Psalms (84/150)  

1. क़ोरह ख़ान्दान का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए। तर्ज़ : गित्तीत। ऐ रब्ब-उल-अफ़्वाज, तेरी सुकूनतगाह कितनी पियारी है!
2. मेरी जान रब्ब की बारगाहों के लिए तड़पती हुई निढाल है। मेरा दिल बल्कि पूरा जिस्म ज़िन्दा ख़ुदा को ज़ोर से पुकार रहा है।
3. ऐ रब्ब-उल-अफ़्वाज, ऐ मेरे बादशाह और ख़ुदा, तेरी क़ुर्बानगाहों के पास परिन्दे को भी घर मिल गया, अबाबील को भी अपने बच्चों को पालने का घोंसला मिल गया है।
4. मुबारक हैं वह जो तेरे घर में बसते हैं, वह हमेशा ही तेरी सिताइश करेंगे। (सिलाह)
5. मुबारक हैं वह जो तुझ में अपनी ताक़त पाते, जो दिल से तेरी राहों में चलते हैं।
6. वह बुका की ख़ुश्क वादी में से गुज़रते हुए उसे शादाब जगह बना लेते हैं, और बारिशें उसे बर्कतों से ढाँप देती हैं।
7. वह क़दम-ब-क़दम तक़वियत पाते हुए आगे बढ़ते, सब कोह-ए-सिय्यून पर अल्लाह के सामने हाज़िर हो जाते हैं।
8. ऐ रब्ब, ऐ लश्करों के ख़ुदा, मेरी दुआ सुन! ऐ याक़ूब के ख़ुदा, ध्यान दे! (सिलाह)
9. ऐ अल्लाह, हमारी ढाल पर करम की निगाह डाल। अपने मसह किए हुए ख़ादिम के चिहरे पर नज़र कर।
10. तेरी बारगाहों में एक दिन किसी और जगह पर हज़ार दिनों से बेहतर है। मुझे अपने ख़ुदा के घर के दरवाज़े पर हाज़िर रहना बेदीनों के घरों में बसने से कहीं ज़ियादा पसन्द है।
11. क्यूँकि रब्ब ख़ुदा आफ़्ताब और ढाल है, वही हमें फ़ज़्ल और इज़्ज़त से नवाज़ता है। जो दियानतदारी से चलें उन्हें वह किसी भी अच्छी चीज़ से महरूम नहीं रखता।
12. ऐ रब्ब-उल-अफ़्वाज, मुबारक है वह जो तुझ पर भरोसा रखता है!

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