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1. | हर शख़्स इख़तियार रखने वाले हुक्मरानों के ताबे रहे, क्यूँकि तमाम इख़तियार अल्लाह की तरफ़ से है। जो इख़तियार रखते हैं उन्हें अल्लाह की तरफ़ से मुक़र्रर किया गया है। |
2. | चुनाँचे जो हुक्मरान की मुख़ालफ़त करता है वह अल्लाह के फ़रमान की मुख़ालफ़त करता और यूँ अपने आप पर अल्लाह की अदालत लाता है। |
3. | क्यूँकि हुक्मरान उन के लिए ख़ौफ़ का बाइस नहीं होते जो सहीह काम करते हैं बल्कि उन के लिए जो ग़लत काम करते हैं। क्या आप हुक्मरान से ख़ौफ़ खाए बग़ैर ज़िन्दगी गुज़ारना चाहते हैं? तो फिर वह कुछ करें जो अच्छा है तो वह आप को शाबाश देगा। |
4. | क्यूँकि वह अल्लाह का ख़ादिम है जो आप की बेहतरी के लिए ख़िदमत करता है। लेकिन अगर आप ग़लत काम करें तो डरें, क्यूँकि वह अपनी तल्वार को ख़्वाह-म-ख़्वाह थामे नहीं रखता। वह अल्लाह का ख़ादिम है और उस का ग़ज़ब ग़लत काम करने वाले पर नाज़िल होता है। |
5. | इस लिए लाज़िम है कि आप हुकूमत के ताबे रहें, न सिर्फ़ सज़ा से बचने के लिए बल्कि इस लिए भी कि आप के ज़मीर पर दाग़ न लगे। |
6. | यही वजह है कि आप टैक्स अदा करते हैं, क्यूँकि सरकारी मुलाज़िम अल्लाह के ख़ादिम हैं जो इस ख़िदमत को सरअन्जाम देने में लगे रहते हैं। |
7. | चुनाँचे हर एक को वह कुछ दें जो उस का हक़ है, टैक्स लेने वाले को टैक्स और कस्टम ड्यूटी लेने वाले को कस्टम ड्यूटी। जिस का ख़ौफ़ रखना आप पर फ़र्ज़ है उस का ख़ौफ़ मानें और जिस का एहतिराम करना आप पर फ़र्ज़ है उस का एहतिराम करें। |
8. | किसी के भी क़र्ज़दार न रहें। सिर्फ़ एक क़र्ज़ है जो आप कभी नहीं उतार सकते, एक दूसरे से मुहब्बत रखने का क़र्ज़। यह करते रहें क्यूँकि जो दूसरों से मुहब्बत रखता है उस ने शरीअत के तमाम तक़ाज़े पूरे किए हैं। |
9. | मसलन शरीअत में लिखा है, “क़त्ल न करना, ज़िना न करना, चोरी न करना, लालच न करना।” और दीगर जितने अह्काम हैं इस एक ही हुक्म में समाए हुए हैं कि “अपने पड़ोसी से वैसी मुहब्बत रखना जैसी तू अपने आप से रखता है।” |
10. | जो किसी से मुहब्बत रखता है वह उस से ग़लत सुलूक नहीं करता। यूँ मुहब्बत शरीअत के तमाम तक़ाज़े पूरे करती है। |
11. | ऐसा करना लाज़िम है, क्यूँकि आप ख़ुद इस वक़्त की अहमियत को जानते हैं कि नींद से जाग उठने की घड़ी आ चुकी है। क्यूँकि जब हम ईमान लाए थे तो हमारी नजात इतनी क़रीब नहीं थी जितनी कि अब है। |
12. | रात ढलने वाली है और दिन निकलने वाला है। इस लिए आएँ, हम तारीकी के काम गन्दे कपड़ों की तरह उतार कर नूर के हथियार बाँध लें। |
13. | हम शरीफ़ ज़िन्दगी गुज़ारें, ऐसे लोगों की तरह जो दिन की रौशनी में चलते हैं। इस लिए लाज़िम है कि हम इन चीज़ों से बाज़ रहें : बदमस्तों की रंगरलियों और शराबनोशी से, ज़िनाकारी और अय्याशी से, और झगड़े और हसद से। |
14. | इस के बजाय ख़ुदावन्द ईसा मसीह को पहन लें और अपनी पुरानी फ़ित्रत की पर्वरिश यूँ न करें कि गुनाहआलूदा ख़्वाहिशात बेदार हो जाएँ। |
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