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1. | दाऊद का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए। हिक्मत का यह गीत तारदार साज़ों के साथ गाना है। ऐ अल्लाह, मेरी दुआ पर ध्यान दे, अपने आप को मेरी इल्तिजा से छुपाए न रख। |
2. | मुझ पर ग़ौर कर, मेरी सुन। मैं बेचैनी से इधर उधर घूमते हुए आहें भर रहा हूँ। |
3. | क्यूँकि दुश्मन शोर मचा रहा, बेदीन मुझे तंग कर रहा है। वह मुझ पर आफ़त लाने पर तुले हुए हैं, ग़ुस्से में मेरी मुख़ालफ़त कर रहे हैं। |
4. | मेरा दिल मेरे अन्दर तड़प रहा है, मौत की दह्शत मुझ पर छा गई है। |
5. | ख़ौफ़ और लरज़िश मुझ पर तारी हुई, हैबत मुझ पर ग़ालिब आ गई है। |
6. | मैं बोला, “काश मेरे कबूतर के से पर हों ताकि उड़ कर आराम-ओ-सुकून पा सकूँ! |
7. | तब मैं दूर तक भाग कर रेगिस्तान में बसेरा करता, |
8. | मैं जल्दी से कहीं पनाह लेता जहाँ तेज़ आँधी और तूफ़ान से मह्फ़ूज़ रहता।” (सिलाह) |
9. | ऐ रब्ब, उन में अब्तरी पैदा कर, उन की ज़बान में इख़तिलाफ़ डाल! क्यूँकि मुझे शहर में हर तरफ़ ज़ुल्म और झगड़े नज़र आते हैं। |
10. | दिन रात वह फ़सील पर चक्कर काटते हैं, और शहर फ़साद और ख़राबी से भरा रहता है। |
11. | उस के बीच में तबाही की हुकूमत है, और ज़ुल्म और फ़रेब उस के चौक को नहीं छोड़ते। |
12. | अगर कोई दुश्मन मेरी रुस्वाई करता तो क़ाबिल-ए-बर्दाश्त होता। अगर मुझ से नफ़रत करने वाला मुझे दबा कर अपने आप को सरफ़राज़ करता तो मैं उस से छुप जाता। |
13. | लेकिन तू ही ने यह किया, तू जो मुझ जैसा है, जो मेरा क़रीबी दोस्त और हमराज़ है। |
14. | मेरी तेरे साथ कितनी अच्छी रिफ़ाक़त थी जब हम हुजूम के साथ अल्लाह के घर की तरफ़ चलते गए! |
15. | मौत अचानक ही उन्हें अपनी गिरिफ़्त में ले ले। ज़िन्दा ही वह पाताल में उतर जाएँ, क्यूँकि बुराई ने उन में अपना घर बना लिया है। |
16. | लेकिन मैं पुकार कर अल्लाह से मदद माँगता हूँ, और रब्ब मुझे नजात देगा। |
17. | मैं हर वक़्त आह-ओ-ज़ारी करता और कराहता रहता हूँ, ख़्वाह सुब्ह हो, ख़्वाह दोपहर या शाम। और वह मेरी सुनेगा। |
18. | वह फ़िद्या दे कर मेरी जान को उन से छुड़ाएगा जो मेरे ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं। गो उन की तादाद बड़ी है वह मुझे आराम-ओ-सुकून देगा। |
19. | अल्लाह जो अज़ल से तख़्तनशीन है मेरी सुन कर उन्हें मुनासिब जवाब देगा। (सिलाह) क्यूँकि न वह तब्दील हो जाएँगे, न कभी अल्लाह का ख़ौफ़ मानेंगे। |
20. | उस शख़्स ने अपना हाथ अपने दोस्तों के ख़िलाफ़ उठाया, उस ने अपना अह्द तोड़ लिया है। |
21. | उस की ज़बान पर मक्खन की सी चिकनी-चुपड़ी बातें और दिल में जंग है। उस के तेल से ज़ियादा नर्म अल्फ़ाज़ हक़ीक़त में खैंची हुई तल्वारें हैं। |
22. | अपना बोझ रब्ब पर डाल तो वह तुझे सँभालेगा । वह रास्तबाज़ को कभी डगमगाने नहीं देगा। |
23. | लेकिन ऐ अल्लाह, तू उन्हें तबाही के गढ़े में उतरने देगा। ख़ूँख़ार और धोकेबाज़ आधी उम्र भी नहीं पाएँगे बल्कि जल्दी मरेंगे। लेकिन मैं तुझ पर भरोसा रखता हूँ। |
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