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1. | ज़बूर। सबत के लिए गीत। रब्ब का शुक्र करना भला है। ऐ अल्लाह तआला, तेरे नाम की मद्हसराई करना भला है। |
2. | सुब्ह को तेरी शफ़्क़त और रात को तेरी वफ़ा का एलान करना भला है, |
3. | ख़ासकर जब साथ साथ दस तारों वाला साज़, सितार और सरोद बजते हैं। |
4. | क्यूँकि ऐ रब्ब, तू ने मुझे अपने कामों से ख़ुश किया है, और तेरे हाथों के काम देख कर मैं ख़ुशी के नारे लगाता हूँ। |
5. | ऐ रब्ब, तेरे काम कितने अज़ीम, तेरे ख़यालात कितने गहरे हैं। |
6. | नादान यह नहीं जानता, अहमक़ को इस की समझ नहीं आती। |
7. | गो बेदीन घास की तरह फूट निकलते और बदकार सब फलते फूलते हैं, लेकिन आख़िरकार वह हमेशा के लिए हलाक हो जाएँगे। |
8. | मगर तू, ऐ रब्ब, अबद तक सरबुलन्द रहेगा। |
9. | क्यूँकि तेरे दुश्मन, ऐ रब्ब, तेरे दुश्मन यक़ीनन तबाह हो जाएँगे, बदकार सब तित्तर-बित्तर हो जाएँगे। |
10. | तू ने मुझे जंगली बैल की सी ताक़त दे कर ताज़ा तेल से मसह किया है। |
11. | मेरी आँख अपने दुश्मनों की शिकस्त से और मेरे कान उन शरीरों के अन्जाम से लुत्फ़अन्दोज़ हुए हैं जो मेरे ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए हैं। |
12. | रास्तबाज़ खजूर के दरख़्त की तरह फले फूलेगा, वह लुब्नान के देओदार के दरख़्त की तरह बढ़ेगा। |
13. | जो पौदे रब्ब की सुकूनतगाह में लगाए गए हैं वह हमारे ख़ुदा की बारगाहों में फलें फूलेंगे। |
14. | वह बुढ़ापे में भी फल लाएँगे और तर-ओ-ताज़ा और हरे-भरे रहेंगे। |
15. | उस वक़्त भी वह एलान करेंगे, “रब्ब रास्त है। वह मेरी चटान है, और उस में नारास्ती नहीं होती।” |
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