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| 1. | दाऊद का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए। तर्ज़ : गित्तीत। ऐ रब्ब हमारे आक़ा, तेरा नाम पूरी दुनिया में कितना शानदार है! तू ने आस्मान पर ही अपना जलाल ज़ाहिर कर दिया है। | 
| 2. | अपने मुख़ालिफ़ों के जवाब में तू ने छोटे बच्चों और शीरख़्वारों की ज़बान को तय्यार किया है ताकि वह तेरी क़ुव्वत से दुश्मन और कीनापर्वर को ख़त्म करें। | 
| 3. | जब मैं तेरे आस्मान का मुलाहज़ा करता हूँ जो तेरी उंगलियों का काम है, चाँद और सितारों पर ग़ौर करता हूँ जिन को तू ने अपनी अपनी जगह पर क़ाइम किया | 
| 4. | तो इन्सान कौन है कि तू उसे याद करे या आदमज़ाद कि तू उस का ख़याल रखे? | 
| 5. | तू ने उसे फ़रिश्तों से कुछ ही कम बनाया , तू ने उसे जलाल और इज़्ज़त का ताज पहनाया। | 
| 6. | तू ने उसे अपने हाथों के कामों पर मुक़र्रर किया, सब कुछ उस के पाँओ के नीचे कर दिया, | 
| 7. | ख़्वाह भेड़-बक्रियाँ हों ख़्वाह गाय-बैल, जंगली जानवर, | 
| 8. | परिन्दे, मछलियाँ या समुन्दरी राहों पर चलने वाले बाक़ी तमाम जानवर। | 
| 9. | ऐ रब्ब हमारे आक़ा, पूरी दुनिया में तेरा नाम कितना शानदार है! | 
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