Psalms (82/150)  

1. आसफ़ का ज़बूर। अल्लाह इलाही मजलिस में खड़ा है, माबूदों के दर्मियान वह अदालत करता है,
2. “तुम कब तक अदालत में ग़लत फ़ैसले करके बेदीनों की जानिबदारी करोगे? (सिलाह)
3. पस्तहालों और यतीमों का इन्साफ़ करो, मुसीबतज़दों और ज़रूरतमन्दों के हुक़ूक़ क़ाइम रखो।
4. पस्तहालों और ग़रीबों को बचा कर बेदीनों के हाथ से छुड़ाओ।”
5. लेकिन वह कुछ नहीं जानते, उन्हें समझ ही नहीं आती। वह तारीकी में टटोल टटोल कर घूमते फिरते हैं जबकि ज़मीन की तमाम बुन्यादें झूमने लगी हैं।
6. बेशक मैं ने कहा, “तुम ख़ुदा हो, सब अल्लाह तआला के फ़र्ज़न्द हो।
7. लेकिन तुम फ़ानी इन्सान की तरह मर जाओगे, तुम दीगर हुक्मरानों की तरह गिर जाओगे।”
8. ऐ अल्लाह, उठ कर ज़मीन की अदालत कर! क्यूँकि तमाम अक़्वाम तेरी ही मौरूसी मिल्कियत हैं।

  Psalms (82/150)