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1. | दाऊद का सुनहरा गीत। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए। तर्ज़ : तबाह न कर। ए हुक्मरानो, क्या तुम वाक़ई मुन्सिफ़ाना फ़ैसला करते, क्या दियानतदारी से आदमज़ादों की अदालत करते हो? |
2. | हरगिज़ नहीं, तुम दिल में बदी करते और मुल्क में अपने ज़ालिम हाथों के लिए रास्ता बनाते हो। |
3. | बेदीन पैदाइश से ही सहीह राह से दूर हो गए हैं, झूट बोलने वाले माँ के पेट से ही भटक गए हैं। |
4. | वह साँप की तरह ज़हर उगलते हैं, उस बहरे नाग की तरह जो अपने कानों को बन्द कर रखता है |
5. | ताकि न जादूगर की आवाज़ सुने, न माहिर सपेरे के मंत्र। |
6. | ऐ अल्लाह, उन के मुँह के दाँत तोड़ डाल! ऐ रब्ब, जवान शेरबबरों के जबड़े को पाश पाश कर! |
7. | वह उस पानी की तरह ज़ाए हो जाएँ जो बह कर ग़ाइब हो जाता है। उन के चलाए हुए तीर बेअसर रहें। |
8. | वह धूप में घोंगे की मानिन्द हों जो चलता चलता पिघल जाता है। उन का अन्जाम उस बच्चे का सा हो जो माँ के पेट में ज़ाए हो कर कभी सूरज नहीं देखेगा। |
9. | इस से पहले कि तुम्हारी देगें काँटेदार टहनियों की आग मह्सूस करें अल्लाह उन सब को आँधी में उड़ा कर ले जाएगा। |
10. | आख़िरकार दुश्मन को सज़ा मिलेगी। यह देख कर रास्तबाज़ ख़ुश होगा, और वह अपने पाँओ को बेदीनों के ख़ून में धो लेगा। |
11. | तब लोग कहेंगे, “वाक़ई रास्तबाज़ को अज्र मिलता है, वाक़ई अल्लाह है जो दुनिया में लोगों की अदालत करता है!” |
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