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| 1. | मूसीक़ी के राहनुमा के लिए। ज़बूर। गीत। ऐ सारी ज़मीन, ख़ुशी के नारे लगा कर अल्लाह की मद्हसराई कर! |
| 2. | उस के नाम के जलाल की तम्जीद करो, उस की सिताइश उरूज तक ले जाओ! |
| 3. | अल्लाह से कहो, “तेरे काम कितने पुरजलाल हैं। तेरी बड़ी क़ुद्रत के सामने तेरे दुश्मन दबक कर तेरी ख़ुशामद करने लगते हैं। |
| 4. | तमाम दुनिया तुझे सिज्दा करे! वह तेरी तारीफ़ में गीत गाए, तेरे नाम की सिताइश करे।” (सिलाह) |
| 5. | आओ, अल्लाह के काम देखो! आदमज़ाद की ख़ातिर उस ने कितने पुरजलाल मोजिज़े किए हैं! |
| 6. | उस ने समुन्दर को ख़ुश्क ज़मीन में बदल दिया। जहाँ पहले पानी का तेज़ बहाओ था वहाँ से लोग पैदल ही गुज़रे। चुनाँचे आओ, हम उस की ख़ुशी मनाएँ। |
| 7. | अपनी क़ुद्रत से वह अबद तक हुकूमत करता है। उस की आँखें क़ौमों पर लगी रहती हैं ताकि सरकश उस के ख़िलाफ़ न उठें। (सिलाह) |
| 8. | ऐ उम्मतो, हमारे ख़ुदा की हम्द करो। उस की सिताइश दूर तक सुनाई दे। |
| 9. | क्यूँकि वह हमारी ज़िन्दगी क़ाइम रखता, हमारे पाँओ को डगमगाने नहीं देता। |
| 10. | क्यूँकि ऐ अल्लाह, तू ने हमें आज़्माया। जिस तरह चाँदी को पिघला कर साफ़ किया जाता है उसी तरह तू ने हमें पाक-साफ़ कर दिया है। |
| 11. | तू ने हमें जाल में फंसा दिया, हमारी कमर पर अज़ियतनाक बोझ डाल दिया। |
| 12. | तू ने लोगों के रथों को हमारे सरों पर से गुज़रने दिया, और हम आग और पानी की ज़द में आ गए। लेकिन फिर तू ने हमें मुसीबत से निकाल कर फ़रावानी की जगह पहुँचाया। |
| 13. | मैं भस्म होने वाली क़ुर्बानियाँ ले कर तेरे घर में आऊँगा और तेरे हुज़ूर अपनी मन्नतें पूरी करूँगा, |
| 14. | वह मन्नतें जो मेरे मुँह ने मुसीबत के वक़्त मानी थीं। |
| 15. | भस्म होने वाली क़ुर्बानी के तौर पर मैं तुझे मोटी-ताज़ी भेड़ें और मेंढों का धुआँ पेश करूँगा, साथ साथ बैल और बक्रे भी चढ़ाऊँगा। (सिलाह) |
| 16. | ऐ अल्लाह का ख़ौफ़ मानने वालो, आओ और सुनो! जो कुछ अल्लाह ने मेरी जान के लिए किया वह तुम्हें सुनाऊँगा। |
| 17. | मैं ने अपने मुँह से उसे पुकारा, लेकिन मेरी ज़बान उस की तारीफ़ करने के लिए तय्यार थी। |
| 18. | अगर मैं दिल में गुनाह की पर्वरिश करता तो रब्ब मेरी न सुनता। |
| 19. | लेकिन यक़ीनन रब्ब ने मेरी सुनी, उस ने मेरी इल्तिजा पर तवज्जुह दी। |
| 20. | अल्लाह की हम्द हो, जिस ने न मेरी दुआ रद्द की, न अपनी शफ़्क़त मुझ से बाज़ रखी। |
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