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| 1. | दाऊद का यह ज़बूर उस वक़्त से मुताल्लिक़ है जब उस ने फ़िलिस्ती बादशाह अबीमलिक के सामने पागल बनने का रूप भर लिया। यह देख कर बादशाह ने उसे भगा दिया। चले जाने के बाद दाऊद ने यह गीत गाया। हर वक़्त मैं रब्ब की तम्जीद करूँगा, उस की हम्द-ओ-सना हमेशा ही मेरे होंटों पर रहेगी। |
| 2. | मेरी जान रब्ब पर फ़ख़र करेगी। मुसीबतज़दा यह सुन कर ख़ुश हो जाएँ। |
| 3. | आओ, मेरे साथ रब्ब की ताज़ीम करो। आओ, हम मिल कर उस का नाम सरबुलन्द करें। |
| 4. | मैं ने रब्ब को तलाश किया तो उस ने मेरी सुनी। जिन चीज़ों से मैं दह्शत खा रहा था उन सब से उस ने मुझे रिहाई दी। |
| 5. | जिन की आँखें उस पर लगी रहें वह ख़ुशी से चमकेंगे, और उन के मुँह शर्मिन्दा नहीं होंगे। |
| 6. | इस नाचार ने पुकारा तो रब्ब ने उस की सुनी, उस ने उसे उस की तमाम मुसीबतों से नजात दी। |
| 7. | जो रब्ब का ख़ौफ़ मानें उन के इर्दगिर्द उस का फ़रिश्ता ख़ैमाज़न हो कर उन को बचाए रखता है। |
| 8. | रब्ब की भलाई का तजरिबा करो। मुबारक है वह जो उस में पनाह ले। |
| 9. | ऐ रब्ब के मुक़द्दसीन, उस का ख़ौफ़ मानो, क्यूँकि जो उस का ख़ौफ़ मानें उन्हें कमी नहीं। |
| 10. | जवान शेरबबर कभी ज़रूरतमन्द और भूके होते हैं, लेकिन रब्ब के तालिबों को किसी भी अच्छी चीज़ की कमी नहीं होगी। |
| 11. | ऐ बच्चो, आओ, मेरी बातें सुनो! मैं तुमहें रब्ब के ख़ौफ़ की तालीम दूँगा। |
| 12. | कौन मज़े से ज़िन्दगी गुज़ारना और अच्छे दिन देखना चाहता है? |
| 13. | वह अपनी ज़बान को शरीर बातें करने से रोके और अपने होंटों को झूट बोलने से। |
| 14. | वह बुराई से मुँह फेर कर नेक काम करे, सुलह-सलामती का तालिब हो कर उस के पीछे लगा रहे। |
| 15. | रब्ब की आँखें रास्तबाज़ों पर लगी रहती हैं, और उस के कान उन की इल्तिजाओं की तरफ़ माइल हैं। |
| 16. | लेकिन रब्ब का चिहरा उन के ख़िलाफ़ है जो ग़लत काम करते हैं। उन का ज़मीन पर नाम-ओ-निशान तक नहीं रहेगा। |
| 17. | जब रास्तबाज़ फ़र्याद करें तो रब्ब उन की सुनता, वह उन्हें उन की तमाम मुसीबत से छुटकारा देता है। |
| 18. | रब्ब शिकस्तादिलों के क़रीब होता है, वह उन्हें रिहाई देता है जिन की रूह को ख़ाक में कुचला गया हो। |
| 19. | रास्तबाज़ की मुतअद्दिद तकालीफ़ होती हैं, लेकिन रब्ब उसे उन सब से बचा लेता है। |
| 20. | वह उस की तमाम हड्डियों की हिफ़ाज़त करता है, एक भी नहीं तोड़ी जाएगी। |
| 21. | बुराई बेदीन को मार डालेगी, और जो रास्तबाज़ से नफ़रत करे उसे मुनासिब अज्र मिलेगा। |
| 22. | लेकिन रब्ब अपने ख़ादिमों की जान का फ़िद्या देगा। जो भी उस में पनाह ले उसे सज़ा नहीं मिलेगी। |
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