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1. | दाऊद का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए गीत। ऐ अल्लाह, तू ही इस लाइक़ है कि इन्सान कोह-ए-सिय्यून पर ख़ामोशी से तेरे इन्तिज़ार में रहे, तेरी तम्जीद करे और तेरे हुज़ूर अपनी मन्नतें पूरी करे। |
2. | तू दुआओं को सुनता है, इस लिए तमाम इन्सान तेरे हुज़ूर आते हैं। |
3. | गुनाह मुझ पर ग़ालिब आ गए हैं, तू ही हमारी सरकश हर्कतों को मुआफ़ कर। |
4. | मुबारक है वह जिसे तू चुन कर क़रीब आने देता है, जो तेरी बारगाहों में बस सकता है। बख़्श दे कि हम तेरे घर, तेरी मुक़द्दस सुकूनतगाह की अच्छी चीज़ों से सेर हो जाएँ। |
5. | ऐ हमारी नजात के ख़ुदा, हैबतनाक कामों से अपनी रास्ती क़ाइम करके हमारी सुन! क्यूँकि तू ज़मीन की तमाम हुदूद और दूरदराज़ समुन्दरों तक सब की उम्मीद है। |
6. | तू अपनी क़ुद्रत से पहाड़ों की मज़्बूत बुन्यादें डालता और क़ुव्वत से कमरबस्ता रहता है। |
7. | तू मुतलातिम समुन्दरों को थमा देता है, तू उन की गरजती लहरों और उम्मतों का शोर-शराबा ख़त्म कर देता है। |
8. | दुनिया की इन्तिहा के बाशिन्दे तेरे निशानात से ख़ौफ़ खाते हैं, और तू तुलू-ए-सुब्ह और ग़ुरूब-ए-आफ़्ताब को ख़ुशी मनाने देता है। |
9. | तू ज़मीन की देख-भाल करके उसे पानी की कस्रत और ज़रख़ेज़ी से नवाज़ता है, चुनाँचे अल्लाह की नदी पानी से भरी रहती है। ज़मीन को यूँ तय्यार करके तू इन्सान को अनाज की अच्छी फ़सल मुहय्या करता है। |
10. | तू खेत की रेघारियों को शराबोर करके उस के ढेलों को हमवार करता है। तू बारिश की बौछाड़ों से ज़मीन को नर्म करके उस की फ़सलों को बर्कत देता है। |
11. | तू साल को अपनी भलाई का ताज पहना देता है, और तेरे नक़्श-ए-क़दम तेल की फ़रावानी से टपकते हैं। |
12. | बियाबान की चरागाहें तेल की कस्रत से टपकती हैं, और पहाड़ियाँ भरपूर ख़ुशी से मुलब्बस हो जाती हैं। |
13. | सब्ज़ाज़ार भेड़-बक्रियों से आरास्ता हैं, वादियाँ अनाज से ढकी हुई हैं। सब ख़ुशी के नारे लगा रहे हैं, सब गीत गा रहे हैं! |
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