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1. | दाऊद का ज़बूर। ऐ रब्ब, मैं तुझे पुकारता हूँ। ऐ मेरी चटान, ख़ामोशी से अपना मुँह मुझ से न फेर। क्यूँकि अगर तू चुप रहे तो मैं मौत के गढ़े में उतरने वालों की मानिन्द हो जाऊँगा। |
2. | मेरी इल्तिजाएँ सुन जब मैं चीख़ते चिल्लाते तुझ से मदद माँगता हूँ, जब मैं अपने हाथ तेरी सुकूनतगाह के मुक़द्दसतरीन कमरे की तरफ़ उठाता हूँ। |
3. | मुझे उन बेदीनों के साथ घसीट कर सज़ा न दे जो ग़लत काम करते हैं, जो अपने पड़ोसियों से बज़ाहिर दोस्ताना बातें करते, लेकिन दिल में उन के ख़िलाफ़ बुरे मन्सूबे बाँधते हैं। |
4. | उन्हें उन की हर्कतों और बुरे कामों का बदला दे। जो कुछ उन के हाथों से सरज़द हुआ है उस की पूरी सज़ा दे। उन्हें उतना ही नुक़्सान पहुँचा दे जितना उन्हों ने दूसरों को पहुँचाया है। |
5. | क्यूँकि न वह रब्ब के आमाल पर, न उस के हाथों के काम पर तवज्जुह देते हैं। अल्लाह उन्हें ढा देगा और दुबारा कभी तामीर नहीं करेगा। |
6. | रब्ब की तम्जीद हो, क्यूँकि उस ने मेरी इल्तिजा सुन ली। |
7. | रब्ब मेरी क़ुव्वत और मेरी ढाल है। उस पर मेरे दिल ने भरोसा रखा, उस से मुझे मदद मिली है। मेरा दिल शादियाना बजाता है, मैं गीत गा कर उस की सिताइश करता हूँ। |
8. | रब्ब अपनी क़ौम की क़ुव्वत और अपने मसह किए हुए ख़ादिम का नजातबख़्श क़िलआ है। |
9. | ऐ रब्ब, अपनी क़ौम को नजात दे! अपनी मीरास को बर्कत दे! उन की गल्लाबानी करके उन्हें हमेशा तक उठाए रख। |
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