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1. | क़ोरह की औलाद का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए। ऐ रब्ब, पहले तू ने अपने मुल्क को पसन्द किया, पहले याक़ूब को बहाल किया। |
2. | पहले तू ने अपनी क़ौम का क़ुसूर मुआफ़ किया, उस का तमाम गुनाह ढाँप दिया। (सिलाह) |
3. | जो ग़ज़ब हम पर नाज़िल हो रहा था उस का सिलसिला तू ने रोक दिया, जो क़हर हमारे ख़िलाफ़ भड़क रहा था उसे छोड़ दिया। |
4. | ऐ हमारी नजात के ख़ुदा, हमें दुबारा बहाल कर। हम से नाराज़ होने से बाज़ आ। |
5. | क्या तू हमेशा तक हम से ग़ुस्से रहेगा? क्या तू अपना क़हर पुश्त-दर-पुश्त क़ाइम रखेगा? |
6. | क्या तू दुबारा हमारी जान को ताज़ादम नहीं करेगा ताकि तेरी क़ौम तुझ से ख़ुश हो जाए? |
7. | ऐ रब्ब, अपनी शफ़्क़त हम पर ज़ाहिर कर, अपनी नजात हमें अता फ़रमा। |
8. | मैं वह कुछ सुनूँगा जो ख़ुदा रब्ब फ़रमाएगा। क्यूँकि वह अपनी क़ौम और अपने ईमानदारों से सलामती का वादा करेगा, अलबत्ता लाज़िम है कि वह दुबारा हमाक़त में उलझ न जाएँ। |
9. | यक़ीनन उस की नजात उन के क़रीब है जो उस का ख़ौफ़ मानते हैं ताकि जलाल हमारे मुल्क में सुकूनत करे। |
10. | शफ़्क़त और वफ़ादारी एक दूसरे के गले लग गए हैं, रास्ती और सलामती ने एक दूसरे को बोसा दिया है। |
11. | सच्चाई ज़मीन से फूट निकलेगी और रास्ती आस्मान से ज़मीन पर नज़र डालेगी। |
12. | अल्लाह ज़रूर वह कुछ देगा जो अच्छा है, हमारी ज़मीन ज़रूर अपनी फ़सलें पैदा करेगी। |
13. | रास्ती उस के आगे आगे चल कर उस के क़दमों के लिए रास्ता तय्यार करेगी। |
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