Psalms (55/150)  

1. दाऊद का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए। हिक्मत का यह गीत तारदार साज़ों के साथ गाना है। ऐ अल्लाह, मेरी दुआ पर ध्यान दे, अपने आप को मेरी इल्तिजा से छुपाए न रख।
2. मुझ पर ग़ौर कर, मेरी सुन। मैं बेचैनी से इधर उधर घूमते हुए आहें भर रहा हूँ।
3. क्यूँकि दुश्मन शोर मचा रहा, बेदीन मुझे तंग कर रहा है। वह मुझ पर आफ़त लाने पर तुले हुए हैं, ग़ुस्से में मेरी मुख़ालफ़त कर रहे हैं।
4. मेरा दिल मेरे अन्दर तड़प रहा है, मौत की दह्शत मुझ पर छा गई है।
5. ख़ौफ़ और लरज़िश मुझ पर तारी हुई, हैबत मुझ पर ग़ालिब आ गई है।
6. मैं बोला, “काश मेरे कबूतर के से पर हों ताकि उड़ कर आराम-ओ-सुकून पा सकूँ!
7. तब मैं दूर तक भाग कर रेगिस्तान में बसेरा करता,
8. मैं जल्दी से कहीं पनाह लेता जहाँ तेज़ आँधी और तूफ़ान से मह्फ़ूज़ रहता।” (सिलाह)
9. ऐ रब्ब, उन में अब्तरी पैदा कर, उन की ज़बान में इख़तिलाफ़ डाल! क्यूँकि मुझे शहर में हर तरफ़ ज़ुल्म और झगड़े नज़र आते हैं।
10. दिन रात वह फ़सील पर चक्कर काटते हैं, और शहर फ़साद और ख़राबी से भरा रहता है।
11. उस के बीच में तबाही की हुकूमत है, और ज़ुल्म और फ़रेब उस के चौक को नहीं छोड़ते।
12. अगर कोई दुश्मन मेरी रुस्वाई करता तो क़ाबिल-ए-बर्दाश्त होता। अगर मुझ से नफ़रत करने वाला मुझे दबा कर अपने आप को सरफ़राज़ करता तो मैं उस से छुप जाता।
13. लेकिन तू ही ने यह किया, तू जो मुझ जैसा है, जो मेरा क़रीबी दोस्त और हमराज़ है।
14. मेरी तेरे साथ कितनी अच्छी रिफ़ाक़त थी जब हम हुजूम के साथ अल्लाह के घर की तरफ़ चलते गए!
15. मौत अचानक ही उन्हें अपनी गिरिफ़्त में ले ले। ज़िन्दा ही वह पाताल में उतर जाएँ, क्यूँकि बुराई ने उन में अपना घर बना लिया है।
16. लेकिन मैं पुकार कर अल्लाह से मदद माँगता हूँ, और रब्ब मुझे नजात देगा।
17. मैं हर वक़्त आह-ओ-ज़ारी करता और कराहता रहता हूँ, ख़्वाह सुब्ह हो, ख़्वाह दोपहर या शाम। और वह मेरी सुनेगा।
18. वह फ़िद्या दे कर मेरी जान को उन से छुड़ाएगा जो मेरे ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं। गो उन की तादाद बड़ी है वह मुझे आराम-ओ-सुकून देगा।
19. अल्लाह जो अज़ल से तख़्तनशीन है मेरी सुन कर उन्हें मुनासिब जवाब देगा। (सिलाह) क्यूँकि न वह तब्दील हो जाएँगे, न कभी अल्लाह का ख़ौफ़ मानेंगे।
20. उस शख़्स ने अपना हाथ अपने दोस्तों के ख़िलाफ़ उठाया, उस ने अपना अह्द तोड़ लिया है।
21. उस की ज़बान पर मक्खन की सी चिकनी-चुपड़ी बातें और दिल में जंग है। उस के तेल से ज़ियादा नर्म अल्फ़ाज़ हक़ीक़त में खैंची हुई तल्वारें हैं।
22. अपना बोझ रब्ब पर डाल तो वह तुझे सँभालेगा । वह रास्तबाज़ को कभी डगमगाने नहीं देगा।
23. लेकिन ऐ अल्लाह, तू उन्हें तबाही के गढ़े में उतरने देगा। ख़ूँख़ार और धोकेबाज़ आधी उम्र भी नहीं पाएँगे बल्कि जल्दी मरेंगे। लेकिन मैं तुझ पर भरोसा रखता हूँ।

  Psalms (55/150)