Romans (7/16)  

1. भाइयो, आप तो शरीअत से वाक़िफ़ हैं। तो क्या आप नहीं जानते कि शरीअत उस वक़्त तक इन्सान पर इख़तियार रखती है जब तक वह ज़िन्दा है?
2. शादी की मिसाल लें। जब किसी औरत की शादी होती है तो शरीअत उस का शौहर के साथ बंधन उस वक़्त तक क़ाइम रखती है जब तक शौहर ज़िन्दा है। अगर शौहर मर जाए तो फिर वह इस बंधन से आज़ाद हो गई।
3. चुनाँचे अगर वह अपने ख़ावन्द के जीते जी किसी और मर्द की बीवी बन जाए तो उसे ज़िनाकार क़रार दिया जाता है। लेकिन अगर उस का शौहर मर जाए तो वह शरीअत से आज़ाद हुई। अब वह किसी दूसरे मर्द की बीवी बने तो ज़िनाकार नहीं ठहरती।
4. मेरे भाइयो, यह बात आप पर भी सादिक़ आती है। जब आप मसीह के बदन का हिस्सा बन गए तो आप मर कर शरीअत के इख़तियार से आज़ाद हो गए। अब आप उस के साथ पैवस्त हो गए हैं जिसे मुर्दों में से ज़िन्दा किया गया ताकि हम अल्लाह की ख़िदमत में फल लाएँ।
5. क्यूँकि जब हम अपनी पुरानी फ़ित्रत के तहत ज़िन्दगी गुज़ारते थे तो शरीअत हमारी गुनाहआलूदा रग़बतों को उकसाती थी। फिर यही रग़बतें हमारे आज़ा पर असरअन्दाज़ होती थीं और नतीजे में हम ऐसा फल लाते थे जिस का अन्जाम मौत है।
6. लेकिन अब हम मर कर शरीअत के बंधन से आज़ाद हो गए हैं। अब हम शरीअत की पुरानी ज़िन्दगी के तहत ख़िदमत नहीं करते बल्कि रूह-उल-क़ुद्स की नई ज़िन्दगी के तहत।
7. क्या इस का मतलब यह है कि शरीअत ख़ुद गुनाह है? हरगिज़ नहीं! बात तो यह है कि अगर शरीअत मुझ पर मेरे गुनाह ज़ाहिर न करती तो मुझे इन का कुछ पता न चलता। मसलन अगर शरीअत न बताती, “लालच न करना” तो मुझे दरहक़ीक़त मालूम न होता कि लालच क्या है।
8. लेकिन गुनाह ने इस हुक्म से फ़ाइदा उठा कर मुझ में हर तरह का लालच पैदा कर दिया। इस के बरअक्स जहाँ शरीअत नहीं होती वहाँ गुनाह मुर्दा है और ऐसा काम नहीं कर पाता।
9. एक वक़्त था जब मैं शरीअत के बग़ैर ज़िन्दगी गुज़ारता था। लेकिन जूँ ही हुक्म मेरे सामने आया तो गुनाह में जान आ गई
10. और मैं मर गया। इस तरह मालूम हुआ कि जिस हुक्म का मक़्सद मेरी ज़िन्दगी को क़ाइम रखना था वही मेरी मौत का बाइस बन गया।
11. क्यूँकि गुनाह ने हुक्म से फ़ाइदा उठा कर मुझे बहकाया और हुक्म से ही मुझे मार डाला।
12. लेकिन शरीअत ख़ुद मुक़द्दस है और इस के अह्काम मुक़द्दस, रास्त और अच्छे हैं।
13. क्या इस का मतलब यह है कि जो अच्छा है वही मेरे लिए मौत का बाइस बन गया? हरगिज़ नहीं! गुनाह ही ने यह किया। इस अच्छी चीज़ को इस्तेमाल करके उस ने मेरे लिए मौत पैदा कर दी ताकि गुनाह ज़ाहिर हो जाए। यूँ हुक्म के ज़रीए गुनाह की सन्जीदगी हद्द से ज़ियादा बढ़ जाती है।
14. हम जानते हैं कि शरीअत रुहानी है। लेकिन मेरी फ़ित्रत इन्सानी है, मुझे गुनाह की ग़ुलामी में बेचा गया है।
15. दरहक़ीक़त मैं नहीं समझता कि क्या करता हूँ। क्यूँकि मैं वह काम नहीं करता जो करना चाहता हूँ बल्कि वह जिस से मुझे नफ़रत है।
16. लेकिन अगर मैं वह करता हूँ जो नहीं करना चाहता तो ज़ाहिर है कि मैं मुत्तफ़िक़ हूँ कि शरीअत अच्छी है।
17. और अगर ऐसा है तो फिर मैं यह काम ख़ुद नहीं कर रहा बल्कि गुनाह जो मेरे अन्दर सुकूनत करता है।
18. मुझे मालूम है कि मेरे अन्दर यानी मेरी पुरानी फ़ित्रत में कोई अच्छी चीज़ नहीं बसती। अगरचि मुझ में नेक काम करने का इरादा तो मौजूद है लेकिन मैं उसे अमली जामा नहीं पहना सकता।
19. जो नेक काम मैं करना चाहता हूँ वह नहीं करता बल्कि वह बुरा काम करता हूँ जो करना नहीं चाहता।
20. अब अगर मैं वह काम करता हूँ जो मैं नहीं करना चाहता तो इस का मतलब है कि मैं ख़ुद नहीं कर रहा बल्कि वह गुनाह जो मेरे अन्दर बसता है।
21. चुनाँचे मुझे एक और तरह की शरीअत काम करती हुई नज़र आती है, और वह यह है कि जब मैं नेक काम करने का इरादा रखता हूँ तो बुराई आ मौजूद होती है।
22. हाँ, अपने बातिन में तो मैं ख़ुशी से अल्लाह की शरीअत को मानता हूँ।
23. लेकिन मुझे अपने आज़ा में एक और तरह की शरीअत दिखाई देती है, ऐसी शरीअत जो मेरी समझ की शरीअत के ख़िलाफ़ लड़ कर मुझे गुनाह की शरीअत का क़ैदी बना देती है, उस शरीअत का जो मेरे आज़ा में मौजूद है।
24. हाय, मेरी हालत कितनी बुरी है! मुझे इस बदन से जिस का अन्जाम मौत है कौन छुड़ाएगा?
25. ख़ुदा का शुक्र है जो हमारे ख़ुदावन्द ईसा मसीह के वसीले से यह काम करता है। ग़रज़ यही मेरी हालत है, मसीह के बग़ैर मैं अल्लाह की शरीअत की ख़िदमत सिर्फ़ अपनी समझ से कर सकता हूँ जबकि मेरी पुरानी फ़ित्रत गुनाह की शरीअत की ग़ुलाम रह कर उसी की ख़िदमत करती है।

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