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1. | दाऊद का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए। यदूतून के लिए। मेरी जान ख़ामोशी से अल्लाह ही के इन्तिज़ार में है। उसी से मुझे मदद मिलती है। |
2. | वही मेरी चटान, मेरी नजात और मेरा क़िलआ है, इस लिए मैं ज़ियादा नहीं डगमगाऊँगा। |
3. | तुम कब तक उस पर हम्ला करोगे जो पहले ही झुकी हुई दीवार की मानिन्द है? तुम सब कब तक उसे क़त्ल करने पर तुले रहोगे जो पहले ही गिरने वाली चारदीवारी जैसा है? |
4. | उन के मन्सूबों का एक ही मक़्सद है, कि उसे उस के ऊँचे उह्दे से उतारें। उन्हें झूट से मज़ा आता है। मुँह से वह बर्कत देते, लेकिन अन्दर ही अन्दर लानत करते हैं। (सिलाह) |
5. | लेकिन तू ऐ मेरी जान, ख़ामोशी से अल्लाह ही के इन्तिज़ार में रह। क्यूँकि उसी से मुझे उम्मीद है। |
6. | सिर्फ़ वही मेरी जान की चटान, मेरी नजात और मेरा क़िलआ है, इस लिए मैं नहीं डगमगाऊँगा। |
7. | मेरी नजात और इज़्ज़त अल्लाह पर मब्नी है, वही मेरी मह्फ़ूज़ चटान है। अल्लाह में मैं पनाह लेता हूँ। |
8. | ऐ उम्मत, हर वक़्त उस पर भरोसा रख! उस के हुज़ूर अपने दिल का रंज-ओ-अलम पानी की तरह उंडेल दे। अल्लाह ही हमारी पनाहगाह है। (सिलाह) |
9. | इन्सान दम भर का ही है, और बड़े लोग फ़रेब ही हैं। अगर उन्हें तराज़ू में तोला जाए तो मिल कर उन का वज़न एक फूँक से भी कम है। |
10. | ज़ुल्म पर एतिमाद न करो, चोरी करने पर फ़ुज़ूल उम्मीद न रखो। और अगर दौलत बढ़ जाए तो तुम्हारा दिल उस से लिपट न जाए। |
11. | अल्लाह ने एक बात फ़रमाई बल्कि दो बार मैं ने सुनी है कि अल्लाह ही क़ादिर है। |
12. | ऐ रब्ब, यक़ीनन तू मेहरबान है, क्यूँकि तू हर एक को उस के आमाल का बदला देता है। |
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