Psalms (94/150)  

1. ऐ रब्ब, ऐ इन्तिक़ाम लेने वाले ख़ुदा! ऐ इन्तिक़ाम लेने वाले ख़ुदा, अपना नूर चमका।
2. ऐ दुनिया के मुन्सिफ़, उठ कर मग़रूरों को उन के आमाल की मुनासिब सज़ा दे।
3. ऐ रब्ब, बेदीन कब तक, हाँ कब तक फ़त्ह के नारे लगाएँगे?
4. वह कुफ़्र की बातें उगलते रहते, तमाम बदकार शेख़ी मारते रहते हैं।
5. ऐ रब्ब, वह तेरी क़ौम को कुचल रहे, तेरी मौरूसी मिल्कियत पर ज़ुल्म कर रहे हैं।
6. बेवाओं और अजनबियों को वह मौत के घाट उतार रहे, यतीमों को क़त्ल कर रहे हैं।
7. वह कहते हैं, “यह रब्ब को नज़र नहीं आता, याक़ूब का ख़ुदा ध्यान ही नहीं देता।”
8. ऐ क़ौम के नादानो, ध्यान दो! ऐ अहमक़ो, तुम्हें कब समझ आएगी?
9. जिस ने कान बनाया, क्या वह नहीं सुनता? जिस ने आँख को तश्कील दिया क्या वह नहीं देखता?
10. जो अक़्वाम को तम्बीह करता और इन्सान को तालीम देता है क्या वह सज़ा नहीं देता?
11. रब्ब इन्सान के ख़यालात जानता है, वह जानता है कि वह दम भर के ही हैं।
12. ऐ रब्ब, मुबारक है वह जिसे तू तर्बियत देता है, जिसे तू अपनी शरीअत की तालीम देता है
13. ताकि वह मुसीबत के दिनों से आराम पाए और उस वक़्त तक सुकून से ज़िन्दगी गुज़ारे जब तक बेदीनों के लिए गढ़ा तय्यार न हो।
14. क्यूँकि रब्ब अपनी क़ौम को रद्द नहीं करेगा, वह अपनी मौरूसी मिल्कियत को तर्क नहीं करेगा।
15. फ़ैसले दुबारा इन्साफ़ पर मब्नी होंगे, और तमाम दियानतदार दिल उस की पैरवी करेंगे।
16. कौन शरीरों के सामने मेरा दिफ़ा करेगा? कौन मेरे लिए बदकारों का सामना करेगा?
17. अगर रब्ब मेरा सहारा न होता तो मेरी जान जल्द ही ख़ामोशी के मुल्क में जा बसती।
18. ऐ रब्ब, जब मैं बोला, “मेरा पाँओ डगमगाने लगा है” तो तेरी शफ़्क़त ने मुझे सँभाला।
19. जब तश्वीशनाक ख़यालात मुझे बेचैन करने लगे तो तेरी तसल्लियों ने मेरी जान को ताज़ादम किया।
20. ऐ अल्लाह, क्या तबाही की हुकूमत तेरे साथ मुत्तहिद हो सकती है, ऐसी हुकूमत जो अपने फ़रमानों से ज़ुल्म करती है? हरगिज़ नहीं!
21. वह रास्तबाज़ की जान लेने के लिए आपस में मिल जाते और बेक़ुसूरों को क़ातिल ठहराते हैं।
22. लेकिन रब्ब मेरा क़िलआ बन गया है, और मेरा ख़ुदा मेरी पनाह की चटान साबित हुआ है।
23. वह उन की नाइन्साफ़ी उन पर वापस आने देगा और उन की शरीर हर्कतों के जवाब में उन्हें तबाह करेगा। रब्ब हमारा ख़ुदा उन्हें नेस्त करेगा।

  Psalms (94/150)