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1. | फिर मैं ने देखा कि लेला मेरे सामने ही सिय्यून के पहाड़ पर खड़ा है। उस के साथ 1,44,000 अफ़राद खड़े थे जिन के माथों पर उस का और उस के बाप का नाम लिखा था। |
2. | और मैं ने आस्मान से एक ऐसी आवाज़ सुनी जो किसी बड़े आबशार और गरजते बादलों की ऊँची कड़क की मानिन्द थी। यह उस आवाज़ की मानिन्द थी जो सरोद बजाने वाले अपने साज़ों से निकालते हैं। |
3. | यह 1,44,000 अफ़राद तख़्त, चार जानदारों और बुज़ुर्गों के सामने खड़े एक नया गीत गा रहे थे, एक ऐसा गीत जो सिर्फ़ वही सीख सके जिन्हें लेले ने ज़मीन से ख़रीद लिया था। |
4. | यह वह मर्द हैं जिन्हों ने अपने आप को ख़वातीन के साथ आलूदा नहीं किया, क्यूँकि वह कुंवारे हैं। जहाँ भी लेला जाता है वहाँ वह भी जाते हैं। उन्हें बाक़ी इन्सानों में से फ़सल के पहले फल की हैसियत से अल्लाह और लेले के लिए ख़रीदा गया है। |
5. | उन के मुँह से कभी झूट नहीं निकला बल्कि वह बेइल्ज़ाम हैं। |
6. | फिर मैं ने एक और फ़रिश्ता देखा। वह मेरे सर के ऊपर ही हवा में उड़ रहा था। उस के पास अल्लाह की अबदी ख़ुशख़बरी थी ताकि वह उसे ज़मीन के बाशिन्दों यानी हर क़ौम, क़बीले, अहल-ए-ज़बान और उम्मत को सुनाए। |
7. | उस ने ऊँची आवाज़ से कहा, “ख़ुदा का ख़ौफ़ मान कर उसे जलाल दो, क्यूँकि उस की अदालत का वक़्त आ गया है। उसे सिज्दा करो जिस ने आस्मानों, ज़मीन, समुन्दर और पानी के चश्मों को ख़लक़ किया है।” |
8. | एक दूसरे फ़रिश्ते ने पहले के पीछे पीछे चलते हुए कहा, “वह गिर गया है! हाँ, अज़ीम बाबल गिर गया है, जिस ने तमाम क़ौमों को अपनी हरामकारी और मस्ती की मै पिलाई है।” |
9. | इन दो फ़रिश्तों के पीछे एक तीसरा फ़रिश्ता चल रहा था। उस ने ऊँची आवाज़ से कहा, “जो भी हैवान और उस के मुजस्समे को सिज्दा करे और जिसे भी उस का निशान अपने माथे या हाथ पर मिल जाए |
10. | वह अल्लाह के ग़ज़ब की मै से पिएगा, ऐसी मै जो मिलावट के बग़ैर ही अल्लाह के ग़ज़ब के पियाले में डाली गई है। मुक़द्दस फ़रिश्तों और लेले के हुज़ूर उसे आग और गंधक का अज़ाब सहना पड़ेगा। |
11. | और इन लोगों को सताने वाली यह आग जलती रहेगी, इस का धुआँ अबद तक चढ़ता रहेगा। जो हैवान और उस के मुजस्समे को सिज्दा करते हैं या जिन्हों ने उस के नाम का निशान लिया है वह न दिन, न रात को आराम पाएँगे।” |
12. | यहाँ मुक़द्दसीन को साबितक़दम रहने की ज़रूरत है, उन्हें जो अल्लाह के अह्काम पूरे करते और ईसा के वफ़ादार रहते हैं। |
13. | फिर मैं ने आस्मान से एक आवाज़ यह कहती हुई सुनी, “लिख, मुबारक हैं वह मुर्दे जो अब से ख़ुदावन्द में वफ़ात पाते हैं।” “जी हाँ,” रूह फ़रमाता है, “वह अपनी मेहनत-मशक़्क़त से आराम पाएँगे, क्यूँकि उन के नेक काम उन के पीछे हो कर उन के साथ चलेंगे।” |
14. | फिर मैं ने एक सफ़ेद बादल देखा, और उस पर कोई बैठा था जो इब्न-ए-आदम की मानिन्द था। उस के सर पर सोने का ताज और हाथ में तेज़ दरान्ती थी। |
15. | एक और फ़रिश्ता अल्लाह के घर से निकल कर ऊँची आवाज़ से पुकार कर उस से मुख़ातिब हुआ जो बादल पर बैठा था, “अपनी दरान्ती ले कर फ़सल की कटाई कर! क्यूँकि फ़सल काटने का वक़्त आ गया है और ज़मीन पर की फ़सल पक गई है।” |
16. | चुनाँचे बादल पर बैठने वाले ने अपनी दरान्ती ज़मीन पर चलाई और ज़मीन की फ़सल की कटाई हुई। |
17. | इस के बाद एक और फ़रिश्ता अल्लाह के उस घर से निकल आया जो आस्मान पर है, और उस के पास भी तेज़ दरान्ती थी। |
18. | फिर एक तीसरा फ़रिश्ता आया। उसे आग पर इख़तियार था। वह क़ुर्बानगाह से आया और ऊँची आवाज़ से पुकार कर तेज़ दरान्ती पकड़े हुए फ़रिश्ते से मुख़ातिब हुआ, “अपनी तेज़ दरान्ती ले कर ज़मीन की अंगूर की बेल से अंगूर के गुच्छे जमा कर, क्यूँकि उस के अंगूर पक गए हैं।” |
19. | फ़रिश्ते ने ज़मीन पर अपनी दरान्ती चलाई, उस के अंगूर जमा किए और उन्हें अल्लाह के ग़ज़ब के उस बड़े हौज़ में फैंक दिया जिस में अंगूर का रस निकाला जाता है। |
20. | यह हौज़ शहर से बाहर वाक़े था। उस में पड़े अंगूरों को इतना रौंदा गया कि हौज़ में से ख़ून बह निकला। ख़ून का यह सैलाब 300 किलोमीटर दूर तक पहुँच गया और वह इतना ज़ियादा था कि घोड़ों की लगामों तक पहुँच गया। |
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