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| 1. | आसफ़ का ज़बूर। ऐ अल्लाह, अजनबी क़ौमें तेरी मौरूसी ज़मीन में घुस आई हैं। उन्हों ने तेरी मुक़द्दस सुकूनतगाह की बेहुरमती करके यरूशलम को मल्बे का ढेर बना दिया है। | 
| 2. | उन्हों ने तेरे ख़ादिमों की लाशें परिन्दों को और तेरे ईमानदारों का गोश्त जंगली जानवरों को खिला दिया है। | 
| 3. | यरूशलम के चारों तरफ़ उन्हों ने ख़ून की नदियाँ बहाईं, और कोई बाक़ी न रहा जो मुर्दों को दफ़नाता। | 
| 4. | हमारे पड़ोसियों ने हमें मज़ाक़ का निशाना बना लिया है, इर्दगिर्द की क़ौमें हमारी हंसी उड़ाती और लान-तान करती हैं। | 
| 5. | ऐ रब्ब, कब तक? क्या तू हमेशा तक ग़ुस्से होगा? तेरी ग़ैरत कब तक आग की तरह भड़कती रहेगी? | 
| 6. | अपना ग़ज़ब उन अक़्वाम पर नाज़िल कर जो तुझे तस्लीम नहीं करतीं, उन सल्तनतों पर जो तेरे नाम को नहीं पुकारतीं। | 
| 7. | क्यूँकि उन्हों ने याक़ूब को हड़प करके उस की रिहाइशगाह तबाह कर दी है। | 
| 8. | हमें उन गुनाहों के क़ुसूरवार न ठहरा जो हमारे बापदादा से सरज़द हुए। हम पर रहम करने में जल्दी कर, क्यूँकि हम बहुत पस्तहाल हो गए हैं। | 
| 9. | ऐ हमारी नजात के ख़ुदा, हमारी मदद कर ताकि तेरे नाम को जलाल मिले। हमें बचा, अपने नाम की ख़ातिर हमारे गुनाहों को मुआफ़ कर। | 
| 10. | दीगर अक़्वाम क्यूँ कहें, “उन का ख़ुदा कहाँ है?” हमारे देखते देखते उन्हें दिखा कि तू अपने ख़ादिमों के ख़ून का बदला लेता है। | 
| 11. | क़ैदियों की आहें तुझ तक पहुँचीं, जो मरने को हैं उन्हें अपनी अज़ीम क़ुद्रत से मह्फ़ूज़ रख। | 
| 12. | ऐ रब्ब, जो लान-तान हमारे पड़ोसियों ने तुझ पर बरसाई है उसे सात गुना उन के सरों पर वापस ला। | 
| 13. | तब हम जो तेरी क़ौम और तेरी चरागाह की भेड़ें हैं अबद तक तेरी सिताइश करेंगे, पुश्त-दर-पुश्त तेरी हम्द-ओ-सना करेंगे। | 
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