← Psalms (80/150) → |
1. | आसफ़ का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए। तर्ज़ : अह्द के सोसन। ऐ इस्राईल के गल्लाबान, हम पर ध्यान दे! तू जो यूसुफ़ की रेवड़ की तरह राहनुमाई करता है, हम पर तवज्जुह कर! तू जो करूबी फ़रिश्तों के दर्मियान तख़्तनशीन है, अपना नूर चमका! |
2. | इफ़्राईम, बिन्यमीन और मनस्सी के सामने अपनी क़ुद्रत को हर्कत में ला। हमें बचाने आ! |
3. | ऐ अल्लाह, हमें बहाल कर। अपने चिहरे का नूर चमका तो हम नजात पाएँगे। |
4. | ऐ रब्ब, लश्करों के ख़ुदा, तेरा ग़ज़ब कब तक भड़कता रहेगा, हालाँकि तेरी क़ौम तुझ से इल्तिजा कर रही है? |
5. | तू ने उन्हें आँसूओं की रोटी खिलाई और आँसूओं का पियाला ख़ूब पिलाया। |
6. | तू ने हमें पड़ोसियों के झगड़ों का निशाना बनाया। हमारे दुश्मन हमारा मज़ाक़ उड़ाते हैं। |
7. | ऐ लश्करों के ख़ुदा, हमें बहाल कर। अपने चिहरे का नूर चमका तो हम नजात पाएँगे। |
8. | अंगूर की जो बेल मिस्र में उग रही थी उसे तू उखाड़ कर मुल्क-ए-कनआन लाया। तू ने वहाँ की अक़्वाम को भगा कर यह बेल उन की जगह लगाई। |
9. | तू ने उस के लिए ज़मीन तय्यार की तो वह जड़ पकड़ कर पूरे मुल्क में फैल गई। |
10. | उस का साया पहाड़ों पर छा गया, और उस की शाख़ों ने देओदार के अज़ीम दरख़्तों को ढाँक लिया। |
11. | उस की टहनियाँ मग़रिब में समुन्दर तक फैल गईं, उस की डालियाँ मशरिक़ में दरया-ए-फ़ुरात तक पहुँच गईं। |
12. | तू ने उस की चारदीवारी क्यूँ गिरा दी? अब हर गुज़रने वाला उस के अंगूर तोड़ लेता है। |
13. | जंगल के सूअर उसे खा खा कर तबाह करते, खुले मैदान के जानवर वहाँ चरते हैं। |
14. | ऐ लश्करों के ख़ुदा, हमारी तरफ़ दुबारा रुजू फ़रमा! आस्मान से नज़र डाल कर हालात पर ध्यान दे। इस बेल की देख-भाल कर। |
15. | उसे मह्फ़ूज़ रख जिसे तेरे दहने हाथ ने ज़मीन में लगाया, उस बेटे को जिसे तू ने अपने लिए पाला है। |
16. | इस वक़्त वह कट कर नज़र-ए-आतिश हुआ है। तेरे चिहरे की डाँट-डपट से लोग हलाक हो जाते हैं। |
17. | तेरा हाथ अपने दहने हाथ के बन्दे को पनाह दे, उस आदमज़ाद को जिसे तू ने अपने लिए पाला था। |
18. | तब हम तुझ से दूर नहीं हो जाएँगे। बख़्श दे कि हमारी जान में जान आए तो हम तेरा नाम पुकारेंगे। |
19. | ऐ रब्ब, लश्करों के ख़ुदा, हमें बहाल कर। अपने चिहरे का नूर चमका तो हम नजात पाएँगे। |
← Psalms (80/150) → |