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1. | दाऊद का ज़बूर। रब्ब मेरी रौशनी और मेरी नजात है, मैं किस से डरूँ? रब्ब मेरी जान की पनाहगाह है, मैं किस से दह्शत खाऊँ? |
2. | जब शरीर मुझ पर हम्ला करें ताकि मुझे हड़प कर लें, जब मेरे मुख़ालिफ़ और दुश्मन मुझ पर टूट पड़ें तो वह ठोकर खा कर गिर जाएँगे। |
3. | गो फ़ौज मुझे घेर ले मेरा दिल ख़ौफ़ नहीं खाएगा, गो मेरे ख़िलाफ़ जंग छिड़ जाए मेरा भरोसा क़ाइम रहेगा। |
4. | रब्ब से मेरी एक गुज़ारिश है, मैं एक ही बात चाहता हूँ। यह कि जीते जी रब्ब के घर में रह कर उस की शफ़्क़त से लुत्फ़अन्दोज़ हो सकूँ, कि उस की सुकूनतगाह में ठहर कर महव-ए-ख़याल रह सकूँ। |
5. | क्यूँकि मुसीबत के दिन वह मुझे अपनी सुकूनतगाह में पनाह देगा, मुझे अपने ख़ैमे में छुपा लेगा, मुझे उठा कर ऊँची चटान पर रखेगा। |
6. | अब मैं अपने दुश्मनों पर सरबुलन्द हूँगा, अगरचि उन्हों ने मुझे घेर रखा है। मैं उस के ख़ैमे में ख़ुशी के नारे लगा कर क़ुर्बानियाँ पेश करूँगा, साज़ बजा कर रब्ब की मद्हसराई करूँगा। |
7. | ऐ रब्ब, मेरी आवाज़ सुन जब मैं तुझे पुकारूँ, मुझ पर मेहरबानी करके मेरी सुन। |
8. | मेरा दिल तुझे याद दिलाता है कि तू ने ख़ुद फ़रमाया, “मेरे चिहरे के तालिब रहो!” ऐ रब्ब, मैं तेरे ही चिहरे का तालिब रहा हूँ। |
9. | अपने चिहरे को मुझ से छुपाए न रख, अपने ख़ादिम को ग़ुस्से से अपने हुज़ूर से न निकाल। क्यूँकि तू ही मेरा सहारा रहा है। ऐ मेरी नजात के ख़ुदा, मुझे न छोड़, मुझे तर्क न कर। |
10. | क्यूँकि मेरे माँ-बाप ने मुझे तर्क कर दिया है, लेकिन रब्ब मुझे क़बूल करके अपने घर में लाएगा। |
11. | ऐ रब्ब, मुझे अपनी राह की तर्बियत दे, हमवार रास्ते पर मेरी राहनुमाई कर ताकि अपने दुश्मनों से मह्फ़ूज़ रहूँ। |
12. | मुझे मुख़ालिफ़ों के लालच में न आने दे, क्यूँकि झूटे गवाह मेरे ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए हैं जो तशद्दुद करने के लिए तय्यार हैं। |
13. | लेकिन मेरा पूरा ईमान यह है कि मैं ज़िन्दों के मुल्क में रह कर रब्ब की भलाई देखूँगा। |
14. | रब्ब के इन्तिज़ार में रह! मज़्बूत और दिलेर हो, और रब्ब के इन्तिज़ार में रह! |
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