← Psalms (52/150) → |
1. | दाऊद का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए। हिक्मत का यह गीत उस वक़्त से मुताल्लिक़ है जब दोएग अदोमी साऊल बादशाह के पास गया और उसे बताया, “दाऊद अख़ीमलिक इमाम के घर में गया है।” ऐ सूर्मे, तू अपनी बदी पर क्यूँ फ़ख़र करता है? अल्लाह की शफ़्क़त दिन भर क़ाइम रहती है। |
2. | ऐ धोकेबाज़, तेरी ज़बान तेज़ उस्तरे की तरह चलती हुई तबाही के मन्सूबे बाँधती है। |
3. | तुझे भलाई की निस्बत बुराई ज़ियादा पियारी है, सच्च बोलने की निस्बत झूट ज़ियादा पसन्द है। (सिलाह) |
4. | ऐ फ़रेबदिह ज़बान, तू हर तबाहकुन बात से पियार करती है। |
5. | लेकिन अल्लाह तुझे हमेशा के लिए ख़ाक में मिलाएगा। वह तुझे मार मार कर तेरे ख़ैमे से निकाल देगा, तुझे जड़ से उखाड़ कर ज़िन्दों के मुल्क से ख़ारिज कर देगा। (सिलाह) |
6. | रास्तबाज़ यह देख कर ख़ौफ़ खाएँगे। वह उस पर हंस कर कहेंगे, |
7. | “लो, यह वह आदमी है जिस ने अल्लाह में पनाह न ली बल्कि अपनी बड़ी दौलत पर एतिमाद किया, जो अपने तबाहकुन मन्सूबों से ताक़तवर हो गया था।” |
8. | लेकिन मैं अल्लाह के घर में ज़ैतून के फलते फूलते दरख़्त की मानिन्द हूँ। मैं हमेशा के लिए अल्लाह की शफ़्क़त पर भरोसा रखूँगा। |
9. | मैं अबद तक उस के लिए तेरी सिताइश करूँगा जो तू ने किया है। मैं तेरे ईमानदारों के सामने ही तेरे नाम के इन्तिज़ार में रहूँगा, क्यूँकि वह भला है। |
← Psalms (52/150) → |