← Psalms (40/150) → |
1. | दाऊद का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए। मैं सब्र से रब्ब के इन्तिज़ार में रहा तो वह मेरी तरफ़ माइल हुआ और मदद के लिए मेरी चीख़ों पर तवज्जुह दी। |
2. | वह मुझे तबाही के गढ़े से खैंच लाया, दल्दल और कीचड़ से निकाल लाया। उस ने मेरे पाँओ को चटान पर रख दिया, और अब मैं मज़्बूती से चल फिर सकता हूँ। |
3. | उस ने मेरे मुँह में नया गीत डाल दिया, हमारे ख़ुदा की हम्द-ओ-सना का गीत उभरने दिया। बहुत से लोग यह देखेंगे और ख़ौफ़ खा कर रब्ब पर भरोसा रखेंगे। |
4. | मुबारक है वह जो रब्ब पर पूरा भरोसा रखता है, जो तंग करने वालों और फ़रेब में उलझे हुओं की तरफ़ रुख़ नहीं करता। |
5. | ऐ रब्ब मेरे ख़ुदा, बार बार तू ने हमें अपने मोजिज़े दिखाए, जगह-ब-जगह अपने मन्सूबे वुजूद में ला कर हमारी मदद की। तुझ जैसा कोई नहीं है। तेरे अज़ीम काम बेशुमार हैं, मैं उन की पूरी फ़हरिस्त बता भी नहीं सकता। |
6. | तू क़ुर्बानियाँ और नज़रें नहीं चाहता था, लेकिन तू ने मेरे कानों को खोल दिया। तू ने भस्म होने वाली क़ुर्बानियों और गुनाह की क़ुर्बानियों का तक़ाज़ा न किया। |
7. | फिर मैं बोल उठा, “मैं हाज़िर हूँ जिस तरह मेरे बारे में कलाम-ए-मुक़द्दस में लिखा है। |
8. | ऐ मेरे ख़ुदा, मैं ख़ुशी से तेरी मर्ज़ी पूरी करता हूँ, तेरी शरीअत मेरे दिल में टिक गई है।” |
9. | मैं ने बड़े इजतिमा में रास्ती की ख़ुशख़बरी सुनाई है। ऐ रब्ब, यक़ीनन तू जानता है कि मैं ने अपने होंटों को बन्द न रखा। |
10. | मैं ने तेरी रास्ती अपने दिल में छुपाए न रखी बल्कि तेरी वफ़ादारी और नजात बयान की। मैं ने बड़े इजतिमा में तेरी शफ़्क़त और सदाक़त की एक बात भी पोशीदा न रखी। |
11. | ऐ रब्ब, तू मुझे अपने रहम से महरूम नहीं रखेगा, तेरी मेहरबानी और वफ़ादारी मुसल्सल मेरी निगहबानी करेंगी। |
12. | क्यूँकि बेशुमार तकलीफों ने मुझे घेर रखा है, मेरे गुनाहों ने आख़िरकार मुझे आ पकड़ा है। अब मैं नज़र भी नहीं उठा सकता। वह मेरे सर के बालों से ज़ियादा हैं, इस लिए मैं हिम्मत हार गया हूँ। |
13. | ऐ रब्ब, मेहरबानी करके मुझे बचा! ऐ रब्ब, मेरी मदद करने में जल्दी कर! |
14. | मेरे जानी दुश्मन सब शर्मिन्दा हो जाएँ, उन की सख़्त रुस्वाई हो जाए। जो मेरी मुसीबत देखने से लुत्फ़ उठाते हैं वह पीछे हट जाएँ, उन का मुँह काला हो जाए। |
15. | जो मेरी मुसीबत देख कर क़ह्क़हा लगाते हैं वह शर्म के मारे तबाह हो जाएँ। |
16. | लेकिन तेरे तालिब शादमान हो कर तेरी ख़ुशी मनाएँ। जिन्हें तेरी नजात पियारी है वह हमेशा कहें, “रब्ब अज़ीम है!” |
17. | मैं नाचार और ज़रूरतमन्द हूँ, लेकिन रब्ब मेरा ख़याल रखता है। तू ही मेरा सहारा और मेरा नजातदिहन्दा है। ऐ मेरे ख़ुदा, देर न कर! |
← Psalms (40/150) → |