Psalms (77/150)  

1. आसफ़ का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए। यदूतून के लिए। मैं अल्लाह से फ़र्याद करके मदद के लिए चिल्लाता हूँ, मैं अल्लाह को पुकारता हूँ कि मुझ पर ध्यान दे।
2. अपनी मुसीबत में मैं ने रब्ब को तलाश किया। रात के वक़्त मेरे हाथ बिलानाग़ा उस की तरफ़ उठे रहे। मेरी जान ने तसल्ली पाने से इन्कार किया।
3. मैं अल्लाह को याद करता हूँ तो आहें भरने लगता हूँ, मैं सोच-बिचार में पड़ जाता हूँ तो रूह निढाल हो जाती है। (सिलाह)
4. तू मेरी आँखों को बन्द होने नहीं देता। मैं इतना बेचैन हूँ कि बोल भी नहीं सकता।
5. मैं क़दीम ज़माने पर ग़ौर करता हूँ, उन सालों पर जो बड़ी देर हुए गुज़र गए हैं।
6. रात को मैं अपना गीत याद करता हूँ। मेरा दिल महव-ए-ख़याल रहता और मेरी रूह तफ़्तीश करती रहती है।
7. “क्या रब्ब हमेशा के लिए रद्द करेगा, क्या आइन्दा हमें कभी पसन्द नहीं करेगा?
8. क्या उस की शफ़्क़त हमेशा के लिए जाती रही है? क्या उस के वादे अब से जवाब दे गए हैं?
9. क्या अल्लाह मेहरबानी करना भूल गया है? क्या उस ने ग़ुस्से में अपना रहम बाज़ रखा है?” (सिलाह)
10. मैं बोला, “इस से मुझे दुख है कि अल्लाह तआला का दहना हाथ बदल गया है।”
11. मैं रब्ब के काम याद करूँगा, हाँ क़दीम ज़माने के तेरे मोजिज़े याद करूँगा।
12. जो कुछ तू ने किया उस के हर पहलू पर ग़ौर-ओ-ख़ौज़ करूँगा, तेरे अज़ीम कामों में महव-ए-ख़याल रहूँगा।
13. ऐ अल्लाह, तेरी राह क़ुद्दूस है। कौन सा माबूद हमारे ख़ुदा जैसा अज़ीम है?
14. तू ही मोजिज़े करने वाला ख़ुदा है। अक़्वाम के दर्मियान तू ने अपनी क़ुद्रत का इज़्हार किया है।
15. बड़ी क़ुव्वत से तू ने इवज़ाना दे कर अपनी क़ौम, याक़ूब और यूसुफ़ की औलाद को रिहा कर दिया है। (सिलाह)
16. ऐ अल्लाह, पानी ने तुझे देखा, पानी ने तुझे देखा तो तड़पने लगा, गहराइयों तक लरज़ने लगा।
17. मूसलाधार बारिश बरसी, बादल गरज उठे और तेरे तीर इधर उधर चलने लगे।
18. आँधी में तेरी आवाज़ कड़कती रही, दुनिया बिजलियों से रौशन हुई, ज़मीन काँपती काँपती उछल पड़ी।
19. तेरी राह समुन्दर में से, तेरा रास्ता गहरे पानी में से गुज़रा, तो भी तेरे नक़्श-ए-क़दम किसी को नज़र न आए।
20. मूसा और हारून के हाथ से तू ने रेवड़ की तरह अपनी क़ौम की राहनुमाई की।

  Psalms (77/150)