Psalms (68/150)  

1. दाऊद का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए गीत। अल्लाह उठे तो उस के दुश्मन तित्तर-बित्तर हो जाएँगे, उस से नफ़रत करने वाले उस के सामने से भाग जाएँगे।
2. वह धुएँ की तरह बिखर जाएँगे। जिस तरह मोम आग के सामने पिघल जाता है उसी तरह बेदीन अल्लाह के हुज़ूर हलाक हो जाएँगे।
3. लेकिन रास्तबाज़ ख़ुश-ओ-ख़ुर्रम होंगे, वह अल्लाह के हुज़ूर जश्न मना कर फूले न समाएँगे।
4. अल्लाह की ताज़ीम में गीत गाओ, उस के नाम की मद्हसराई करो! जो रथ पर सवार बियाबान में से गुज़र रहा है उस के लिए रास्ता तय्यार करो। रब्ब उस का नाम है, उस के हुज़ूर ख़ुशी मनाओ!
5. अल्लाह अपनी मुक़द्दस सुकूनतगाह में यतीमों का बाप और बेवाओं का हामी है।
6. अल्लाह बेघरों को घरों में बसा देता और क़ैदियों को क़ैद से निकाल कर ख़ुशहाली अता करता है। लेकिन जो सरकश हैं वह झुलसे हुए मुल्क में रहेंगे।
7. ऐ अल्लाह, जब तू अपनी क़ौम के आगे आगे निकला, जब तू रेगिस्तान में क़दम-ब-क़दम आगे बढ़ा (सिलाह)
8. तो ज़मीन लरज़ उठी और आस्मान से बारिश टपकने लगी। हाँ, अल्लाह के हुज़ूर जो कोह-ए-सीना और इस्राईल का ख़ुदा है ऐसा ही हुआ।
9. ऐ अल्लाह, तू ने कस्रत की बारिश बरसने दी। जब कभी तेरा मौरूसी मुल्क निढाल हुआ तो तू ने उसे ताज़ादम किया।
10. यूँ तेरी क़ौम उस में आबाद हुई। ऐ अल्लाह, अपनी भलाई से तू ने उसे ज़रूरतमन्दों के लिए तय्यार किया।
11. रब्ब फ़रमान सादिर करता है तो ख़ुशख़बरी सुनाने वाली औरतों का बड़ा लश्कर निकलता है,
12. “फ़ौजों के बादशाह भाग रहे हैं। वह भाग रहे हैं और औरतें लूट का माल तक़्सीम कर रही हैं।
13. तुम क्यूँ अपने ज़ीन के दो बोरों के दर्मियान बैठे रहते हो? देखो, कबूतर के परों पर चाँदी और उस के शाहपरों पर पीला सोना चढ़ाया गया है।”
14. जब क़ादिर-ए-मुतलक़ ने वहाँ के बादशाहों को मुन्तशिर कर दिया तो कोह-ए-ज़ल्मोन पर बर्फ़ पड़ी।
15. कोह-ए-बसन इलाही पहाड़ है, कोह-ए-बसन की मुतअद्दिद चोटियाँ हैं।
16. ऐ पहाड़ की मुतअद्दिद चोटियो, तुम उस पहाड़ को क्यूँ रशक की निगाह से देखती हो जिसे अल्लाह ने अपनी सुकूनतगाह के लिए पसन्द किया है? यक़ीनन रब्ब वहाँ हमेशा के लिए सुकूनत करेगा।
17. अल्लाह के बेशुमार रथ और अनगिनत फ़ौजी हैं। ख़ुदावन्द उन के दर्मियान है, सीना का ख़ुदा मक़्दिस में है।
18. तू ने बुलन्दी पर चढ़ कर क़ैदियों का हुजूम गिरिफ़्तार कर लिया, तुझे इन्सानों से तुह्फ़े मिले, उन से भी जो सरकश हो गए थे। यूँ ही रब्ब ख़ुदा वहाँ सुकूनतपज़ीर हुआ।
19. रब्ब की तम्जीद हो जो रोज़-ब-रोज़ हमारा बोझ उठाए चलता है। अल्लाह हमारी नजात है। (सिलाह)
20. हमारा ख़ुदा वह ख़ुदा है जो हमें बार बार नजात देता है, रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़ हमें बार बार मौत से बचने के रास्ते मुहय्या करता है।
21. यक़ीनन अल्लाह अपने दुश्मनों के सरों को कुचल देगा। जो अपने गुनाहों से बाज़ नहीं आता उस की खोपड़ी वह पाश पाश करेगा।
22. रब्ब ने फ़रमाया, “मैं उन्हें बसन से वापस लाऊँगा, समुन्दर की गहराइयों से वापस पहुँचाऊँगा।
23. तब तू अपने पाँओ को दुश्मन के ख़ून में धो लेगा, और तेरे कुत्ते उसे चाट लेंगे।”
24. ऐ अल्लाह, तेरे जुलूस नज़र आ गए हैं, मेरे ख़ुदा और बादशाह के जुलूस मक़्दिस में दाख़िल होते हुए नज़र आ गए हैं।
25. आगे गुलूकार, फिर साज़ बजाने वाले चल रहे हैं। उन के आस-पास कुंवारियाँ दफ़ बजाते हुए फिर रही हैं।
26. “जमाअतों में अल्लाह की सिताइश करो! जितने भी इस्राईल के सरचश्मे से निकले हुए हो रब्ब की तम्जीद करो!”
27. वहाँ सब से छोटा भाई बिन्यमीन आगे चल रहा है, फिर यहूदाह के बुज़ुर्गों का पुरशोर हुजूम ज़बूलून और नफ़्ताली के बुज़ुर्गों के साथ चल रहा है।
28. ऐ अल्लाह, अपनी क़ुद्रत ब-रू-ए कार ला! ऐ अल्लाह, जो क़ुद्रत तू ने पहले भी हमारी ख़ातिर दिखाई उसे दुबारा दिखा!
29. उसे यरूशलम के ऊपर अपनी सुकूनतगाह से दिखा। तब बादशाह तेरे हुज़ूर तुह्फ़े लाएँगे।
30. सरकंडों में छुपे हुए दरिन्दे को मलामत कर! साँडों का जो ग़ोल बछड़ों जैसी क़ौमों में रहता है उसे डाँट! उन्हें कुचल दे जो चाँदी को पियार करते हैं। उन क़ौमों को मुन्तशिर कर जो जंग करने से लुत्फ़अन्दोज़ होती हैं।
31. मिस्र से सफ़ीर आएँगे, एथोपिया अपने हाथ अल्लाह की तरफ़ उठाएगा।
32. ऐ दुनिया की सल्तनतो, अल्लाह की ताज़ीम में गीत गाओ! रब्ब की मद्हसराई करो (सिलाह)
33. जो अपने रथ पर सवार हो कर क़दीम ज़माने के बुलन्दतरीन आस्मानों में से गुज़रता है। सुनो उस की आवाज़ जो ज़ोर से गरज रहा है।
34. अल्लाह की क़ुद्रत को तस्लीम करो! उस की अज़्मत इस्राईल पर छाई रहती और उस की क़ुद्रत आस्मान पर है।
35. ऐ अल्लाह, तू अपने मक़्दिस से ज़ाहिर होते वक़्त कितना महीब है। इस्राईल का ख़ुदा ही क़ौम को क़ुव्वत और ताक़त अता करता है। अल्लाह की तम्जीद हो!

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