Psalms (46/150)  

1. क़ोरह की औलाद का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए। गीत का तर्ज़ : कुंवारियाँ। अल्लाह हमारी पनाहगाह और क़ुव्वत है। मुसीबत के वक़्त वह हमारा मज़्बूत सहारा साबित हुआ है।
2. इस लिए हम ख़ौफ़ नहीं खाएँगे, गो ज़मीन लरज़ उठे और पहाड़ झूम कर समुन्दर की गहराइयों में गिर जाएँ,
3. गो समुन्दर शोर मचा कर ठाठें मारे और पहाड़ उस की दहाड़ों से काँप उठें। (सिलाह)
4. दरया की शाख़ें अल्लाह के शहर को ख़ुश करती हैं, उस शहर को जो अल्लाह तआला की मुक़द्दस सुकूनतगाह है।
5. अल्लाह उस के बीच में है, इस लिए शहर नहीं डगमगाएगा। सुब्ह-सवेरे ही अल्लाह उस की मदद करेगा।
6. क़ौमें शोर मचाने, सल्तनतें लड़खड़ाने लगीं। अल्लाह ने आवाज़ दी तो ज़मीन लरज़ उठी।
7. रब्ब-उल-अफ़्वाज हमारे साथ है, याक़ूब का ख़ुदा हमारा क़िलआ है। (सिलाह)
8. आओ, रब्ब के अज़ीम कामों पर नज़र डालो! उसी ने ज़मीन पर हौलनाक तबाही नाज़िल की है।
9. वही दुनिया की इन्तिहा तक जंगें रोक देता, वही कमान को तोड़ देता, नेज़े को टुकड़े टुकड़े करता और ढाल को जला देता है।
10. वह फ़रमाता है, “अपनी हर्कतों से बाज़ आओ! जान लो कि मैं ख़ुदा हूँ। मैं अक़्वाम में सरबुलन्द और दुनिया में सरफ़राज़ हूँगा।”
11. रब्ब-उल-अफ़्वाज हमारे साथ है। याक़ूब का ख़ुदा हमारा क़िलआ है। (सिलाह)

  Psalms (46/150)