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1. | दाऊद का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए। मुबारक है वह जो पस्तहाल का ख़याल रखता है। मुसीबत के दिन रब्ब उसे छुटकारा देगा। |
2. | रब्ब उस की हिफ़ाज़त करके उस की ज़िन्दगी को मह्फ़ूज़ रखेगा, वह मुल्क में उसे बर्कत दे कर उसे उस के दुश्मनों के लालच के हवाले नहीं करेगा। |
3. | बीमारी के वक़्त रब्ब उस को बिस्तर पर सँभालेगा । तू उस की सेहत पूरी तरह बहाल करेगा। |
4. | मैं बोला, “ऐ रब्ब, मुझ पर रहम कर! मुझे शिफ़ा दे, क्यूँकि मैं ने तेरा ही गुनाह किया है।” |
5. | मेरे दुश्मन मेरे बारे में ग़लत बातें करके कहते हैं, “वह कब मरेगा? उस का नाम-ओ-निशान कब मिटेगा?” |
6. | जब कभी कोई मुझ से मिलने आए तो उस का दिल झूट बोलता है। पस-ए-पर्दा वह ऐसी नुक़्सानदिह मालूमात जमा करता है जिन्हें बाद में बाहर जा कर गलियों में फैला सके। |
7. | मुझ से नफ़रत करने वाले सब आपस में मेरे ख़िलाफ़ फुसफुसाते हैं। वह मेरे ख़िलाफ़ बुरे मन्सूबे बाँध कर कहते हैं, |
8. | “उसे मुहलक मर्ज़ लग गया है। वह कभी अपने बिस्तर पर से दुबारा नहीं उठेगा।” |
9. | मेरा दोस्त भी मेरे ख़िलाफ़ उठ खड़ा हुआ है। जिस पर मैं एतिमाद करता था और जो मेरी रोटी खाता था, उस ने मुझ पर लात उठाई है। |
10. | लेकिन तू ऐ रब्ब, मुझ पर मेहरबानी कर! मुझे दुबारा उठा खड़ा कर ताकि उन्हें उन के सुलूक का बदला दे सकूँ। |
11. | इस से मैं जानता हूँ कि तू मुझ से ख़ुश है कि मेरा दुश्मन मुझ पर फ़त्ह के नारे नहीं लगाता। |
12. | तू ने मुझे मेरी दियानतदारी के बाइस क़ाइम रखा और हमेशा के लिए अपने हुज़ूर खड़ा किया है। |
13. | रब्ब की हम्द हो जो इस्राईल का ख़ुदा है। अज़ल से अबद तक उस की तम्जीद हो। आमीन, फिर आमीन। |
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