Psalms (78/150)  

1. आसफ़ का ज़बूर। हिक्मत का गीत। ऐ मेरी क़ौम, मेरी हिदायत पर ध्यान दे, मेरे मुँह की बातों पर कान लगा।
2. मैं तम्सीलों में बात करूँगा, क़दीम ज़माने के मुअम्मे बयान करूँगा।
3. जो कुछ हम ने सुन लिया और हमें मालूम हुआ है, जो कुछ हमारे बापदादा ने हमें सुनाया है
4. उसे हम उन की औलाद से नहीं छुपाएँगे। हम आने वाली पुश्त को रब्ब के क़ाबिल-ए-तारीफ़ काम बताएँगे, उस की क़ुद्रत और मोजिज़ात बयान करेंगे।
5. क्यूँकि उस ने याक़ूब की औलाद को शरीअत दी, इस्राईल में अह्काम क़ाइम किए। उस ने फ़रमाया कि हमारे बापदादा यह अह्काम अपनी औलाद को सिखाएँ
6. ताकि आने वाली पुश्त भी उन्हें अपनाए, वह बच्चे जो अभी पैदा नहीं हुए थे। फिर उन्हें भी अपने बच्चों को सुनाना था।
7. क्यूँकि अल्लाह की मर्ज़ी है कि इस तरह हर पुश्त अल्लाह पर एतिमाद रख कर उस के अज़ीम काम न भूले बल्कि उस के अह्काम पर अमल करे।
8. वह नहीं चाहता कि वह अपने बापदादा की मानिन्द हों जो ज़िद्दी और सरकश नसल थे, ऐसी नसल जिस का दिल साबितक़दम नहीं था और जिस की रूह वफ़ादारी से अल्लाह से लिपटी न रही।
9. चुनाँचे इफ़्राईम के मर्द गो कमानों से लेस थे जंग के वक़्त फ़रार हुए।
10. वह अल्लाह के अह्द से वफ़ादार न रहे, उस की शरीअत पर अमल करने के लिए तय्यार नहीं थे।
11. जो कुछ उस ने किया था, जो मोजिज़े उस ने उन्हें दिखाए थे, इफ़्राईमी वह सब कुछ भूल गए।
12. मुल्क-ए-मिस्र के इलाक़े ज़ुअन में उस ने उन के बापदादा के देखते देखते मोजिज़े किए थे।
13. समुन्दर को चीर कर उस ने उन्हें उस में से गुज़रने दिया, और दोनों तरफ़ पानी मज़्बूत दीवार की तरह खड़ा रहा।
14. दिन को उस ने बादल के ज़रीए और रात भर चमकदार आग से उन की क़ियादत की।
15. रेगिस्तान में उस ने पत्थरों को चाक करके उन्हें समुन्दर की सी कस्रत का पानी पिलाया।
16. उस ने होने दिया कि चटान से नदियाँ फूट निकलें और पानी दरयाओं की तरह बहने लगे।
17. लेकिन वह उस का गुनाह करने से बाज़ न आए बल्कि रेगिस्तान में अल्लाह तआला से सरकश रहे।
18. जान-बूझ कर उन्हों ने अल्लाह को आज़्मा कर वह ख़ुराक माँगी जिस का लालच करते थे।
19. अल्लाह के ख़िलाफ़ कुफ़्र बक कर वह बोले, “क्या अल्लाह रेगिस्तान में हमारे लिए मेज़ बिछा सकता है?
20. बेशक जब उस ने चटान को मारा तो पानी फूट निकला और नदियाँ बहने लगीं। लेकिन क्या वह रोटी भी दे सकता है, अपनी क़ौम को गोश्त भी मुहय्या कर सकता है? यह तो नामुम्किन है।”
21. यह सुन कर रब्ब तैश में आ गया। याक़ूब के ख़िलाफ़ आग भड़क उठी, और उस का ग़ज़ब इस्राईल पर नाज़िल हुआ।
22. क्यूँ? इस लिए कि उन्हें अल्लाह पर यक़ीन नहीं था, वह उस की नजात पर भरोसा नहीं रखते थे।
23. इस के बावुजूद अल्लाह ने उन के ऊपर बादलों को हुक्म दे कर आस्मान के दरवाज़े खोल दिए।
24. उस ने खाने के लिए उन पर मन्न बरसाया, उन्हें आस्मान से रोटी खिलाई।
25. हर एक ने फ़रिश्तों की यह रोटी खाई बल्कि अल्लाह ने इतना खाना भेजा कि उन के पेट भर गए।
26. फिर उस ने आस्मान पर मशरिक़ी हवा चलाई और अपनी क़ुद्रत से जुनूबी हवा पहुँचाई।
27. उस ने गर्द की तरह उन पर गोश्त बरसाया, समुन्दर की रेत जैसे बेशुमार परिन्दे उन पर गिरने दिए।
28. ख़ैमागाह के बीच में ही वह गिर पड़े, उन के घरों के इर्दगिर्द ही ज़मीन पर आ गिरे।
29. तब वह खा खा कर ख़ूब सेर हो गए, क्यूँकि जिस का लालच वह करते थे वह अल्लाह ने उन्हें मुहय्या किया था।
30. लेकिन उन का लालच अभी पूरा नहीं हुआ था और गोश्त अभी उन के मुँह में था
31. कि अल्लाह का ग़ज़ब उन पर नाज़िल हुआ। क़ौम के खाते-पीते लोग हलाक हुए, इस्राईल के जवान ख़ाक में मिल गए।
32. इन तमाम बातों के बावुजूद वह अपने गुनाहों में इज़ाफ़ा करते गए और उस के मोजिज़ात पर ईमान न लाए।
33. इस लिए उस ने उन के दिन नाकामी में गुज़रने दिए, और उन के साल दह्शत की हालत में इख़तितामपज़ीर हुए।
34. जब कभी अल्लाह ने उन में क़त्ल-ओ-ग़ारत होने दी तो वह उसे ढूँडने लगे, वह मुड़ कर अल्लाह को तलाश करने लगे।
35. तब उन्हें याद आया कि अल्लाह हमारी चटान, अल्लाह तआला हमारा छुड़ाने वाला है।
36. लेकिन वह मुँह से उसे धोका देते, ज़बान से उसे झूट पेश करते थे।
37. न उन के दिल साबितक़दमी से उस के साथ लिपटे रहे, न वह उस के अह्द से वफ़ादार रहे।
38. तो भी अल्लाह रहमदिल रहा। उस ने उन्हें तबाह न किया बल्कि उन का क़ुसूर मुआफ़ करता रहा। बार बार वह अपने ग़ज़ब से बाज़ आया, बार बार अपना पूरा क़हर उन पर उतारने से गुरेज़ किया।
39. क्यूँकि उसे याद रहा कि वह फ़ानी इन्सान हैं, हवा का एक झोंका जो गुज़र कर कभी वापस नहीं आता।
40. रेगिस्तान में वह कितनी दफ़ा उस से सरकश हुए, कितनी मर्तबा उसे दुख पहुँचाया।
41. बार बार उन्हों ने अल्लाह को आज़्माया, बार बार इस्राईल के क़ुद्दूस को रंजीदा किया।
42. उन्हें उस की क़ुद्रत याद न रही, वह दिन जब उस ने फ़िद्या दे कर उन्हें दुश्मन से छुड़ाया,
43. वह दिन जब उस ने मिस्र में अपने इलाही निशान दिखाए, ज़ुअन के इलाक़े में अपने मोजिज़े किए।
44. उस ने उन की नहरों का पानी ख़ून में बदल दिया, और वह अपनी नदियों का पानी पी न सके।
45. उस ने उन के दर्मियान जूओं के ग़ोल भेजे जो उन्हें खा गईं, मेंढ़क जो उन पर तबाही लाए।
46. उन की पैदावार उस ने जवान टिड्डियों के हवाले की, उन की मेहनत का फल बालिग़ टिड्डियों के सपुर्द किया।
47. उन की अंगूर की बेलें उस ने ओलों से, उन के अन्जीर-तूत के दरख़्त सैलाब से तबाह कर दिए।
48. उन के मवेशी उस ने ओलों के हवाले किए, उन के रेवड़ बिजली के सपुर्द किए।
49. उस ने उन पर अपना शोलाज़न ग़ज़ब नाज़िल किया। क़हर, ख़फ़गी और मुसीबत यानी तबाही लाने वाले फ़रिश्तों का पूरा दस्ता उन पर हम्लाआवर हुआ।
50. उस ने अपने ग़ज़ब के लिए रास्ता तय्यार करके उन्हें मौत से न बचाया बल्कि मुहलक वबा की ज़द में आने दिया।
51. मिस्र में उस ने तमाम पहलौठों को मार डाला और हाम के ख़ैमों में मर्दानगी का पहला फल तमाम कर दिया।
52. फिर वह अपनी क़ौम को भेड़-बक्रियों की तरह मिस्र से बाहर ला कर रेगिस्तान में रेवड़ की तरह लिए फिरा।
53. वह हिफ़ाज़त से उन की क़ियादत करता रहा। उन्हें कोई डर नहीं था जबकि उन के दुश्मन समुन्दर में डूब गए।
54. यूँ अल्लाह ने उन्हें मुक़द्दस मुल्क तक पहुँचाया, उस पहाड़ तक जिसे उस के दहने हाथ ने हासिल किया था।
55. उन के आगे आगे वह दीगर क़ौमें निकालता गया। उन की ज़मीन उस ने तक़्सीम करके इस्राईलियों को मीरास में दी, और उन के ख़ैमों में उस ने इस्राईली क़बीले बसाए।
56. इस के बावुजूद वह अल्लाह तआला को आज़्माने से बाज़ न आए बल्कि उस से सरकश हुए और उस के अह्काम के तहत न रहे।
57. अपने बापदादा की तरह वह ग़द्दार बन कर बेवफ़ा हुए। वह ढीली कमान की तरह नाकाम हो गए।
58. उन्हों ने ऊँची जगहों की ग़लत क़ुर्बानगाहों से अल्लाह को ग़ुस्सा दिलाया और अपने बुतों से उसे रंजीदा किया।
59. जब अल्लाह को ख़बर मिली तो वह ग़ज़बनाक हुआ और इस्राईल को मुकम्मल तौर पर मुस्तरद कर दिया।
60. उस ने सैला में अपनी सुकूनतगाह छोड़ दी, वह ख़ैमा जिस में वह इन्सान के दर्मियान सुकूनत करता था।
61. अह्द का सन्दूक़ उस की क़ुद्रत और जलाल का निशान था, लेकिन उस ने उसे दुश्मन के हवाले करके जिलावतनी में जाने दिया।
62. अपनी क़ौम को उस ने तल्वार की ज़द में आने दिया, क्यूँकि वह अपनी मौरूसी मिल्कियत से निहायत नाराज़ था।
63. क़ौम के जवान नज़र-ए-आतिश हुए, और उस की कुंवारियों के लिए शादी के गीत गाए न गए।
64. उस के इमाम तल्वार से क़त्ल हुए, और उस की बेवाओं ने मातम न किया।
65. तब रब्ब जाग उठा, उस आदमी की तरह जिस की नींद उचाट हो गई हो, उस सूर्मे की मानिन्द जिस से नशे का असर उतर गया हो।
66. उस ने अपने दुश्मनों को मार मार कर भगा दिया और उन्हें हमेशा के लिए शर्मिन्दा कर दिया।
67. उस वक़्त उस ने यूसुफ़ का ख़ैमा रद्द किया और इफ़्राईम के क़बीले को न चुना
68. बल्कि यहूदाह के क़बीले और कोह-ए-सिय्यून को चुन लिया जो उसे पियारा था।
69. उस ने अपना मक़्दिस बुलन्दियों की मानिन्द बनाया, ज़मीन की मानिन्द जिसे उस ने हमेशा के लिए क़ाइम किया है।
70. उस ने अपने ख़ादिम दाऊद को चुन कर भेड़-बक्रियों के बाड़ों से बुलाया।
71. हाँ, उस ने उसे भेड़ों की देख-भाल से बुलाया ताकि वह उस की क़ौम याक़ूब, उस की मीरास इस्राईल की गल्लाबानी करे।
72. दाऊद ने ख़ुलूसदिली से उन की गल्लाबानी की, बड़ी महारत से उस ने उन की राहनुमाई की।

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