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1. | आसफ़ का ज़बूर। हिक्मत का गीत। ऐ अल्लाह, तू ने हमें हमेशा के लिए क्यूँ रद्द किया है? अपनी चरागाह की भेड़ों पर तेरा क़हर क्यूँ भड़कता रहता है? |
2. | अपनी जमाअत को याद कर जिसे तू ने क़दीम ज़माने में ख़रीदा और इवज़ाना दे कर छुड़ाया ताकि तेरी मीरास का क़बीला हो। कोह-ए-सिय्यून को याद कर जिस पर तू सुकूनतपज़ीर रहा है। |
3. | अपने क़दम इन दाइमी खंडरात की तरफ़ बढ़ा। दुश्मन ने मक़्दिस में सब कुछ तबाह कर दिया है। |
4. | तेरे मुख़ालिफ़ों ने गरजते हुए तेरी जल्सागाह में अपने निशान गाड़ दिए हैं। |
5. | उन्हों ने गुंजान जंगल में लक्कड़हारों की तरह अपने कुल्हाड़े चलाए, |
6. | अपने कुल्हाड़ों और कुदालों से उस की तमाम कन्दाकारी को टुकड़े टुकड़े कर दिया है। |
7. | उन्हों ने तेरे मक़्दिस को भस्म कर दिया, फ़र्श तक तेरे नाम की सुकूनतगाह की बेहुरमती की है। |
8. | अपने दिल में वह बोले, “आओ, हम उन सब को ख़ाक में मिलाएँ!” उन्हों ने मुल्क में अल्लाह की हर इबादतगाह नज़र-ए-आतिश कर दी है। |
9. | अब हम पर कोई इलाही निशान ज़ाहिर नहीं होता। न कोई नबी हमारे पास रह गया, न कोई और मौजूद है जो जानता हो कि ऐसे हालात कब तक रहेंगे। |
10. | ऐ अल्लाह, हरीफ़ कब तक लान-तान करेगा, दुश्मन कब तक तेरे नाम की तक्फ़ीर करेगा? |
11. | तू अपना हाथ क्यूँ हटाता, अपना दहना हाथ दूर क्यूँ रखता है? उसे अपनी चादर से निकाल कर उन्हें तबाह कर दे! |
12. | अल्लाह क़दीम ज़माने से मेरा बादशाह है, वही दुनिया में नजातबख़्श काम अन्जाम देता है। |
13. | तू ही ने अपनी क़ुद्रत से समुन्दर को चीर कर पानी में अझ़्दहाओं के सरों को तोड़ डाला। |
14. | तू ही ने लिवियातान के सरों को चूर चूर करके उसे जंगली जानवरों को खिला दिया। |
15. | एक जगह तू ने चश्मे और नदियाँ फूटने दीं, दूसरी जगह कभी न सूखने वाले दरया सूखने दिए। |
16. | दिन भी तेरा है, रात भी तेरी ही है। चाँद और सूरज तेरे ही हाथ से क़ाइम हुए। |
17. | तू ही ने ज़मीन की हुदूद मुक़र्रर कीं, तू ही ने गर्मियों और सर्दियों के मौसम बनाए। |
18. | ऐ रब्ब, दुश्मन की लान-तान याद कर। ख़याल कर कि अहमक़ क़ौम तेरे नाम पर कुफ़्र बकती है। |
19. | अपने कबूतर की जान को वहशी जानवरों के हवाले न कर, हमेशा तक अपने मुसीबतज़दों की ज़िन्दगी को न भूल। |
20. | अपने अह्द का लिहाज़ कर, क्यूँकि मुल्क के तारीक कोने ज़ुल्म के मैदानों से भर गए हैं। |
21. | होने न दे कि मज़्लूमों को शर्मिन्दा हो कर पीछे हटना पड़े बल्कि बख़्श दे कि मुसीबतज़दा और ग़रीब तेरे नाम पर फ़ख़र कर सकें। |
22. | ऐ अल्लाह, उठ कर अदालत में अपने मुआमले का दिफ़ा कर। याद रहे कि अहमक़ दिन भर तुझे लान-तान करता है। |
23. | अपने दुश्मनों के नारे न भूल बल्कि अपने मुख़ालिफ़ों का मुसल्सल बढ़ता हुआ शोर-शराबा याद कर। |
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