Romans (12/16)  

1. भाइयो, अल्लाह ने आप पर कितना रहम किया है! अब ज़रूरी है कि आप अपने बदनों को अल्लाह के लिए मख़्सूस करें, कि वह एक ऐसी ज़िन्दा और मुक़द्दस क़ुर्बानी बन जाएँ जो उसे पसन्द आए। ऐसा करने से आप उस की माक़ूल इबादत करेंगे।
2. इस दुनिया के साँचे में न ढल जाएँ बल्कि अल्लाह को आप की सोच की तज्दीद करने दें ताकि आप वह शक्ल-ओ-सूरत अपना सकें जो उसे पसन्द है। फिर आप अल्लाह की मर्ज़ी को पहचान सकेंगे, वह कुछ जो अच्छा, पसन्दीदा और कामिल है।
3. उस रहम की बिना पर जो अल्लाह ने मुझ पर किया मैं आप में से हर एक को हिदायत देता हूँ कि अपनी हक़ीक़ी हैसियत को जान कर अपने आप को इस से ज़ियादा न समझें। क्यूँकि जिस पैमाने से अल्लाह ने हर एक को ईमान बख़्शा है उसी के मुताबिक़ वह समझदारी से अपनी हक़ीक़ी हैसियत को जान ले।
4. हमारे एक ही जिस्म में बहुत से आज़ा हैं, और हर एक उज़्व का फ़र्क़ फ़र्क़ काम होता है।
5. इसि तरह गो हम बहुत हैं, लेकिन मसीह में एक ही बदन हैं, जिस में हर उज़्व दूसरों के साथ जुड़ा हुआ है।
6. अल्लाह ने अपने फ़ज़्ल से हर एक को मुख़्तलिफ़ नेमतों से नवाज़ा है। अगर आप की नेमत नुबुव्वत करना है तो अपने ईमान के मुताबिक़ नुबुव्वत करें।
7. अगर आप की नेमत ख़िदमत करना है तो ख़िदमत करें। अगर आप की नेमत तालीम देना है तो तालीम दें।
8. अगर आप की नेमत हौसलाअफ़्ज़ाई करना है तो हौसलाअफ़्ज़ाई करें। अगर आप की नेमत दूसरों की ज़रूरियात पूरी करना है तो ख़ुलूसदिली से यही करें। अगर आप की नेमत राहनुमाई करना है तो सरगर्मी से राहनुमाई करें। अगर आप की नेमत रहम करना है तो ख़ुशी से रहम करें।
9. आप की मुहब्बत महज़ दिखावे की न हो। जो कुछ बुरा है उस से नफ़रत करें और जो कुछ अच्छा है उस के साथ लिपटे रहें।
10. आप की एक दूसरे के लिए बरादराना मुहब्बत सरगर्म हो। एक दूसरे की इज़्ज़त करने में आप ख़ुद पहला क़दम उठाएँ।
11. आप का जोश ढीला न पड़ जाए बल्कि रुहानी सरगर्मी से ख़ुदावन्द की ख़िदमत करें।
12. उम्मीद में ख़ुश, मुसीबत में साबितक़दम और दुआ में लगे रहें।
13. जब मुक़द्दसीन ज़रूरतमन्द हैं तो उन की मदद करने में शरीक हों। मेहमान-नवाज़ी में लगे रहें।
14. जो आप को ईज़ा पहुँचाएँ उन को बर्कत दें। उन पर लानत मत करें बल्कि बर्कत चाहें।
15. ख़ुशी मनाने वालों के साथ ख़ुशी मनाएँ और रोने वालों के साथ रोएँ।
16. एक दूसरे के साथ अच्छे ताल्लुक़ात रखें। ऊँची सोच न रखें बल्कि दबे हुओं से रिफ़ाक़त रखें। अपने आप को दाना मत समझें।
17. अगर कोई आप से बुरा सुलूक करे तो बदले में उस से बुरा सुलूक न करना। ध्यान रखें कि जो कुछ सब की नज़र में अच्छा है वही अमल में लाएँ।
18. अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश करें कि जहाँ तक मुम्किन हो सब के साथ मेल-मिलाप रखें।
19. अज़ीज़ो, इन्तिक़ाम मत लें बल्कि अल्लाह के ग़ज़ब को बदला लेने का मौक़ा दें। क्यूँकि कलाम-ए-मुक़द्दस में लिखा है, “रब्ब फ़रमाता है, इन्तिक़ाम लेना मेरा ही काम है, मैं ही बदला लूँगा।”
20. इस के बजाय “अगर तेरा दुश्मन भूका हो तो उसे खाना खिला, अगर पियासा हो तो पानी पिला। क्यूँकि ऐसा करने से तू उस के सर पर जलते हुए कोइलों का ढेर लगाएगा।”
21. अपने पर बुराई को ग़ालिब न आने दें बल्कि भलाई से आप बुराई पर ग़ालिब आएँ।

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