पर भी सादिक़ आती है। गो वह अपना ग़ज़ब नाज़िल करना और अपनी क़ुद्रत ज़ाहिर करना चाहता था, लेकिन उस ने बड़े सब्र-ओ-तहम्मुल से वह बर्तन बर्दाश्त किए जिन पर उस का ग़ज़ब आना है और जो हलाकत के लिए तय्यार किए गए हैं।
23. उस ने यह इस लिए किया ताकि अपना जलाल कस्रत से उन बर्तनों पर ज़ाहिर करे जिन पर उस का फ़ज़्ल है और जो पहले से जलाल पाने के लिए तय्यार किए गए हैं।
24. और हम उन में से हैं जिन को उस ने चुन लिया है, न सिर्फ़ यहूदियों में से बल्कि ग़ैरयहूदियों में से भी।
25. यूँ वह ग़ैरयहूदियों के नाते से होसेअ की किताब में फ़रमाता है, “मैं उसे ‘मेरी क़ौम’ कहूँगा जो मेरी क़ौम न थी, और उसे ‘मेरी पियारी’ कहूँगा जो मुझे पियारी न थी।”
26. और “जहाँ उन्हें बताया गया कि ‘तुम मेरी क़ौम नहीं’ वहाँ वह ‘ज़िन्दा ख़ुदा के फ़र्ज़न्द’ कहलाएँगे।”
27. और यसायाह नबी इस्राईल के बारे में पुकारता है, “गो इस्राईली साहिल पर की रेत जैसे बेशुमार क्यूँ न हों तो भी सिर्फ़ एक बचे हुए हिस्से को नजात मिलेगी।
28. क्यूँकि रब्ब अपना फ़रमान मुकम्मल तौर पर और तेज़ी से दुनिया में पूरा करेगा।”
29. यसायाह ने यह बात एक और पेशगोई में भी की, “अगर रब्ब-उल-अफ़्वाज हमारी कुछ औलाद ज़िन्दा न छोड़ता तो हम सदूम की तरह मिट जाते, हमारा अमूरा जैसा सत्यानास हो जाता।”
30. इस से हम क्या कहना चाहते हैं? यह कि गो ग़ैरयहूदी रास्तबाज़ी की तलाश में न थे तो भी उन्हें रास्तबाज़ी हासिल हुई, ऐसी रास्तबाज़ी जो ईमान से पैदा हुई।
31. इस के बरअक्स इस्राईलियों को यह हासिल न हुई, हालाँकि वह ऐसी शरीअत की तलाश में रहे जो उन्हें रास्तबाज़ ठहराए।
32. इस की क्या वजह थी? यह कि वह अपनी तमाम कोशिशों में ईमान पर इन्हिसार नहीं करते थे बल्कि अपने नेक आमाल पर। उन्हों ने राह में पड़े पत्थर से ठोकर खाई।
33. यह बात कलाम-ए-मुक़द्दस में लिखी भी है, “देखो मैं सिय्यून में एक पत्थर रख देता हूँ जो ठोकर का बाइस बनेगा, एक चटान जो ठेस लगने का सबब होगी। लेकिन जो उस पर ईमान लाएगा उसे शर्मिन्दा नहीं किया जाएगा।”

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