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1. | दाऊद का ज़बूर। उस वक़्त जब उसे अपने बेटे अबीसलूम से भागना पड़ा। ऐ रब्ब, मेरे दुश्मन कितने ज़ियादा हैं, कितने लोग मेरे ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए हैं! |
2. | मेरे बारे में बहुतेरे कह रहे हैं, “अल्लाह इसे छुटकारा नहीं देगा।” (सिलाह ) |
3. | लेकिन तू ऐ रब्ब, चारों तरफ़ मेरी हिफ़ाज़त करने वाली ढाल है। तू मेरी इज़्ज़त है जो मेरे सर को उठाए रखता है। |
4. | मैं बुलन्द आवाज़ से रब्ब को पुकारता हूँ, और वह अपने मुक़द्दस पहाड़ से मेरी सुनता है। (सिलाह) |
5. | मैं आराम से लेट कर सो गया, फिर जाग उठा, क्यूँकि रब्ब ख़ुद मुझे सँभाले रखता है। |
6. | उन हज़ारों से मैं नहीं डरता जो मुझे घेरे रखते हैं। |
7. | ऐ रब्ब, उठ! ऐ मेरे ख़ुदा, मुझे रिहा कर! क्यूँकि तू ने मेरे तमाम दुश्मनों के मुँह पर थप्पड़ मारा, तू ने बेदीनों के दाँतों को तोड़ दिया है। |
8. | रब्ब के पास नजात है। तेरी बर्कत तेरी क़ौम पर आए। (सिलाह) |
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